वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जब एक फरवरी को आगामी वित्त वर्ष 2022-23 का बजट संसद में पेश करेंगी तो उनके सामने खाद्य और उर्वरक सब्सिडी का ट्रेंड बदलने का संकेत देने की चुनौती होगी। चालू वित्त वर्ष में राजनीतिक फायदे के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत फ्री अनाज का आवंटन मार्च तक जारी रखने और अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों और उनके कच्चे माल की कीमतों में दो गुना से अधिक तक की बढ़ोतरी के चलते चालू वित्त वर्ष (2021-22) में खाद्य और उर्वरक सब्सिडी पांच लाख करोड़ रुपये को पार कर सकती है। जबकि इसके लिए चालू साल के बजट में केवल 3,22,366 करोड़ रुपये का ही प्रावधान किया गया है। बजट अनुमानों में उर्वरक सब्सिडी के लिए 79,530 करोड़ रुपये और खाद्य सब्सिड़ी के लिए 2,42,836 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। लेकिन बजट के संशोधित अनुमानों में इन दो मदों में सब्सिडी के पांच लाख करोड़ रुपये को पार कर जाने की संभावना है जो चालू साल के कुल बजट के 15 फीसदी के आसपास होगा।
ऐसे में आगामी वित्त वर्ष के बजट में वित्त मंत्री द्वारा इन दो मदों के लिए बजटीय प्रावधान इस बात का संकेत दे सकते हैं कि आगामी वित्त वर्ष (2022-23) के दौरान सरकार खाद्य सब्सिडी और उर्वरक सब्सिडी के मोर्चे पर क्या रुख लेने वाली है। इसमें पहला संभावित कदम हो सकता है कि मार्च के बाद हर माह प्रति व्यक्ति पांच किलो फ्री अनाज देने वाली प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को बंद कर दिया जाए। वहीं दूसरे कदम के रूप में उर्वरक सब्सिडी में बचत के लिए उर्वरकों के दाम बढ़ाए जा सकते हैं। इनमें यूरिया की कीमतों में बढ़ोतरी की अधिक संभावना है। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में यूरिया की कीमत 1000 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है। जबकि देश में कुल उर्वरक खपत में आधे से अधिक उर्वरक खपत यूरिया की ही होती है।
सरकार ने चालू साल (2021-22) के बजट में खाद्य सब्सिडी के लिए 242,836 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत चालू साल के लिए 654.8 लाख टन खाद्यान्न वितरण का आवंटन किया गया है। वहीं प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 448.6 लाख टन खाद्यान्न वितरण का आवंटन किया गया है। इस तरह सरकार द्वारा पीडीएस और गरीब कल्याण योजना के तहत कुल 11.03 करोड़ टन खाद्यान्न का कुल आवंटन किया गया है।
मुफ्त अनाज वाली प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की शुरुआत कोरोना की पहली लहर में लॉक डाउन के दौरान अप्रैल, 2020 से जून 2020 के लिए की गई थी। यह इसका पहला चरण था। उसके बाद इस योजना को नवंबर, 2020 तक बढ़ा दिया गया जो इसका दूसरा चरण था। इसके दूसरे चरण के पीछे बिहार विधान सभा चुनावों को मुख्य वजह माना गया था। उस चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगी जनता दल (युनाइटेड) को राजनीतिक लाभ भी मिला था। भाजपा के बिहार के कई बड़े नेताओं ने इस लेखक के साथ बातचीत में मुफ्त अनाज के चुनावी फायदे की बात स्वीकार की थी। दिलचस्प बात यह है कि दिसंबर, 2020 से अप्रैल 2021 के बीच मुफ्त अनाज की योजना को बंद कर दिया गया था। इसके बाद कोरोना की दूसरी लहर के दौरान इसके तीसरे चरण को मई और जून 2021 के लिए शुरू किया गया। वहीं चौथे चरण में इसे जुलाई से नवंबर, 2021 तक के लिए बढ़ा दिया गया। नवंबर, 2021 के बाद इसके बंद होने की खबरें आ रही थी। लेकिन उसी समय उत्तर प्रदेश सरकार ने इस तरह की योजना शुरू करने की घोषणा कर दी और उसके बाद केंद्र सरकार ने गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त अनाज योजना को नबंवर, 2021 से मार्च, 2022 तक बढ़ा दिया जो इसका पांचवां चरण है। जिसके पीछे उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के आगामी विधान सभा चुनावों को माना जा रहा है। इसमें भी उत्तर प्रदेश में इस योजना का अधिक राजनीतिक लाभ मिलने की संभावना को ध्यान में रखने की बात राजनीतिक विश्लेषक कर रहे हैं। जाहिर सी बात है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब एक फरवरी, 2021 को बजट पेश किया तो उनको मुफ्त अनाज योजना के चलते इतनी सब्सिडी बढ़ने का अनुमान नहीं रहा होगा। लेकिन योजना के मार्च, 2022 तक जारी रहने के चलते अब यह बोझ पड़ना ही है। वित्त वर्ष 2020-21 में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 615.9 लाख टन खाद्यान्न का आवंटन हुआ था जबकि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 315.2 लाख टन खाद्यान्न का आवंटन हुआ था। यानी पूरे साल में कुल 931.1 लाख टन खाद्यान्न का आवंटन हुआ था। पिछले वित्त वर्ष के संशोधित बजट अनुमानों में खाद्य सब्सिडी 4,22,618 करोड़ रुपये रही थी। हालांकि इसमें एक बड़ा हिस्सा भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की उस कर्ज को चुकाने में भी गया जो एफसीआई ने नेशनल स्माल सेविंग्स फंड से लिए पिछले कुछ बरसों में लिया था।
जहां तक चालू वित्त वर्ष की बात है तो दिसंबर, 2021 तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली में 437.1 लाख टन और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना में 308.4 लाख टन खाद्यान्न का वितरण हुआ है। लेकिन पूरे साल के आवंटन का जो ब्यौरा उपर दिया गया है उसके चलते कुल खाद्यान्न आवंटन 11.03 करोड़ टन को पार कर जाएगा। वहीं इसकी वजह से चालू वित्त वर्ष के संशोधित बजटीय अनुमान में खाद्य सब्सिडी के 3.7 लाख करोड़ रुपये को पार करने की संभावना है। जबकि बजट में केवल 2,42,836 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया गया है।
उर्वरक सब्सिडी के लिए चालू वित्त वर्ष के बजट में 79,530 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों और उनके कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते सरकार को दो बार उर्वरक सब्सिडी बढ़ानी पड़ी है। पहली बार जून में डाइ अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) पर सब्सिडी में भारी बढ़ोतरी गई थी। उसके बाद सरकार ने अक्तूबर में डीएपी और कॉम्प्लेक्स उर्वरकों एनपीके पर अतिरिक्त सब्सिडी देने का फैसला लिया। नतीजतन संशोधित बजटीय अनुमानों में उर्वरक सब्सिडी के बढ़कर 1.40 लाख करोड़ रुपये को पार कर जाने की संभावना है।
इस तरह से संशोधित अनुमानों में खाद्य और उर्वरक सब्सिडी पांच लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगी। चालू साल के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 34,83,236 करोड़ रुपये के बजटीय व्यय का अनुमान पेश किया था। जिसमें बजटीय अनुमानों के अनुसार खाद्य और उर्वरक सब्सिडी को कुल बजट का 9.25 फीसदी आंका गया है। इसके पहले साल 2020-21 के संशोधित अनुमानों में खाद्य और उर्वरक सब्सिडी बजटीय अनुमान के 16.13 फीसदी तक पहुंच गई थी। भले ही यह चालू साल के संशोधित बजटीय अनुमान में पिछले साल के स्तर तक न पहुंचे लेकिन 15 फीसदी के स्तर को पार कर सकती है। जबकि 2020-21 के बजटीय अनुमान में खाद्य और उर्वरक सब्सिडी 1,86,879 करोड़ रुपये थी जो कुल बजट की 6.14 फीसदी पर ही थी। यह बात अलग है कि उसके पीछे राजकोषीय घाटे को कम दिखाने के लिए भारतीय खाद्य निगम को नेशनल स्माल सेविंग्स फंड से भारी कर्ज लेने की वजह रही थी और उसके चलते खाद्य सब्सिडी को कम रखा गया था।
अब सवाल यह है कि सब्सिडी बढ़ोतरी को आर्थिक सुधारों के खिलाफ मानने वाले उदारीकरण के समर्थक नीति विशेषज्ञ चाहेंगे कि खाद्य और उर्वरक सब्सिडी पर अंकुश लगाया जाए। इसके दो ही उपाय हैं, पहला है प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत फ्री खाद्यान्न आवंटन को बंद करना और दूसरा, उर्वरकों और खासतौर से यूरिया की कीमतों में इजाफा करना। सरकार के लिए यह दोनों कदम राजनीतिक रूप से बहुत नुकसान वाले नहीं होंगे क्योंकि 2022 में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में ही चुनाव होने हैं जहां इन दोनों मुद्दों पर कोई भारी राजनीतिक नुकसान होने की संभावना नहीं है। इसलिए यह अहम होगा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में जब आगामी एक फरवरी को अगले वित्त वर्ष (2022-23) का बजट पेश करेगी तो उसमें खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के बजटीय प्रावधान सरकार के अगले रुख का संकेत दे देंगे।