किसान संगठनों और नेताओं ने वित्त वर्ष 2023-24 के बजट को अमीरों का बजट बताते हुए कहा है कि यह किसानों, गरीबों और मेहनतकश जनता के हितों के खिलाफ है। इसे कॉरपोरेट क्रोनियों के इशारे पर तैयार किया गया है। यह कृषि और ग्रामीण विकास के लिए वास्तविक आवंटन पर सिर्फ बयानबाजी है। इसमें न तो एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबकि सी2 प्लस 50% के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लागू किया गया है और न ही एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी सुनिश्चित की गई है। ग्रामीण रोजगार, मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, उर्वरक सब्सिडी आदि के खर्च में भी भारी कटौती कर दी गई है।
किसान नेता और राजनीतिक कार्यकर्ता योगेद्र यादव ने बजट पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। ट्विटर पर एक वीडियो जारी कर उन्होंने कहा है कि इससे बड़ा किसान विरोधी बजट आज तक इस देश के इतिहास में कभी पेश नहीं किया गया। कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों पर पहले जितना खर्च किया जाता था उसमें इस बार भारी भरकम कटौती कर दी गई है। 2022-23 में कुल खर्च का 3.84 फीसदी हिस्सा कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों के लिए आवंटित किया गया था जिसे इस साल घटाकर 3.2 फ़ीसदी कर दिया गया है। सिर्फ कृषि ही नहीं ग्रामीण विकास के खर्च में भी कटौती की गई है। ग्रामीण विकास के लिए पिछली बार कुल खर्च का 5.81 फीसदी आवंटित किया गया था जिसे इस बार 5.29 फीसदी कर दिया गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का भी बजटीय आवंटन 68 हजार करोड़ रुपये से घटाकर 60 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि देश का किसान जानना चाहता है कि आमदनी दोगुनी करने का जो वादा किया गया था उसकी सच्चाई क्या है। 2016 में जब इसकी घोषणा हुई थी तो सरकार के आंकड़ों के हिसाब से प्रति किसान परिवार की आमदनी 8,000 रुपये थी। सरकार की कमेटी ने तब कहा था कि अगर आमदनी दोगुनी करनी है तो महंगाई दर को मिलाकर इसे 2022 तक 21 हजार रुपये करना पड़ेगा। बजट में इसे लेकर कहीं कोई आंकड़ा नहीं है। योगेंद्र यादव ने कहा कि एमएसपी की गारंटी को लेकर भी बजट में कुछ नहीं कहा गया है। सरकार ने चार साल पहले 20 हजार मंडियां बनाने की घोषणा की थी। देशभर में कितनी मंडियां बनी इस बारे में कहीं कोई खबर नहीं है।
अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धावले और महासचिव विजू कृष्णन ने बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि यह बजट ऐसे समय में आया है जब मंदी, जलवायु परिवर्तन के खतरों और अन्य कारणों से अनिश्चितताएं बढ़ी हैं जिनसे किसानों का भरोसा डगमगा गया है। इसमें किसानों और मेहनतकश जनता की आय बढ़ाने के लिए कुछ भी नहीं है। यहां तक कि कृषि के लिए बजटीय आवंटन में भी व्यापक कटौती कर दी गई है। 2022-23 के 1.24 लाख करोड़ रुपये से काफी कम करके 1,15,531.79 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसी तरह उर्वरक सब्सिडी को 2022-23 के संशोधित अनुमान 2.25 लाख करोड़ रुपये से घटाकर 1.75 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। इससे फसलों के उत्पादन और उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। फूड सब्सिडी बिल में 31 फीसदी की बड़ी कटौती की गई है। इसे 2022-23 के संशोधित अनुमान 2,87,194 करोड़ रुपये से घटाकर इस बजट में 1,97,350 करोड़ रुपये कर दिया गया है। ग्रामीण रोजगार के लिए आवंटन में भी भारी भरकम कटौती की गई है। इसे 2022-23 के 1,53,525.41 करोड़ रुपये से घटाकर 1,01,474.51 करोड़ रुपये कर दिया गया है। जबकि मनरेगा के बजटीय आवंटन को 89 हजार करोड़ रुपये से घटाकर 60 करोड़ रुपये किया गया है।
इनके अलावा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री किसान सिंचाई योजना, आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना के बजटीय प्रावधानों में भी कटौती कर दी गई है। अखिल भारतीय किसान सभा ने अपनी सभी इकाइयों से इस किसान विरोधी, मजदूर विरोधी, कॉरपोरेट समर्थक बजट के विरोध में किसानों और श्रमिकों के साथ एकजुट होकर नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए विश्वासघात का पर्दाफाश करने का आह्वान किया है।