महंगाई कम करने के लिए रिजर्व बैंक की ओर से ब्याज दरों में बढ़ोतरी की वजह से विकास दर प्रभावित होने लगी है। यही वजह है कि चालू वित्त वर्ष की पिछली दो तिमाहियों में देश की विकास दर लगातार सुस्त रही है। अक्टूबर-दिसंबर 2022 में अर्थव्यवस्था की रफ्तार 5 फीसदी से भी नीचे आ गई और 4.4 फीसदी रही। मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र, उपभोक्ता खपत और निर्यात में गिरावट की वजह से जीडीपी ग्रोथ में यह कमी दर्ज की गई है। अच्छी बात यह है कि कृषि क्षेत्र ने एक बार फिर से अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में अहम योगदान दिया है। इस अवधि में कृषि क्षेत्र की विकास दर बढ़कर 3.7 फीसदी पर पहुंच गई जो पिछली तिमाही (जून-सितंबर) में 2.4 फीसदी और पिछले वित्त वर्ष 2021-22 की समान अवधि (अक्टूबर-दिसंबर) में 2.3 फीसदी थी।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) मई 2022 से अब तक ब्याज दरों को 2.5 फीसदी महंगा कर चुका है। पिछले साल मई में जब आरबीआई ने दो साल बाद ब्याज दरों में बढ़ोतरी की शुरुआत की थी तो कहा था कि महंगाई को नियंत्रण में रखते हुए विकास दर को बढ़ाने पर उसका फोकस बना रहेगा। मगर अब लग रहा है कि ऐसा पूरी तरह से मुमकिन नहीं है क्योंकि जनवरी 2023 में खुदरा महंगाई आरबीआई के अनुमानित स्तर 6 फीसदी से ऊपर निकल कर 6.52 फीसदी पर पहुंच चुकी है। इसे देखते हुए इस बात की संभावना बढ़ गई थी कि आरबीआई एक बार फिर से ब्याज दरों में वृद्धि कर सकता है मगर विकास दर के ताजा आंकड़े से केंद्रीय बैंक की दुविधा बढ़ जाएगी। अब देखना होगा कि आरबीआई महंगाई को नियंत्रित करेगा या फिर विकास दर को बढ़ाने पर ध्यान देगा। महंगाई के फरवरी के आंकड़े अगले हफ्ते आएंगे।
ब्याज दरें बढ़ने से उपभोक्ता मांग में कमी आई है जिसकी वजह से मैन्युफैक्चरिंग प्रभावित हुआ है। मैन्युफैक्चरिंग में कमी की वजह से निर्यात पर असर पड़ा है जिससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार घट रही है। अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की विकास दर घटकर सिर्फ 1.1 फीसदी और उपभोक्ता मांग घटकर सिर्फ 2.1 फीसदी रह गई है। अप्रैल-जून 2022 में विकास दर 13.5 फीसदी थी जो जुलाई-सितंबर तिमाही में घटकर 6.3 फीसदी पर आ गई और अक्टूबर-दिसंबर में सिर्फ 4.4 फीसदी रह गई है जो एक साल पहले की इसी अवधि में 11.2 फीसदी थी। ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या चालू वित्त वर्ष में सरकार द्वारा अनुमानित 7 फीसदी की विकास दर को हासिल किया जा सकेगा?
विशेषज्ञों का कहना है कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी और मांग में कमी को देखते हुए इस लक्ष्य को हासिल करना अब मुश्किल लग रहा है। अगर चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में जीडीपी की वृद्धि दर 5.1 फीसदी रही तभी इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा। हालांकि, सरकार अभी भी आश्वस्त है कि 7 फीसदी की विकास दर हासिल कर ली जाएगी। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने बुधवार को कहा कि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की रफ्तार भले ही तीसरी तिमाही में सुस्त रही है लेकिन अर्थव्यवस्था में इस बात के पर्याप्त हाई-फ्रीक्वेंसी संकेतक हैं जो दिखा रहे हैं कि चौथी तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र मजबूत रहेगा। उन्होंने कहा कि पिछले तीन साल के आंकड़ों में संशोधन के कारण जीडीपी वृद्धि का आधार बढ़ा है। इस वजह से मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र और उपभोक्ता खपत में कमी आई है। यदि ऐसा नहीं हुआ होता तो अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र 3.8 फीसदी की दर से और उपभोक्ता खपत छह फीसदी की दर से बढ़ता।
उन्होंने कहा कि मंगलवार को जारी किए गए जीडीपी के आंकड़ों को लेकर बहुत गलतफहमी है क्योंकि इसके साथ पिछले तीन वर्षों के आंकड़ों में संशोधन भी किया गया है। वित्त वर्ष 2021-22 के विकास दर को 8.7 फीसदी से संशोधित कर 9.1 फीसदी, 2020-21 के लिए -6.6 फीसदी से बढ़ाकर -5.8 फीसदी और 2019-20 के लिए 3.7 फीसदी को बढ़ाकर से 3.9 फीसदी कर दिया गया है।
हालांकि, रिजर्व बैंक पहले ही जीडीपी ग्रोथ के 7 फीसदी के अपने अनुमान को घटाकर 6.8 फीसदी कर चुका है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी 2022-23 के लिए 6.8 फीसदी विकास दर का ही अनुमान लगाया है, जबकि एडीबी का पूर्वानुमान 7 फीसदी ग्रोथ का है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, तीसरी तिमाही में सर्विस क्षेत्र की विकास दर 6.2 फीसदी, निर्माण क्षेत्र की 8.4 फीसदी और व्यापार, होटल, ट्रांसपोर्ट व कम्युनिकेशन क्षेत्र की वृद्धि दर 9.7 फीसदी रही है।