कृषि में डिजिटलाइजेशन के विषय पर 21 और 22 नवंबर को दिल्ली में देश के अनेक किसान संगठनों ने सामूहिक चर्चा की। चर्चा में सभी किसान संगठनों ने कृषि में डिजिटलीकरण के बारे में गंभीर चर्चा की और उसके विभिन्न पहलुओं पर अपनी राय व्यक्त की। कई संगठनों के पदाधिकारियों का मत था कि जब तक डाटा की सुरक्षा का कानूनी ढांचा तैयार नहीं होता तब तक सरकार को कृषि में डिजिटलाइजेशन के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ना चाहिए। इस दो दिवसीय वर्कशॉप " कृषि में डिजिटलीकरणः किसान संगठनों के साथ मंथन" का आयोजन रूरल वॉयस, आशा, भारत कृषक समाज और आईटी फॉर चेंज ने मिलकर किया। इसमें उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना और मेघालय के किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
इस मौके पर भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजयवीर जाखड़ ने कहा कि उर्वरक सब्सिडी, बैंक लोन, मौसम का पूर्वानुमान, रजिस्ट्री इन सबको डिजिटलाइज कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट जो डाटा किसानों से संग्रह करते हैं वह डाटा किसानों को भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए। उन्होंने आशंका जताई कि बिचौलियों को खत्म करने के प्रयास में कहीं ऐसा ना हो कि हम बड़े बिचौलियों के हाथों में चले जाएं, जिनका चेहरा भी हम कभी नहीं देख सकेंगे।
कृषि में डिजिटाइजेशन के महत्व को बताते हुए आशा संगठन के नचिकेत ने खेती में इस्तेमाल होने वाले इनपुट, उत्पादन और कृषि बाजार की चर्चा की। उन्होंने कहा कि जब किसी ऐप में खास तरह के फंगीसाइड का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है तो किसान को यह भी देखना चाहिए कि यह सलाह किसी कॉरपोरेट हाउस के ब्रांड को प्रमोट करने के लिए है अथवा किसानों की मदद के लिए। उन्होंने कहा कि इंटरनेट पर प्रचुर मात्रा में डाटा उपलब्ध है लेकिन मूल सवाल यह है कि वे सूचनाएं किसानों की मदद के लिए हैं अथवा बिचौलियों और कॉर्पोरेट हाउस को समृद्ध बनाने के लिए।
आईटी फॉर चेंज के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर परमिंदरजीत सिंह ने कहा कि हम सही तरीके से डिजिटाइजेशन के लिए काम करते हैं। इस वर्कशॉप के उद्देश्य को बताते हुए उन्होंने कहा कि युद्ध शुरू करने से पहले हमारे पास हथियार होने चाहिए।
वर्कशॉप के आरंभिक सत्र को संबोधित करते हुए रूरल वॉयस के एडिटर इन चीफ हरवीर सिंह ने कहा यह कृषि में डिजिटलाइजेशन के युग की शुरुआत है। शुरुआत हो चुकी है और यह आगे जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा सब के मतलब का है चाहे वह किसान हो, ट्रेडर हो अथवा कंज्यूमर।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के वीएम सिंह ने कई महत्वपूर्ण बातों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सभी किसान टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने में सक्षम नहीं हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को गरीब किसानों को गिनीपिग की तरह इस्तेमाल करने के बजाए सरकारी शोध अनुसंधान केंद्रों में प्रयोग करने चाहिए। उन्होंने कहा कि पुरानी पीढ़ी के किसान इंटरनेट अथवा डिजिटल जगत से वाकिफ नहीं हैं। युवा पीढ़ी इनसे वाकिफ है लेकिन उसकी खेती में कोई रुचि नहीं है।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत की राय थी कि जो भी डाटा संग्रह किया जाता है वह किसानों के हित के लिए हो, बिजनेस घरानों के हित के लिए नहीं। युद्धवीर सिंह ने सुझाव दिया कि सरकार को बड़े पैमाने पर डिजिटलाइजेशन की शुरुआत करने से पहले किसानों को शिक्षित करना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार और कंपनियां डिजिटलाइजेशन का फायदा अपने हित में उठाती हैं लेकिन जब किसान की बात आती है इसके जरिये उनके फायदे के कदम नहीं उठाये जाते हैं। किसी भी किसान द्वारा फसल की बिक्री के बाद उसका वजन, उसका भाव और उसकी कीमत के भुगतान की जानकारी किसान उसके अपने घर पहुंचने से पहले मिल जाएगी तो उसे डिजिटलाइजेशन का फायदा होगा।
फार्मर्स मूवमेंट की दक्षिण भारतीय समन्वय समिति के महासचिव कण्णैयन सुब्रमण्यम ने कहा कि कॉरपोरेट जगत देश के प्रतिस्पर्धी सिद्धांतों के खिलाफ है। कॉरपोरेट कंसोलिडेशन को नियंत्रित करने की व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई है। उन्होंने कहा कि हम डिजिटाइजेशन का स्वागत करते हैं लेकिन जब सारा नियंत्रण चुनिंदा हाथों में हो तब चिंता होती है। डाटा की सार्वभौमिकता होनी चाहिए।
बीजेपी किसान मोर्चा के पूर्व महासचिव नरेश सिरोही के अनुसार हमें मैनिपुलेशन और एकाधिकार के मुद्दे पर सावधान रहना चाहिए। इस पर नियंत्रण करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर रेगुलेटरी अथॉरिटी की जरूरत है जिसके पास कानूनी अधिकार भी होने चाहिए। उन्होंने कहा कि डाटा और कृषि उत्पादों की कीमतों का मैनिपुलेशन किसानों को बहुत नुकसान पहुंचाता है।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह ने कहा कि अभी हम डिजिटलाइजेशन की बात कर रहे हैं लेकिन अभी तो देश के बड़े हिस्से में टेलीकॉम और डाटा के इनफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति ही बहुत बदतर है। इसके साथ ही हम केवल किसान के हित में ऐसे किसी कदम के पक्ष में हैं। अगर यह उसके हित में नहीं है तो हम ऐसे डिजिटलीकरण के पक्ष में नहीं हैं।
वर्कशॉप में अन्य किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी अपने विचार रखे। उनका कहना था कि कृषि में डिजिटाइजेशन की नीति टेक्नोलॉजी अथवा आईटी नीति नहीं बल्कि कृषि नीति है। इसलिए यह पॉलिसी तय करने वाली समिति में किसानों के प्रतिनिधि भी होने चाहिए। कृषि में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में होना चाहिए। डिजिटल मोड आवश्यक ना हो तथा इंटरनेट की पहुंच और डिजिटल साक्षरता बढ़ाई जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि किसान की परिभाषा में सिर्फ उन्हें ना शामिल किया जाए जिनके पास खेती की जमीन है, भूमिहीन किसानों को भी किसान डेटाबेस में शामिल किया जाना चाहिए। मछली पालन, डेयरी पालन आदि कार्यों में लगे किसानों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। सर्वसम्मत राय यह थी कि अपने डेटा पर किसानों का हमेशा नियंत्रण होना चाहिए। उनके डाटा के साथ जो कुछ भी हो वह उनकी सहमति से ही हो। यही नहीं, जिस तरह निजी क्षेत्र किसानों और सरकार के डाटा का इस्तेमाल करता है उसे भी अपना डाटा सरकार और किसानों को उपलब्ध कराना चाहिए। अनेक किसान नेताओं ने इस बात पर आशंका जताई की खेती में डिजिटाइजेशन से किसानों की आमदनी बढ़ने के बजाय कॉरपोरेट घरानों की आमदनी बढ़ाने में मददगार साबित होगी।
कृषि में डिजिटलीकरण पर किसान संगठनों के साथ मंथन के इस कार्यक्रम में देश के करीब दर्जन भर राज्यों के किसान संगठनों के पदाधिकारियों ने भाग लिया। उनमें भारतीय किसान युनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत, राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह, राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी.एम. सिंह, स्वाभीमानी शेतकरी संघटना के अध्यक्ष और पूर्व सांसद राजू शेट्टी, ऑल इंडिया किसान सभा के अध्यक्ष रावुला वेंकैया, भारतीय किसान यूनियन लाखोवाल के प्रवक्ता नछत्तर सिंह, बीकेयू कादियान के रवनीत सिंह बरार, भाजपा किसान मोर्चा के पूर्व महासचिव नरेश सिरोही, भारतीय किसान संघ से मनोहर सुहास, हिल फार्मर्स यूनियन मेघालय से अलफोनबर्थ, कर्नाटक राज्य रैयत संघ से चुक्की नंजुदास्वामी, किसान आंदोलन की दक्षिण भारत कोआर्डिनेशन कमेटी जनरल सेक्रेटरी कन्नैया सुब्रमण्यम, मध्य प्रदेश से दीपक पांडे समेत केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, झारखंड, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसान प्रतिनिधिनियों ने वर्कशाप में कृषि में डिजिटलीकरण के विभिन्न पहलुओं पर गंभीर चर्चा की और अपनी राय व्यक्त की।