हर बार की तरह सरकार पेश किए गये साल 2022-23 बजट के बजट को लेकर किसान संगठन निराश हैं। भारत किसान यूनियन (बीकेयू) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) से संबद्ध संगठन अखिल भारतीय किसान सभा सरकार के इस बजट से निराश हैं।
किसान संगठन बीकेयू इस बजट को खेती के लिए नकारात्मक मान रहा है। बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार द्वारा यह 'बजट कॉरपोरेट दोस्तों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया है न कि किसानों के हित लिए नही बनाया गया हैं तिलहन पर बीकेयू के प्रेस नोट का हवाला देते हुए कहा गया था कि, सरकार तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देना चाहती है ताकि सरकार ताड़ के तेल की खेती कॉरपोरेट्स के हाथों में सौंप सके। ताड़ के तेल की खेती पर्यावरण और भूजल की दृष्टि से उपयुक्त नहीं है क्योंकि इसकी खेती से दोनों को नुकसान होगा।
बीकेयू के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक का कहना है कि कृषि और संबंधित क्षेत्रों के लिए बजट 4.26 फीसदी से घटाकर 3.84 फीसदी कर दिया गया है. बीकेयू का कहना है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में कृषि बजट की कभी अनदेखी नहीं की गई । फसल बीमा योजना, फसल खरीद के लिए पीएम-आशा योजना और धान की पराली न जलाने के लिए बजट आवंटन कम किया गया है।और एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (एआईएफ) को कम कर दिया गया है। बजट में कृषि इनपुट जैसे बीज, कीटनाशक, ट्रैक्टर सहित उपकरण, पोल्ट्री फीड आदि पर जीएसटी दरों में कोई राहत नहीं दी गई है।
बीकेयू का मानना है कि . यह बजट केवल "अमृत महोत्सव" और "गतिशक्ति" जैसे शब्दजाल बुना गय़ा है। और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट को एक बड़ा शून्य मानती है। यह सरकार का किसान विरोधी सोच को उजागर करती है जिसका हम विऱोध करते हैं।
एआईकेएस ने बजट को 'गरीब विरोधी' और 'किसान विरोधी' करार दिया है। ऐसा लगता है कि यह बजट "सफल आंदोलन" के खिलाफ एकजुट किसानों से बदला लेने के लिए बनाया गया है। एआईकेएस का कहना है कि 2021-22 (संशोधित अनुमानों) में कुल आवंटन 4,74,750 करोड़ रुपये था, जो अब घटकर 3,70,303 करोड़ रुपये हो गया है।
एआईकेएस का कहना है कि, वित्त मंत्री ने भले ही यह अफवाह फैलाने की कोशिश की हो कि धान और गेहूं की खरीद के लिए 2.37 लाख करोड़ रुपये अलग रखे गए हैं, जबकि पिछले साल किए गए 2.48 लाख करोड़ के आवंटन से कम है। इससे एमएसपी लाभार्थी किसानों की संख्या भी 1.97 करोड़ से घटकर 1.63 करोड़ हो जाएगी।
एआईकेएस इस बजट से काफी निराश है, क्योंकि कोरानो महामारी के समय में जब रोजगार के अवसर कम हो गए हैं, मनरेगा बजट के आवंटन में वास्तव में कटौती की गई है। 2021-22 के लिए जहां आरई 98,000 करोड़ रुपये था, वहीं इस बजट में केवल 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। हाल के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि मनरेगा के तहत प्रति परिवार 100 दिन सुनिश्चित करने के लिए लगभग 2.64 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी, जिसमें लगभग 21,000 करोड़ रुपये का बकाया भी शामिल है।