एग्री मार्केटिंग पर बनी समिति ने किसानों की आय सुनिश्चित करने के लिए दिया मूल्य बीमा योजना का सुझाव

एक मुख्य सुझाव है 'मूल्य बीमा योजना' शुरू करना, ताकि किसानों की आय बुवाई के समय ही सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा, उपज बेचने के दिन ही ऑनलाइन या अधिकतम अगले दिन किसानों को भुगतान करने का सुझाव दिया गया है। अन्य महत्वपूर्ण सुझावों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल में खाद्य प्रसंस्करण और निर्यात इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना, जीएसटी काउंसिल की तर्ज पर राज्य कृषि मंत्रियों की एक एंपावर्ड समिति का गठन करना शामिल हैं।

राष्ट्रीय कृषि मार्केटिंग नीति फ्रेमवर्क के लिए गठित मसौदा समिति ने एक सशक्त कृषि मार्केटिंग इकोसिस्टम विकसित करने के लिए कई सुझाव दिए हैं। एक मुख्य सुझाव है 'मूल्य बीमा योजना' शुरू करना, ताकि किसानों की आय  बुवाई के समय ही सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा, उपज बेचने के दिन ही ऑनलाइन या अधिकतम अगले दिन किसानों को भुगतान करने का सुझाव दिया गया है। अन्य महत्वपूर्ण सुझावों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल में खाद्य प्रसंस्करण और निर्यात इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना, ई-नाम को एपीएमसी बाजारों से बाहर विस्तार देना, जीएसटी काउंसिल की तर्ज पर राज्य कृषि मंत्रियों की एक एंपावर्ड समिति का गठन करना, सभी किसानों को किसी न किसी किसान संगठन के तहत लाना और किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के माध्यम से बाजार लिंकेज और फ्यूचर-ऑप्शन व्यापार पर फोकस करना शामिल हैं।  

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण विभाग ने 25 जून 2024 को मार्केटिंग के अतिरिक्त सचिव फैज़ अहमद किदवई की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति का गठन किया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट- नेशनल पॉलिसी फ्रेमवर्क ऑन एग्रीकल्चर मार्केटिंग- सौंप दी है, जिस पर विभाग ने संबंधित पक्षों से 15 दिनों के भीतर सुझाव मांगे हैं। इस समिति का उद्देश्य ऐसे उपाय सुझाना है जिनसे किसान अपनी पसंद के बाजार तक पहुंच सकें और अपनी उपज का सर्वोत्तम मूल्य प्राप्त कर सकें, मार्केटिंग के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ सके, पारदर्शिता आए, आधुनिक डिजिटल तकनीक और कृषि मूल्य श्रृंखला आधारित मार्केटिंग को अपनाया जा सके।

ड्राफ्ट में कहा गया है कि पिछले 10 वर्षों में कृषि आय सालाना 5.23% की दर से बढ़ी है, जबकि गैर-कृषि क्षेत्र में यह दर 6.24% और समग्र अर्थव्यवस्था में 5.80% रही है। इस प्रकार कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र की आय वृद्धि दर में अंतर मामूली है। पिछले दो दशकों में कृषि में तेज वृद्धि का कारण बागवानी फसलों, पशुधन और मत्स्य पालन की ओर विविधीकरण रहा है। मत्स्य पालन के उत्पादन मूल्य में 9.08% की सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई, इसके बाद पशुधन क्षेत्र में 5.76% और फसल क्षेत्र में 2.34% वार्षिक वृद्धि हुई।  

मसौदा में यह स्वीकार किया गया है कि विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसान कृषि क्षेत्र में इस विकास का लाभ उठाने में असमर्थ हैं। ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था के बीच एक बड़ा अंतर अब भी देखा जा सकता है और किसानों का एक बड़ा वर्ग अब भी अपनी आय बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रहा है। प्रमुख कारणों में अत्यधिक छोटी होती जोत, उत्पादन की ऊंची लागत, मांग आधारित उत्पादन न करना, बाजारों तक पहुंच की कमी और उपज का उपयुक्त मूल्य प्राप्त करने में कठिनाई शामिल हैं। इसमें कहा गया है कि ब्लॉकचेन तकनीक जैसे डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का उपयोग, इनोवेशन, उचित कौशल विकास और पारदर्शिता किसानों की आय बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं।

कृषि उपज के थोक बाजार
देश में 31 मार्च 2024 तक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के एपीएमसी अधिनियमों के तहत 7057 रेगुलेटेड थोक बाजार थे। इन बाजारों का घनत्व राज्यवार भिन्न है और एक रेगुलेटेड बाजार औसतन 407 वर्ग किमी क्षेत्र में सेवा देता है, जबकि मानदंड 80 वर्ग किमी का है। इससे भी बदतर यह है कि 1100 से अधिक बाजार काम नहीं कर रहे हैं। 

ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 500 से अधिक अनियमित थोक बाजार हैं और इनमें से अधिकांश बाजारों में बुनियादी ढांचे / सुविधाओं की स्थिति बहुत खराब है। ये अनियमित थोक बाजार उन राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में हैं जहां या तो एपीएमसी अधिनियम अस्तित्व में नहीं हैं या वे काम नहीं करते (केरल, बिहार, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और पूर्वोत्तर राज्य)। 

महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में लगभग 125 निजी थोक बाजार हैं। इन बाजारों को किसान-बाजार लिंकेज में सुधार और प्रतिस्पर्धा के उद्देश्य से प्रोत्साहित किया गया है। इन बाजारों की कार्यक्षमता, उनसे प्राप्त लाभ और उनके प्रबंधन और संचालन में निजी मालिकों की चुनौतियों के बारे में कोई स्वतंत्र अध्ययन उपलब्ध नहीं है। देश में लगभग 700 किसान-उपभोक्ता बाजार हैं, जहां किसान अपने उत्पादों को, मुख्य रूप से जल्दी खराब होने वाले उत्पादों को, उपभोक्ताओं को सीधे खुदरा में बेचते हैं।

ड्राफ्ट में कहा गया है कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग राज्यों के साथ मिलकर भौगोलिक क्षेत्र, उत्पादन पैटर्न, मार्केटिंग योग्य अधिशेष, परिवहन सुविधा और अन्य लॉजिस्टिक्स को ध्यान में रखते हुए बाजार घनत्व की आवश्यकता को राज्यवार फिर से परिभाषित करेगा। किसानों और बाजार के बीच बेहतर संबंध बनाने और किसानों की पहुंच बढ़ाने के लिए, राज्यों को बड़ी संख्या में गोदामों/कोल्ड स्टोरेज को उप-बाजार यार्ड घोषित करना चाहिए। यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रारंभ में प्रत्येक राजस्व मंडल में कम से कम एक निजी बाजार हो, जिसे बाद में प्रत्येक जिले में बढ़ाया जाना चाहिए।  

कृषि मूल्य श्रृंखला और मार्केटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर 
ड्राफ्ट में कहा गया है कि बदलते मार्केटिंग परिदृश्य में शुरू से अंत तक मूल्य श्रृंखला केंद्रित इन्फ्रास्ट्रक्चर (VCCI) और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जाए। मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर को केवल उन्नत करने या इसे अलग-थलग विकसित करने की बजाय आवश्यकता आधारित VCCI का निर्माण करना आवश्यक है, ताकि प्रभावी और पारदर्शी मार्केटिंग का लाभ किसानों को मिल सके। मूल्य श्रृंखला केंद्रित इन्फ्रास्ट्रक्चर आपूर्ति श्रृंखलाओं के एकीकरण और लेनदेन लागत को कम करने में सहायक होगा।  

फसल कटाई के बाद का इन्फ्रास्ट्रक्चर वर्तमान में अपर्याप्त है और यह मार्केटिंग अक्षमताओं का कारण बनता है। इसे सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। गांव/ग्राम पंचायत स्तर पर या छोटे शहरों में, फसल कटाई के बाद मार्केटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे संग्रह केंद्र, खरीद केंद्र, प्राथमिक और सेकंडरी मूल्य संवर्धन सुविधाएं, सुखाने की सुविधाएं, पैकेजिंग सुविधाएं, गुणवत्ता परीक्षण केंद्र, छोटे भंडारण केंद्र आदि विकसित किए जाने चाहिए।  

जिला या क्षेत्रीय स्तर पर, प्रसंस्करण और निर्यातोन्मुख प्रिसीजन इन्फ्रास्ट्रक्चर/सुविधाएं विकसित की जानी चाहिए। अधिकांश एपीएमसी बाजारों में इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुविधाएं अपर्याप्त हैं। राज्यों को निजी क्षेत्र की भागीदारी और अधिमानतः पीपीपी मोड में इस अंतर को पाटने पर विचार करना चाहिए। ब्लॉकचेन तकनीक, एआई/एमएल आदि का उपयोग करके खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति श्रृंखला प्रक्रियाओं को खेत से भंडारण और खाद्य प्रसंस्करण केंद्रों तक डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण इसमें मददगार हो सकता है।  

एपीएमसी से बाहर भी ई-नाम का विस्तार  
मसौदा रिपोर्ट के अनुसार एपीएमसी बाजारों से परे सार्वजनिक और निजी संग्रह/खरीद केंद्रों, असेंबली बाजारों, गोदामों/कोल्ड स्टोरेज आदि को उप-बाजार यार्ड घोषित करके ई-नाम को विस्तार दिया जा सकता है। इसके लिए ई-नाम का एक उन्नत संस्करण विकसित करने की आवश्यकता होगी। मार्च 2000 से लागू मार्केट इंफॉर्मेशन सिस्टम (MIS) को उन्नत किया जाना चाहिए। यह उन्नत पोर्टल मार्केट-स्टैक का हिस्सा हो सकता है, जो वास्तविक समय में बुवाई और मूल्य संबंधी जानकारी प्रदान करेगा।  

राज्य किसानों की जनसांख्यिकी, उत्पादन पैटर्न आदि के आधार पर जिला या किसी अन्य इकाई स्तर पर भौतिक उत्पादन और वैल्यू चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर में कमी पर विचार कर सकते हैं। इसके लिए राज्य जिला कलेक्टर/मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में इन्फ्रास्ट्रक्चर गैप विश्लेषण समिति (IGAC) का गठन कर सकते हैं।

एपीएमसी को अधिक पेशेवर बनाना 
2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत के संगठित मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है। यह संगठित क्षेत्र में कुल रोजगार का 12 प्रतिशत देता है। 2022-23 में प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात सहित कृषि-खाद्य निर्यात का मूल्य भारत के कुल निर्यात का लगभग 11.7 प्रतिशत था। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए एपीएमसी को मार्केट यार्ड में खाद्य प्रसंस्करण गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए और इसे पीपीपी मोड में लागू करना चाहिए। इसके लिए एपीएमसी में स्थान आरक्षित किया जा सकता है और मिलेट जैसे उत्पादों की मूल्य श्रृंखला आधारित मार्केटिंग के लिए सुविधाएं विकसित की जा सकती हैं।  

जैविक खेती के उत्पादों की मार्केटिंग 
रिपोर्ट के अनुसार, घरेलू बाजार के साथ-साथ विदेशी बाजार में भी पर्याप्त संभावनाएं हैं। हालांकि, जैविक और प्राकृतिक खेती के किसानों को जैविक उत्पाद या प्राकृतिक खेती के उत्पाद के प्रमाणन की समस्या के साथ उत्पादों के मार्केटिंग की समस्या से भी जूझना पड़ता है। उपभोक्ता क्वालिटी उत्पाद खरीदने के इच्छुक हैं, लेकिन उनकी उपलब्धता और जैविक होने की विश्वसनीयता इसमें बाधक है। इसलिए जैविक और प्राकृतिक खेती के उत्पादों के लिए बाजार विकसित करने और उसे बढ़ावा देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। एपीएमसी समर्पित बाजार और इन्फ्रास्ट्रक्चर/सुविधाएं प्रदान करके इसमें भूमिका निभा सकते हैं। राज्यों को जैविक और प्राकृतिक खेती के उत्पादों की मार्केटिंग के लिए संभावित एपीएमसी बाजारों में विशेष समर्पित स्थान निर्धारित करने का प्रयास करना चाहिए।

एपीएमसी में सुधारों के सुझाव  
एपीएमसी सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल में गुणवत्ता जांच, सफाई, छंटाई, ग्रेडिंग, मूल्य संवर्धन/प्रसंस्करण जैसी सेवाएं प्रदान करने के लिए मार्केट यार्ड में बुनियादी ढांचा विकसित करने का प्रयास कर सकते हैं। राज्य कुछ ऐसे एपीएमसी की पहचान कर सकते हैं, जिनमें निर्यात बाजार बनने की क्षमता हो। वहां उत्पाद को निर्यात योग्य बनाने के लिए आवश्यक सभी बुनियादी सुविधाएं विकसित की जानी चाहिए।

प्रतिस्पर्धी, पारदर्शी और कुशल मार्केटिंग तंत्र
रिपोर्ट में एक ऐसे इकोसिस्टम की बात कही गई है जिसमें किसानों को अपने उत्पाद किसी भी मार्केटिंग चैनल के माध्यम से और सबसे अधिक कीमत देने वाले खरीदार को बेचने की स्वतंत्रता हो। कृषि मार्केटिंग में डिजिटल तकनीक का उपयोग पारदर्शिता बढ़ाने और मूल्य निर्धारण में सुधार के लिए महत्वपूर्ण है।  

हाल ही में कृषि और किसान कल्याण विभाग ने राज्यों के साथ मिलकर सुधार के 12 क्षेत्रों की पहचान की है। इनमें निजी थोक बाजार स्थापित करने की अनुमति देना; प्रोसेसर, निर्यातकों, संगठित खुदरा विक्रेताओं, थोक खरीदारों को खेत से सीधा खरीदने की अनुमति देना; गोदामों/साइलो/कोल्ड स्टोरेज को डीम्ड मार्केट यार्ड के रूप में घोषित करना; निजी ई-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म स्थापित करने और संचालित करने की अनुमति देना, राज्यभर में एक बार बाजार शुल्क लगाना, पूरे राज्य में मान्य एकल व्यापार लाइसेंस, बाजार शुल्क और कमीशन शुल्क का पुनर्गठन; अन्य राज्यों के व्यापार लाइसेंस को मान्यता देना और प्रसंस्करण इकाइयों में किसानों/एफपीओ द्वारा सीधी बिक्री पर बाजार शुल्क से छूट जैसे प्रावधान शामिल हैं।  

जीएसटी पर राज्यों के वित्त मंत्रियों की समिति की तर्ज पर केंद्रीय कृषि मंत्रालय और राज्य सरकारें मिलकर राज्य कृषि मंत्रियों की एक अधिकार प्राप्त समिति का गठन कर सकती हैं। इसका उद्देश्य राज्यों को एपीएमसी अधिनियम में सुधार को अपनाने, नियमों को अधिसूचित करने और एकल लाइसेंसिंग/पंजीकरण प्रणाली और एकल शुल्क के माध्यम से कृषि उत्पादों के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार की ओर बढ़ने के लिए उनके बीच सहमति बनाना होगा।

लाइसेंस/रजिस्ट्रेशन का डिजिटलीकरण  
ड्राफ्ट में कहा गया है कि डिजिटलीकरण से न केवल लाइसेंस/रजिस्ट्रेशन जारी करने की प्रक्रिया को आसान और समय बचाने वाला बनाया जा सकता है, बल्कि यह पारदर्शी भी होगा। निजी बाजारों की स्थापना, ई-ट्रेडिंग प्लेटफार्म, व्यापारियों, कमीशन एजेंटों और बाजार से जुड़े अन्य के लिए लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण और ऑटोमेशन किया जाना चाहिए। मार्केट-स्टैक या यूनिफाइड नेशनल मार्केट पोर्टल (UNMP) के नाम से एक केंद्रीय मॉडल पर डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) विकसित करने का प्रयास किया जाएगा, जो एग्री-स्टैक की तरह होगा। 

जोखिम कम करने के उपाय
जमीन की जोत बहुत छोटी होने, बाजार की अनुपलब्धता और कीमतों में अनिश्चितता को देखते हुए किसानों को सहकारी समिति, एफपीओ या स्वयं सहायता समूह जैसे किसी न किसी किसान संगठन के तहत लाया जाएगा। डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में कांट्रैक्ट फार्मिंग रजिस्ट्री विकसित करने का प्रयास किया जाएगा, जो मार्केट स्टैक का हिस्सा हो सकता है। कांट्रैक्ट फार्मिंग रजिस्ट्री, कांट्रैक्ट फार्मिंग में शामिल होने के इच्छुक सभी एफपीओ, कृषि उद्योगों और उत्पादन क्लस्टर से संबंधित जानकारी का एक संग्रह होगा। राज्यों को कांट्रैक्ट खेती के उत्पादों की खरीद मंडी यार्ड के बाहर करने की अनुमति देनी चाहिए, और यदि उपज को प्रसंस्करण और निर्यात के उद्देश्य से खरीदा जाए तो बाजार शुल्क माफ कर दें। इससे इन क्षेत्रों को प्रोत्साहन मिलेगा।

एफपीओ के माध्यम से बाजार लिंकेज
किसानों को सुनिश्चित बाजार और मूल्य दिलाने में एफपीओ (कृषि उत्पादक संगठन) भी एक माध्यम हो सकते हैं। देश में 50,000 से अधिक एफपीओ हैं, जो विभिन्न संगठनों द्वारा प्रोत्साहित किए गए हैं। हालांकि इनमें ऐसे एफपीओ भी हैं जो निष्क्रिय हो चुके हैं। एफपीओ की राष्ट्रीय नीति के प्रावधान के अनुसार, राज्य सीएसीएमपी (कॉमन एग्रीबिजनेस सेंटर कम मार्केट प्लेस) या अन्य नाम से एफपीओ के परिसर को किसान-सदस्यों के उत्पादन की खरीद-फरोख्त के लिए उप-बाजार यार्ड घोषित करने पर विचार कर सकते हैं। फ्यूचर्स और ऑप्शन ट्रेडिंग को मूल्य निर्धारण और जोखिम कम करने के उपकरण के रूप में समझा जाता है। चूंकि एफपीओ किसान-सदस्यों की ओर से एक्सचेंज प्लेटफॉर्म पर नए ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए भाग ले सकते हैं, इसलिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय और राज्य सेबी तथा कमोडिटी एक्सचेंजों के साथ इस ट्रेड को एक्सचेंज प्लेटफॉर्म पर बढ़ावा देने के लिए चर्चा कर सकते हैं।

कृषि व्यापार को सरल बनाना
केंद्र और राज्य मिलकर कृषि व्यापार में आसानी को एक सूचकांक के रूप में विकसित कर सकते हैं। केंद्र इसे हर तीन महीने में प्रकाशित कर सकता है। इसका उद्देश्य राज्यों के बीच कृषि व्यापार को सरल बनाने की दिशा में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पैदा करना है। इस सूचकांक में विभिन्न पैरामीटर शामिल होंगे जो राज्य और देश में कृषि व्यापार करने की आसानी को परिभाषित करेंगे।