चार मई को दिल्ली के खुदरा बाजार में अच्छी गुणवत्ता के प्याज की कीमत 23 रुपये प्रति किलोग्राम थी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के प्याज किसानों को क्या दाम मिला होगा। कृषि उपज के आयात-निर्यात संबंधी फैसलों के जरिए महंगाई नियंत्रण की नीति किसानों को घाटा पहुंचा रही है। जबकि कई निर्यातक विशेष अनुमति का फायदा उठाकर प्याज निर्यात से मोटा मुनाफा कमाने में कामयाब रहे।
अब पांच महीनों बाद केंद्र सरकार ने प्याज निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटाया है लेकिन 550 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) और 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी की शर्तें लगा दी हैं। इसके बावजूद जिस तरह की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में चल रही हैं उससे प्याज निर्यातकों के पास कमाई का मौका है। देखना है कि निर्यात खुलने से किसानों को कितना फायदा पहुंचता है।
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर महंगाई रोकने के लिए दिसंबर में सरकार ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। इससे देश में प्याज की कीमतों में भारी गिरावट आई और विश्व बाजार में भी प्याज के दाम बढ़ गए। लेकिन बीच-बीच में सरकार ने कुछ देशों को प्याज निर्यात की विशेष अनुमति दे दी। जिसका फायदा उन निर्यातकों को मिला जिन्होंने सस्ते दाम पर प्याज खरीदकर महंगे रेट पर एक्सपोर्ट किया।
प्याज निर्यात पर प्रतिबंध के दौरान संयुक्त अरब अमीरात में प्याज की कीमत 150 रुपये प्रति किलो तक चली गई जबकि पड़ोसी देश बांग्लादेश में भी कीमत 100 रुपये के आसपास तक पहुंच गई थी। इसी का फायदा प्याज निर्यात की विशेष अनुमति के जरिए कुछ निर्यातकों ने उठाया। प्याज कारोबार पर करीबी नजर रखने वाले सूत्रों का कहना है कि निर्यात के लिए प्याज 20 से 22 रुपये प्रति किलो पर खरीदा गया। जबकि निर्यात बाजार में कीमत 100 रुपये से 150 रुपये किलो तक रही। इस तरह हजारों टन प्याज का निर्यात हुआ। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कुछ चुनिंदा निर्यातकों को कितना बड़ा फायदा पहुंचाया गया।
महाराष्ट्र के किसान नेता अनिल घनवट का कहना है कि प्याज निर्यात पर प्रतिबंध से जहां देश के किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा, वहीं प्याज निर्यात की विशेष अनुमति के जरिए कुछ खास निर्यातकों को लाभ पहुंचाया गया। घनवट ने गुजरात के बंदरगाहों से प्याज की तस्करी का आरोप भी लगाया। उन्होंने सफेद प्याज के निर्यात की छूट को भी गुजरात के चंद निर्यातकों को फायदा पहुंचाने वाला पक्षपातपूर्ण कदम बताया।
भारत के साथ अब मिस्र ने भी प्याज निर्यात पर रोक हटा दी है। इसके साथ ही पाकिस्तान ने भी प्याज निर्यात शुरू कर दिया है। भारत और मिस्र द्वारा निर्यात पर रोक लगाने के चलते ही मध्य पूर्व एशियाई देशों में प्याज की कीमतें बढ़ी थीं। अभी भी वहां प्याज की कीमत 120 रुपये प्रति किलो से आसपास चल रही हैं। लेकिन कई देशों से आपूर्ति बढ़ने के चलते अब कीमतों का यह स्तर बना रहेगा या नहीं यह अगले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा। हालांकि कारोबारी सूत्रों का कहना है कि सरकार द्वारा 550 डॉलर प्रति टन का एमईपी और 40 फीसदी का निर्यात शुल्क लगाने के बावजूद अभी भी वैश्विक बाजार में प्याज का निर्यात फायदे का सौदा है। लेकिन बांग्लादेश को इन शर्तों के साथ निर्यात मुश्किल हो जाएगा।
प्याज निर्यात खुलने के बावजूद इस पर लागू दो शर्तों से महाराष्ट्र के प्याज उत्पादक खुश नहीं हैं। पूर्व सांसद और स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के नेता राजू शेट्टी कहते हैं कि केंद्र सरकार किसानों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है और चुनाव में किसानों की नाराजगी को देखते हुए निर्यात प्रतिबंध हटाने का फैसला करना पड़ा। लेकिन इस पर भी कड़ी शर्तें लगा दी।
प्याज की रबी की मुख्य फसल फरवरी-मार्च में आती है। रबी के प्याज की ही शेल्फ लाइफ अधिक होती है। लेकिन जब फसल बाजार में आई तो निर्यात पर प्रतिबंध लगा हुआ था। जब कीमतों में भारी गिरावट आई तो सरकार ने नेफेड और नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर फेडरेशन (एनसीसीएफ) के जरिये प्याज खरीदने का फैसला किया। नेफेड और एनसीसीएफ बाजार में चल रही कीमतों पर ही प्याज खरीदती हैं और एफपीओ, सहकारी समितियों और कारोबारियों के जरिये प्याज की खरीद करती हैं।
निर्यात प्रतिबंध के दौरान विशेष अनुमति के तहत छह देशों को प्याज का निर्यात किया गया। इसके लिए घरेलू बाजार से प्याज खरीद और निर्यात की व्यवस्था का जिम्मा नेशनल कोआपरेटिव एक्सपोर्ट्स लिमिटेड (एनसीईएल) को दिया गया था। प्याज निर्यात पर प्रतिबंध के दौरान घरेलू बाजार से खरीदी गई प्याज की कीमतों और निर्यात की कीमतों के बीच भारी अंतर को लेकर सरकारी स्तर पर भी चर्चा हुई कि इसका फायदा किसानों को मिलना चाहिए था जो नहीं मिला।
अब लोक सभा चुनावों के तीसरे चरण के पहले प्याज निर्यात पर प्रतिबंध समाप्त करने का मकसद प्याज उत्पादक किसानों और व्यापारियों की नाराजगी कम करना है। महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य और वहां प्याज बड़ा राजनीतिक मुद्दा है। ऐसे में सरकार का ताजा फैसला सत्तारूढ़ दल की कितनी मदद करता है, यह तो 4 जून को ही पता लगेगा। लेकिन इतना स्पष्ट है कि महंगाई नियंत्रण की नीतियां किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही हैं, जबकि कुछ निर्यातक इससे भी मुनाफा बनाने में कामयाब रहे।