महामारी के दौरान शिक्षा का स्तर गिरा, गांवों में 37 फीसदी बच्चे पढ़ाई से दूर

हाल में किए गए एक सर्वे में पिछले डेढ़ साल से स्कूल बंद होने के गंभीर नतीजे सामने आए हैं। शहरों में 19 फीसदी बच्चे बिल्कुल पढ़ाई नहीं कर रहे थे तो गांवों में आंकड़ा 37 फीसदी है। जो पढ़ रहे हैं उनमें से आधे से अधिक कुछेक शब्दों के आगे नहीं पढ़ पाते। सिर्फ 8 फीसदी बच्चे ही नियमति रूप से ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे हैं। सर्वे के मुताबिक ज्यादातर अभिभावक चाहते हैं कि स्कूल जल्द से जल्द खुलें।सर्वे के नतीजों के मुताबिक शहरों के 24 फीसदी बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे तो गांवों के महज 8 फीसदी। शहरों में 42 फीसदी बच्चे ऐसे थे जो कुछ शब्दों से ज्यादा नहीं पढ़ सकते तो ग्रामीण भारत में हालात बदतर हैं यहां ऐसे बच्चों की आंकड़ा 48 फीसदी है।

नई दिल्ली

गरीब परिवारों के करीब 1,400 बच्चों के बीच हाल में किए गए एक सर्वे में पिछले डेढ़ साल से स्कूल बंद होने के गंभीर नतीजे सामने आए हैं। शहरों में 19 फीसदी बच्चे बिल्कुल पढ़ाई नहीं कर रहे थे तो गांवों में आंकड़ा 37 फीसदी है। जो पढ़ रहे हैं उनमें से आधे से अधिक कुछेक शब्दों के आगे नहीं पढ़ पाते। सिर्फ 8 फीसदी बच्चे ही नियमति रूप से ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे हैं। सर्वे के मुताबिक ज्यादातर अभिभावक चाहते हैं कि स्कूल जल्द से जल्द खुलें। सर्वे के नतीजों के मुताबिक शहरों के 24 फीसदी बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे तो गांवों के महज 8 फीसदी। शहरों में 42 फीसदी बच्चे ऐसे थे जो कुछ शब्दों से ज्यादा नहीं पढ़ सकते तो ग्रामीण भारत में हालात बदतर हैं यहां ऐसे बच्चों की आंकड़ा 48 फीसदी है।

   क्या बच्चे पढ़ रहे हैं

 कोराना काल में पढ़ाई स्थिति

शहरी

 ग्रामीण

नियमित रुप से पढ़ रहे बच्चे

47

28

 कभी कभी पढ़ रहे है

34

35

बिल्कुल नही पढ़ रहे है।

19

37

स्कूल चिल्ड्रन ऑफलाइन एंड ऑनलाइन लर्निंग स्कूल सर्वे की आपात रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली है। इस साल अगस्त माह में 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कराए गए इस सर्वे में असम, कूचबिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, झारखंड, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के बच्चों को शामिल किया गया।  इस सर्वे में अपेक्षाकृत गरीब और वंचित बस्तियों पर ध्यान दिया गया। जहां अमूमन बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। सर्वे में शामिल 1362 परिवारों में से प्रत्येक प्राइमरी और अपर प्राइमरी में पढ़ने वाले एक-एक बच्चे से बात की। सर्वे में कहा गया है कि यह अब तक की सबसे लंबी अवधि है जब स्कूल इतने वक्त के लिए बंद रहे हैं। इसका असर साफ दिख रहा है। इस दौरान शहरी क्षेत्रों के 19 फीसदी बच्चे और 37 फीसदी ग्रामीण बच्चे पढ़ाई छोड़ चुके हैं या बिल्कुल भी नहीं पढ़ रहे हैं। सर्वे में सामने आया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आधे परिवारों के पास स्‍मार्टफोन नहीं है। जिन परिवारों के पास फोन है भी तो उनके पास इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है या डेटा पैक के लिए पैसे नहीं हैं।

आनलाइन शिक्षा के कमजोर पहलू

शहरों में 23 फीसदी अभिभावक मानते हैं कि उनके बच्चों को ऑनलाइन पर्याप्त शिक्षा मिल रही है तो ग्रामीण भारत में ऐसा मानने वालों की संख्या महज 8 फीसदी है। गांवों के 75 फीसदी मानते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उनके बच्चों की पढ़ने की क्षमता घट गई है वहीं ग्रामीण भारत के 97 फीसदी अभिभावक मानते हैं कि स्कूल दोबारा खुलने चाहिए। इस सर्वे का पहला राउंड अगस्त 2021 में 1362 घरों के कक्षा एक से 8 तक के 1362 बच्चों में किया गया। देश में प्राइमरी स्कूल पिछले 500 से ज्यादा दिन यानी करीब 17 महीने से बंद हैं। इस दौरान बहुत कम सुविधा संपन्न बच्चे घर के सुखद और सुरक्षित माहौल में ऑनलाइन पढ़ाई कर पाए लेकिन स्कूल में तालाबंदी के चलते बाकी बच्चों के पास कोई खास चारा नहीं था। कुछ ने ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई के लिए संघर्ष किया तो कुछ ने पढ़ाई से हार मान ली और कुछ काम धंधा न होने की वजह से गांव मोहल्ले में घूमते रहे। वह न केवल पढ़ने के अधिकार बल्कि स्कूल जाने से मिलने वाले दूसरे फायदों, सुरक्षित माहौल, बढ़िया पोषण, स्वस्थ सामाजिक जीवन से वंचित हो गए। इस लॉकडाउन के अनर्थकारी नतीजों को समझने का वक्त आ गया है। इस आपात रिपोर्ट में स्कूल चिल्ड्रेन ऑनलाइन एंड ऑफलाइन लर्निंग (स्कूल) सर्वे के नतीजों को पेश किया गया है।

इस सर्वे के नतीजे खासकर ग्रामीण इलाकों के लिए निराशाजनक हैं। ग्रामीण इलाकों में केवल 28 फीसदी बच्चे नियमित पढ़ाई कर रहे हैं। 37 फीसदी बिल्कुल नहीं पढ़ रहे हैं। इस सर्वे को वालंटियर ने अंजाम दिया है जो यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट हैं। 1400 परिवारों में से 60 फीसदी ग्रामीण भारत में रहते हैं और 60 फीसदी दलित और अनुसूचित जनजाति से हैं। इस रिपोर्ट में ग्रामीण और शहरी स्कूलों के आंकड़ों के साथ रखा गया है जबकि विस्तृत रिपोर्ट अभी तैयार हो रही है।

ऑनलाइन शिक्षा का अफसाना, स्कूल सर्वे ये बताया है कि ऑनलाइन शिक्षा की पहुंच बहुत सीमित है। ग्रामीण इलाकों में महज 8 फीसदी ऑनलाइन पढाई कर रहे थे इसकी वजह ये है कि ग्रामीण भारत में आधे परिवारों (सैंपल में शामिल) के पास स्मार्टफोन नहीं है। जिन परिवारों में स्मार्टफोन हैं भी उनमें नियमित रूप से पढ़ाई करने वालों का शहर में अनुपात 31 तो गांव में 15 फीसदी है। स्मार्टफोन अक्सर कामकाजी बड़े लोगों के पास होते हैं वो अक्सर छोटे बच्चों को नहीं मिल पाते हैं। सर्वे में पता चलता है कि महज 9 फीसदी के अपना मोबाइल था। ग्रामीण इलाकों में यह भी देखा गया है कि जो बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं उन्हें स्कूल से जो ऑनलाइन सामग्री भेजी जा रही है उसकी समझ नहीं है और बच्चों को भी ऑनलाइन पढ़ाई की समझ नहीं रही है या वह ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे।

आन लाइन पढ़ाई के कई मुश्किलें

आन लाइन पढ़ाई के जरूरी परिवार के पास सुविधाएं

 शहरी

 ग्रामीण

जिनके पास स्मार्ट फोन है

77

51

जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं है

24

8

बच्चो के पढ़ाई में आन लाइन के पढ़ाई स्मार्ट संसाधन की कमी

 बच्चों खुद के पास स्मार्ट फोन नही है

30

36

खराब नेटवर्क

9

9

डाटा के लिए पैसे नहीं है

9

6

बच्चों को आनलाइन पढ़ाई की समझ नहीं आती

12

10

स्कूल आनलाइन सामग्री नहीं भेजता

14

43

अन्य

15

10

ऑफलाइन चिल्ड्रेन ( जो बच्चे सर्वे के वक्त ऑफलाइन पढ़ाई कर रहे थे) इसके बहुत कम सबूत है कि वह नियमित अध्ययन कर रहे थे। उनमें से ज्यादातर या तो बिल्कुल नहीं पढ़ रहे या फिर कभी कभार घर पर खुद पढ़ लेते हैं। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में तालेबंदी के दौरान ऑफलाइन पढ़ाई के लिए कुछ नहीं किया गया। कर्नाटक, महाराष्ट्र पंजाब और महाराष्ट्र में कुछ प्रयास जरूर किए गए। मिसाल के तौर पर ऑफलाइन चिल्ड्रन को वर्कशीट दिए गए और या फिर शिक्षकों को समय-समय पर जाकर उनसे मशविरा करने के निर्देश दिए गए। ऑफलाइन पढ़ाई के मुख्य माध्यम (मुख्यत: शहरी इलाकों में) प्राइवेट ट्यूशन थे, और ज्यादातर मामलों में परिवार के किसी सदस्य या सदस्य के बगैर पढ़ाई चल रही थी। लेकिन घर पर पढ़ाई नियमित नहीं थी।

गऱीब बच्चे अधिक प्रभावित हुए

इस सर्वे के 30 दिन पहले तक ज्यादातर बच्चों (शहरी इलाकों में 51 फीसदी और ग्रामीण इलाकों में 58 फीसदी) की अपने शिक्षकों से भेंट नहीं हुई थी। कुछ अभिभावकों ने बताया कि पिछले 3 महीने के दौरान कोई शिक्षक घर नहीं आया या पढ़ाई में कोई मदद नहीं की। गाहे बगाहे उनमें से कुछ एक को व्हाट्सएप के जरिए यूट्यूब लिंक फॉरवर्ड करने जैसे सांकेतिक ऑनलाइन इंटरैक्शन को छोड़कर ज्यादातर शिक्षक अपने छात्रों से बेखबर लगते है।

प्राइवेट स्कूलों से पलायन

मार्च 2020 में जब लॉकडाउन शुरू हुआ था 20 फीसदी स्कूल चिल्ड्रन ने किसी प्राइवेट स्कूल में एडमिशन ले रखा था। इस दौरान कई स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा अपनाकर उबरने का प्रयास किया और फीस लेना जारी रखा। गरीब परिवार आमदनी कम होने या फिर ऑनलाइन शिक्षा के कारगर न होने की वजह से अक्सर फीस और दूसरे खर्च (स्मार्ट मोबाइल और रिचार्ज) के लिए आनाकानी करते रहे। शायद मुख्यत: इसी वजह से कई बच्चों ने सरकारी स्कूलों में दाखिला ले लिया। सर्वे में शामिल 26 फीसदी बच्चे पहले प्राइवेट में शामिल थे फिर सरकारी स्कूलों में पढ़ने लगे। स्कूल खोलने की मांग जिस वक्त सर्वे किया गया था उस दौरान भी ज्यादातर अभिभावक चाहते थे कि स्कूल खुल जाए। सर्वे में जिन अभिभावकों से बात की गई,उनमें से ज्यादातर चाहते से जल्द से जल्द स्कूल खुल जाए। शहरी इलाकों में बहुत कम (10 फीसदी) अभिभावकों को इस बारे में कुछ झिझक थी। यहां तक कि कुछ अभिभावकों ने स्कूल खोलने का विरोध भी किया। लेकिन ग्रामीण इलाकों में 97 फीसदी अभिभावक चाहते थे कि जल्द से जल्द स्कूल खुल जाएं।