प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ किसानों को नहीं, बल्कि बीमा कंपनियों को मिल रहा है। जिन कंपनियों का खेती से दूर-दूर तक संबंध नहीं है, उन्हें केवल मुआवजा बांटने के नाम पर बड़ा लाभ पहुंचाया जा रहा है। राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति के संयोजक विवेकानंद माथने ने यह आरोप लगाया है।
माथने का कहना है, मुआवजे के लिये केंद्र और राज्य सरकारें कृषि बजट में हर साल 20 से 25 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान करती हैं। फसल बीमा योजना के तहत मुआवजा देने के लिये 7 साल में केंद्र और राज्य सरकारों ने 1 लाख 96 हजार 228 करोड़ रुपये फसल बीमा कंपनियों को सौंपे। इसमें से स्वीकृत दावों के अनुसार किसानों को 1 लाख 36 हजार 154 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया। फसल बीमा कंपनियों को केवल मुआवजा बांटने के लिये 7 साल में 60 हजार 73 करोड़ रुपये मिले हैं।
उनका दावा है कि इन सालों में 46.92 करोड़ किसान फसल बीमा योजना में शामिल हुये, जिनमें से केवल 12.98 करोड़ किसानों को मुआवजा मिला है। इनमें भी अनेक किसानों को बहुत कम मुआवजा मिला। 33.94 करोड़ किसानों को कुछ भी नहीं मिला। उल्टा इन किसानों को हर साल जमा किये गये बीमा राशि का नुकसान उठाना पड़ा है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत 2016 में हुई। 2016-17 से 2022-23 के उपलब्ध सरकारी आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि फसल बीमा कंपनियों ने प्रतिवर्ष 8 से 10 हजार करोड़ रुपये के हिसाब से 7 साल में 60 हजार करोड़ रुपये लिए हैं। महाराष्ट्र में उन्हें 12484 करोड़ रुपये, राजस्थान में 10524 करोड़ रुपये, मध्यप्रदेश में 9777 करोड़ रुपये और गुजरात में 6628 करोड़ रुपये मिले हैं।
माथने के अनुसार, ऐसा भी देखने को मिला कि मुआवजा बांटने का काम मुख्य रूप से चुनावी वर्षों के दौरान किया जाता है। मध्यप्रदेश में वर्ष 2017-18 में 5894 करोड़ रुपये, वर्ष 2019-20 में 5812 करोड़ रुपये और वर्ष 2020-21 में 7791 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया है। राज्य में नवम्बर 2018 में विधानसभा चुनाव, मई 2019 में लोकसभा के चुनाव और नवम्बर 2020 में 28 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हुये हैं। मध्यप्रदेश में 6 सालों में कंपनियों को 35506 करोड़ रुपये बीमा हफ्ता प्राप्त हुआ। इसमें से किसानों को 25729 करोड़ रुपये मुआवजा दिया गया और कंपनियों को 9777 करोड़ रुपये मिले हैं। इसका अर्थ यह भी है कि दूसरे सालों में मुआवजा नहीं के बराबर मिला।
उन्होंने कहा, अब महाराष्ट्र सरकार एक रुपये में फसल बीमा योजना शुरू कर रही है। इसमें भले ही किसानों का लाभ दिखाई देता है लेकिन यहां किसानों का बीमा हफ्ता कृषि बजट में कटौती करके ही कंपनियों को दिया जाना है। इसलिये इससे भी किसानों को नुकसान ही होगा। पंजाब, बिहार और पश्चिम बंगाल ने पहले ही खुद को योजना से बाहर किया है। अब दावों के कम भुगतान के कारण आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना और झारखंड ने भी इस योजना को बंद किया है।
माथने कहते हैं, प्राकृतिक आपदा के कारण खेती में फसलों को हर साल बड़ा नुकसान होता है। फसलों को हुये नुकसान के लिये किसानों को मुआवजा देना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार को टेक्नोलॉजी का उपयोग करके ऐसी पारदर्शी योजना बनानी चाहिये कि सभी प्रभावित किसानों को सीधा लाभ मिल सके।