घरेलू बाजार में कीमतों को नियंत्रित करने और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के तहत चावल के निर्यात को प्रतिबंधित करने के लिए सरकार विभिन्न उपाय कर रही है। इसी के तहत 20 जुलाई, 2023 से गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि निर्धारित किस्मों पर प्रतिबंध के बावजूद चालू वर्ष के दौरान चावल का निर्यात अधिक रहा है। 17 अगस्त, 2023 तक चावल का कुल निर्यात (टूटे हुए चावल को छोड़कर, जिसका निर्यात पहले से प्रतिबंधित है) पिछले वर्ष की इसी अवधि के 63.7 लाख टन की तुलना में 73.3 लाख टन रहा और इसमें 15.06 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। गैर-बासमती सेला (पारबॉयल्ड) चावल और बासमती चावल के निर्यात में भी तेजी देखी गई है। इन दोनों किस्मों के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। गैर-बासमती सेला चावल का निर्यात 21.18 फीसदी बढ़कर 32.9 लाख टन पर पहुंच गया जो पिछले वर्ष की इस अवधि में 27.2 लाख टन था। बासमती चावल के निर्यात में 9.35 फीसदी की तेजी आई है। पिछले वर्ष के 17 लाख टन की तुलना में चालू वर्ष के दौरान 18.6 लाख टन बासमती चावल का निर्यात हुआ है।
बयान के मुताबिक, गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर 9 सितंबर, 2022 से 20 फीसदी का शुल्क लगाया गया था और 20 जुलाई, 2023 से इसे प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसका निर्यात भी 4.36 फीसदी बढ़कर 19.7 लाख टन पर पहुंच गया है जो पिछले वर्ष की इस अवधि में 18.9 लाख टन था। कृषि और किसान कल्याण विभाग के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, रबी सीजन 2022-23 के दौरान चावल का उत्पादन 158.95 लाख टन रहा जो इससे पहले के रबी सीजन 2021-22 की तुलना में 13.84 फीसदी कम है। रबी सीजन 2021-22 में चावल का उत्पादन 184.71 लाख टन रहा था।
एशियाई देशों से खरीदारों की मजबूत मांग, थाईलैंड जैसे कुछ प्रमुख उत्पादक देशों में 2022-23 में उत्पादन में कमी और अल-नीनो की शुरुआत के संभावित प्रतिकूल प्रभाव की आशंका के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में चावल की कीमतें पिछले साल से लगातार बढ़ रही हैं। एफएओ चावल मूल्य सूचकांक जुलाई 2023 में 129.7 अंक तक पहुंच गया। यह सितंबर 2011 के बाद का सबसे उच्चतम स्तर था। पिछले वर्ष के स्तर के मुकाबले इसमें 19.7 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। वाणिज्य मंत्रालय का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में भारतीय चावल की कीमतें अभी भी कम है जिसकी वजह से भारतीय चावल की मांग मजबूत रही है। इस वजह से 2021-22 और 2022-23 के दौरान चावल का रिकॉर्ड निर्यात हुआ है।
बयान में कहा गया है कि सरकार को गैर-बासमती सफेद चावल के गलत वर्गीकरण और अवैध निर्यात के संबंध में विश्वसनीय जमीनी रिपोर्टें मिली हैं। गैर-बासमती सफेद चावल का निर्यात सेला (पारबॉयल्ड) चावल और बासमती चावल के एचएस कोड के तहत करने की जानकारी सरकार को मिली हुई है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) बासमती चावल के निर्यात के नियमन के लिए उत्तरदायी है और इसके लिए पहले से ही एक वेब-आधारित प्रणाली मौजूद है। इसलिए सरकार ने बासमती चावल के नाम पर गैर-बासमती सफेद चावल के संभावित अवैध निर्यात को रोकने के लिए अधिक उपाय शुरू करने के लिए एपीडा को निम्नलिखित निर्देश जारी किए हैं-
- केवल 1200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन और उससे अधिक मूल्य के बासमती निर्यात के लिए अनुबंधों को पंजीकरण-सह-आवंटन प्रमाण पत्र (आरसीएसी) जारी करने के लिए पंजीकृत किया जाना चाहिए।
- 1200 डॉलर प्रति टन से कम मूल्य वाले निविदाओं को स्थगित रखा जा सकता है और मूल्यों में अंतर और गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात के लिए इस मार्ग के उपयोग को समझने के लिए एपीडा के अध्यक्ष द्वारा गठित की जाने वाली समिति द्वारा इनका मूल्यांकन किया जा सकता है। यह पाया गया है कि चालू माह के दौरान 1214 अमरिकी डॉलर प्रति टन के औसत निर्यात मूल्य की पृष्ठभूमि में न्यूनतम अनुबंध मूल्य 359 डॉलर प्रति टन के साथ निर्यात किए जा रहे बासमती के अनुबंध मूल्य में काफी अंतर है। समिति एक महीने में अपनी रिपोर्ट पेश करे जिसके बाद बासमती के कम मूल्य के निर्यात पर निर्णय उद्योग जगत द्वारा उचित रूप से लिया जा सकता है।
- एपीडा को इस मामले के बारे में उन्हें संवेदनशील बनाने के लिए व्यापार जगत के साथ परामर्श करना चाहिए और गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात के लिए इस प्रकार के किसी भी उपयोग को रोकने के लिए उनके साथ काम करना चाहिए।