रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया भर में उर्वरकों और उनके कच्चे माल की कीमतों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हो रही है। इसके चलते डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की आयातित कीमत एक लाख रुपये प्रति टन को पार कर गई है। यही स्थिति यूरिया, उसके कच्चे माल और पोटाश की है। इस बीच रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत विनियंत्रित उर्वरकों पर सब्सिडी, कीमत और अन्य मुद्दों पर सुझाव देने के लिए एक एक्सपर्ट समिति गठित करने का फैसला किया है। इस संबंध में मंत्रालय के उर्वरक विभाग ने 11 अप्रैल, 2022 को एक ऑफिस मेमोरेंडम जारी किया है।
रूरल वॉयस के पास उपलब्ध जानकारी के मुताबिक यह समिति एनबीएस के मौजूदा उद्देश्यों को हासिल करने और आत्मनिर्भरता के लिए जरूरी सिफारिशें देगी। समिति में उर्वरक मंत्रालय, नीति आयोग, कृषि मंत्रालय और उर्वरक कंपनियों के प्रतिनिधियों समेत 11 सदस्य हैं। वैसे तो समिति की सिफारिशें आने और उन पर अमल में समय लग सकता है>
वहीं रूरल वॉयस को सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरकार इस दिशा में जल्दी कदम उठाने के विकल्पों पर भी विचार कर रही है। उक्त सूत्र के मुताबिक पिछले दिनों कैबिनेट में उर्वरकों की स्थिति पर चर्चा की गई थी।
गठित की गई एक्सपर्ट समिति के कामकाज के दायरे (टर्म्स ऑफ रेफरेंस) में कहा गया है कि समिति बाजार परिस्थिति, ट्रेंड और उर्वरकों की अधिकमत खुदरा कीमत (एमआरपी) को ध्यान में रखते हुए एनबीएस के तहत सब्सिडी को किफायती और तर्कसंगत बनाने के लिए सिफारिशें देगी। समिति आयातित और घरेलू उत्पादित फॉसफोरस (पी) और पोटाश (के) उर्वरकों के लिए एनबीएस के तहत सब्सिडी की अलग दरें तय करने पर भी सिफारिशें देगी। घरेलू फॉस्फोरिक एसिड और एसएसपी उत्पादन को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए दीर्घकालिक रणनीति के तहत वैश्विक स्तर पर रॉक फॉस्फेट की उपलब्धता के उपाय सुझाएगी। समिति रॉक फॉस्फोरस से फॉस्फोरिक एसिड बनाने की प्रक्रिया के दौरान निकलने वाले जिप्सम के डिस्पोजल के लिए भी एफसीओ के तहत जरूरी कदम सुझाएगी। एनबीएस के तहत उर्वरकों के संतुलित उपयोग के लिए भी समिति सुझाव देगी। यह पी और के उर्वरकों और एसएसपी के लिए मार्केटिंग के एग्रीगेटर मॉडल की भी समीक्षा करेगी। एक्सपर्ट समिति की सिफारिश पर जरूरी मुद्दे भी जोड़े जा सकते हैं।
समिति की सिफारिश के लिए कोई समयसीमा इसके लिए जारी मेमोरेंडम में तय नहीं की गई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि समिति का गठन तब किया गया है जब उद्योग को अप्रैल माह से विनियंत्रित उर्वरकों के लिए एनबीएस योजना तहत आने वाले न्यूट्रिएंट पर सब्सिडी की दरें तय किये जाने की उम्मीद उद्योग कर रहा है। इसमें देरी के चलते कॉम्प्लेक्स उर्वरकों और उनके लिए कच्चे माल के आयात के नये सौदे नहीं हो रहे हैं। उद्योग सूत्रों के मुताबिक 24 फरवरी को रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से नये आयात सौदे नहीं हो रहे हैं और इसका सीधा असर आयात पर पड़ रहा है। वहीं इस बीच उर्वरकों की कीमत लगातार बढ़ रही है।
उद्योग सूत्रों के मुताबिक डीएपी की आयातित कीमत 1250 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है। मौजूदा रुपया-डॉलर विनियम दर पर यह कीमत करीब 95 हजार रुपये प्रति टन बैठती है। उसके उपर कस्टम ड्यूटी और जीएसटी के चलते कीमत 10 फीसदी बढ़ जाती है। वहीं पैकेजिंग लागत में भी भारी बढ़ोतरी हुई है। उद्योग का कहना है कि इसके चलते डीएपी की कीमत एक लाख रुपये प्रति टन को पार कर गई है। वहीं डीएपी की खुदरा बिक्री कीमत 27 हजार रुपये प्रति टन और 33 हजार रुपये प्रति टन की सब्सिडी को मिलाकर इसकी बिक्री से उद्योग को 60 हजार रुपये प्रति टन मिल रहे हैं। ऐसे में आयातित लागत और उद्योग को मिलने वाली राशि के बीच 40 हजार रुपये प्रति टन का अंतर आ गया है। इस अंतर की भरपाई कैसे होगी इसको लेकर अभी सरकार की ओर से कोई कदम सामने नहीं आया है। इसका सीधा असर आगामी खरीफ सीजन में डीएपी और दूसरे कॉम्पलेक्स उर्वरकों की उपलब्धता पर पड़ सकता है। उद्योग सूत्रों के मुताबिक इस समय देश में डीएपी की स्टॉक करीब 25 लाख टन का है। यह स्थिति एनपीके उर्वरकों को लेकर भी है और यूरिया की कीमत भी वैश्विक बाजार में डीएपी से थोड़ा कम रह गई है। पोटाश की कीमतें भी 750 डॉलर प्रति टन के आसपास पहुंच गई हैं।
इसलिए जब सरकार को तुरंत एनबीएस के तहत सब्सिडी की दरें घोषित करने की जरूरत है, उसमें देरी करना मुश्किलें पैदा कर सकता है। सरकार के समिति गठित करने से तुरंत तो कोई फायदा होने वाला नहीं है। हालांकि दीर्घकालिक रूप में समिति की सिफारिशें फायदेमंद हो सकती हैं लेकिन समिति के टर्म्स ऑफ रेफरेंस से संकेत मिलता है कि सरकार कॉम्पलेक्स उर्वरकों की कीमतों में इजाफा कर सकती है।
हालांकि विनियंत्रित उर्वरकों की कीमतें तय करने का अधिकार उद्योग के पास है और वह सब्सिडी की दरों और कच्चे माल या आयातित कीमत के आधार पर तय होती हैं। लेकिन सरकार परोक्ष रूप से कॉम्पलेक्स उर्वरकों की कीमतों को नियंत्रित करती रही है और उसके चलते ही आयात में देरी हो रही है जो उपलब्धता संकट का बड़ा कारण बन सकता है।