आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों के जोखिम कारकों पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की है। एक्टिविस्ट अरुणा रोड्रिग्स और एनजीओ 'जीन कैंपेन' की अलग-अलग याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने ये चिंता जताई। मामले की अगली सुनवाई अब अगले हफ्ते होगी। पिछले साल ही केंद्र सरकार ने जीएम सरसों के व्यावसायिक उत्पादन को सशर्त मंजूरी दी थी। सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
इन याचिकाओं में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएमओ) को पर्यावरण में छोड़ने पर रोक लगाने की मांग की गई है। इनमें कहा गया है कि स्वतंत्र विशेषज्ञ एजेंसियों द्वारा संचालित एक व्यापक, पारदर्शी और कठोर जैव-सुरक्षा प्रोटोकॉल लंबित है जिसके परिणाम सार्वजनिक किए जाते हैं। ऐसे में इस तरह की मंजूरी देना पर्यावरण के लिए जोखिम भरा है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, "वास्तव में यह जोखिम कारक है जो हमें अधिक चिंतित करते हैं।"
केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने ट्रांसजेनिक हाइब्रिड सरसों डीएमएच-11 के व्यावसायिक उत्पादन को सशर्त मंजूरी देने की समयसीमा का जिक्र करते हुए कहा कि इसके सभी प्रासंगिक पहलुओं पर विचार करने के बाद ही इसकी मंजूरी दी गई है। इससे पहले पिछले साल नवंबर में दायर अपने अतिरिक्त हलफनामे में भी केंद्र ने कहा था कि यह सशर्त मंजूरी "लंबी और विस्तृत नियामकीय समीक्षा प्रक्रिया" के बाद दी गई है जो 2010 में शुरू हुई थी।
पिछले महीने इस मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने केंद्र से पूछा था कि क्या जीएम सरसों को मंजूरी देने का कोई अनिवार्य कारण था जिसमें विफल होने पर देश बर्बाद हो जाएगा। इस पर केंद्र ने कहा था कि एक्टिविस्ट, एक्सपर्ट्स और वैज्ञानिकों द्वारा जीएम फसलों का विरोध वैज्ञानिक तर्क पर आधारित नहीं है बल्कि वैचारिक है।
रोड्रिग्स की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया था कि पर्यावरण में छोड़ने के बाद जीएम सरसों के बीज अंकुरित होना शुरू हो गए हैं। इससे पहले कि कुछ हफ्तों में पौधों में फूल आना शुरू हों, पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए उन्हें जड़ से उखाड़ देना चाहिए। ट्रांसजेनिक सरसों हाइब्रिड डीएमएच-11 को दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर जेनेटिक मेनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (CGMCP) द्वारा विकसित किया गया है।