तीन दिन पहले 11 अप्रैल को भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा इस साल सामान्य मानसून का जो अनुमान जारी किया गया था, उसके गड़बड़ाने की आशंका बढ़ गई है। इसकी वजह मई से जुलाई के बीच अल-नीनो की संभावना बढ़कर 62 फीसदी होना है। अल-नीनो का भारत में मानसून की बारिश पर प्रतिकूल असर पड़ता है। वहीं जून-जुलाई-अगस्त में अल-नीनो की संभावना 75 फीसदी और जुलाई-सितंबर में 80 फीसदी हो गई है। अमेरिकी नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फिरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने 13 अप्रैल को अल-नीनो की संभावना के ताजा अनुमान जारी किए हैं।
इससे पहले के एनओएए के अनुमान में जुलाई-सितंबर के दौरान अल-नीनो की संभावना 55 फीसदी रहने की बात कही गई थी। इसी आधार पर आईएमडी ने अपने अनुमानों में कहा था कि अल-नीनो की संभावना मानसून सीजन के दूसरे हिस्से में है इसलिए इस साल भारत में मानसून सामान्य रहेगा।
एनओएए अनुमानों के मुताबिक, इस साल फरवरी तक ला-नीना था। मार्च में स्थिति सामान्य रही। उसके बाद अल-नीनो की संभावना बनने लगी जो मई से जुलाई की अवधि में 62 फीसदी, जून से अगस्त की अवधि में 75 फीसदी और जुलाई-सितंबर अवधि में 80 फीसदी बन गई है।
प्रशांत महासागर के पूर्वी और केंद्रीय हिस्से में जब समुद्री सतह का तापमान (सी सरफेस टेंपरेचर) सामान्य से अधिक होने लगता है तो उस स्थिति को अल-नीनो कहते हैं। इस स्थिति में समुद्र के पानी के गरम होने के चलते प्रशांत महासागर के इस हिस्से में बादल बनने लगते हैं और उसके चलते दक्षिणी अमेरिका के पेरू व अमेरिका के खाड़ी वाले क्षेत्रों में बारिश अधिक होती है। इसके उलट प्रशांत महासागर के पश्चिमी हिस्से जिसमें ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया आता है वहां बारिश की संभावना कमजोर हो जाती है क्योंकि वहां बादल बनने (क्लाउड फार्मेशन) की संभावना कम हो जाती है और उससे भारत में मानसून में होने वाली बारिश पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
अमेरिकी सेंटर की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक माह में इस्टर्न इक्वेटोरियल पैसिफिक ओशन में समुद्री सतह के तापमान में सामान्य से अधिक रहने का बड़ा बदलाव आया है। वहीं पिछले सप्ताह दक्षिणी अमेरिकी तटीय क्षेत्र में समुद्री सतह के प्रभावी रूप से गरम होने के आंकड़े सामने आए हैं जिसके तहत नीनो इंडेक्स 2.7 डिग्री तक पहुंच गया है। पूरे क्षेत्र में समुद्री सतह के गरम होने की स्थिति बनी है जिससे क्षेत्रीय औसत तापमान पिछले माह के मुकाबले अधिक रहा है। इसके पांच डिग्री होने पर अल-नीनो घोषित हो जाता है।
यह स्थिति मई से जुलाई के बीच होने की बन रही है। भारत में मानसून जून में शुरू होता है और उस समय बारिश पर निर्भर वाले क्षेत्रों में खरीफ की फसलों की बुआई शुरू होती है।
आईएमडी ने 11 अप्रैल को इस साल के अपने पहले मानसून अनुमानों को जारी करते हुए कहा था कि अल-नीनो के बावजूद मानसून में सामान्य बारिश होने की संभावना है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने अपने पूर्वानुमान में कहा है कि इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-सितंबर) के दौरान 96 फीसदी बारिश होने की संभावना है। अनुमान जारी करते हुए आईएमडी के महानिदेशक एम महापात्रा ने कहा था कि सामान्य से अधिक बारिश होने की 67 फीसदी संभावना है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि इस साल अल-नीनो की संभावना तो है लेकिन यह मानसून के दूसरे हिस्से में है।
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आईएमडी का दूसरा अनुमान मई के अंतिम दिनों में जारी होगा। तब तक अल-नीनो की स्थिति भी साफ हो जाएगी और उस समय मानसून का सटीक अनुमान सामने आ सकता है। लेकिन एनओएए का ताजा अनुमान आईएमडी द्वारा जारी पूर्वानुमानों के लिए बड़ा सवाल खड़ा करने वाला है। अल-नीनो के मजबूत होने की स्थिति में अधिकांश समय भारत मानसून पर प्रतिकूल असर पड़ा है। कुछ ही अपवाद हैं जब मजबूत अल-नीनो के बावजूद भारत में मानसून सामान्य रहा है। लगातार चार अच्छे मानसून के चलते देश में कृषि उत्पादन की वृद्धि दर बेहतर रही है। इन बरसों में बारिश सामान्य से अधिक हुई है। अगर इस साल मानसून सामान्य नहीं रहता है तो उसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
आईएमडी द्वारा सामान्य मानसून का अनुमान जारी करने के बाद कृषि उपकरणों, ट्रैक्टर निर्माता कंपनियों और एफएमसीजी कंपनियों को बेहतर कारोबार की उम्मीद बन गई थी। लेकिन अमेरिकी मौसम अनुमान सेंटर की यह रिपोर्ट इन सभी के लिए परेशानी वाली साबित हो सकती है। साथ ही बेहतर कृषि उत्पादन के चलते महंगाई पर नियंत्रण पाने की भारतीय रिजर्व बैंक की कोशिशों के लिए भी एक नई चुनौती खड़ी करने वाली साबित हो सकती है।