कमोडिटी के दाम में बढ़ोतरी और कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर ने अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। इसी का असर है कि वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में जीडीपी विकास दर एक साल में सबसे कम 4.1 फ़ीसदी रह गई। पूरे वित्त वर्ष की विकास दर भी सरकार के पुराने अनुमान की तुलना में कम रही है। सरकार ने तीन महीने पहले संशोधित अनुमान में पिछले वित्त वर्ष के दौरान 8.9 फ़ीसदी ग्रोथ की बात कही थी, लेकिन यह 8.7 फ़ीसदी पर ही पहुंच सकी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने मंगलवार को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े जारी किए। इसके मुताबिक कृषि क्षेत्र की विकास दर में भी गिरावट आई है। यह 2020-21 में 3.3 फ़ीसदी थी जो 2021-22 में सिर्फ 3 फ़ीसदी रह गई।
पहले तो कोविड-19 महामारी के ओमीक्रोन वेरिएंट की वजह से जगह-जगह आर्थिक गतिविधियों पर अंकुश लगा और फिर यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद सभी कमोडिटी के दाम बढ़ गए तथा उनकी सप्लाई भी बाधित हुई। महामारी का असर तो अब अधिक नहीं दिख रहा है, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध फिलहाल खत्म होने के आसार नहीं लग रहे हैं। इसलिए वित्त वर्ष 2022-23 में भी विकास दर पर इसका असर दिखेगा।
जीडीपी के ये आंकड़े इसलिए भी निराशाजनक कहे जा सकते हैं क्योंकि 2020-21 में विकास दर -6.6 फ़ीसदी रही थी। इसी तरह जनवरी-मार्च 2021 में जीडीपी ग्रोथ 2.5 फ़ीसदी थी जिसकी तुलना में जनवरी-मार्च 2022 में ग्रोथ 4.1 फ़ीसदी रही है। कृषि क्षेत्र की विकास दर 2020-21 की चौथी तिमाही में 2.8 फ़ीसदी थी जहां से यह बढ़कर 4.1 फ़ीसदी पर पहुंची है। गौर करने वाली एक और बात यह है कि 2019-20 की तुलना में 2021-22 में जीडीपी का आकार सिर्फ 1.5 फ़ीसदी बढ़ा है।
एनएसओ के आंकड़ों के मुताबिक 2021-22 में चावल का उत्पादन 6.4 फ़ीसदी बढ़ा है। कोयले के उत्पादन में 8.5 फ़ीसदी की वृद्धि हुई, लेकिन कच्चे तेल का उत्पादन 2.6 फ़ीसदी घट गया। खास बात यह है कि 2020-21 मे भी कच्चे तेल का उत्पादन 5.2 फ़ीसदी घटा था। देश में जरूरत का लगभग 85 फ़ीसदी कच्चा तेल आयात किया जाता है। इसके घरेलू उत्पादन में लगातार गिरावट से आयात पर निर्भरता और बढ़ सकती है। यह इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि रुपया इन दिनों सर्वकालिक निचले स्तर पर चल रहा है। एक डॉलर की कीमत 77 रुपए से अधिक हो गई है।
आंकड़ों से एक और खास बात का पता चलता है। 2011-12 के स्थिर मूल्यों पर जीडीपी वृद्धि दर 8.7 फ़ीसदी है लेकिन मौजूदा मूल्यों के आधार पर यह 19.5 फ़ीसदी दर्ज हुई है। दोनों आंकड़ों में इतना बड़ा अंतर महंगाई के प्रभाव को दर्शाता है। अर्थात मौजूदा मूल्यों में महंगाई का तत्व बहुत ज्यादा है। स्थिर मूल्यों पर जीडीपी का आकार 147.35 लाख करोड़ रुपए है जबकि मौजूदा मूल्य के आधार पर यह 236.64 लाख करोड़ रुपए है। प्रति व्यक्ति जीडीपी 2020-21 में 7.6 फ़ीसदी घटी थी। 2021-22 मे यह इतनी ही बढ़कर 1,07,670 रुपए हुई है। हालांकि यह अब भी 2019-20 के 1,08,247 रुपए की तुलना में कम है। यहां भी महंगाई का असर दिखता है क्योंकि मौजूदा मूल्य पर प्रति व्यक्ति जीडीपी 18.4 फ़ीसदी बढ़कर 1,72,913 हुई है।