ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट इन एग्रीकल्चरल साइसेंस (तास) के चेयरमैन और आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक डॉ. आर एस परोदा ने कहा है कि देश में जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) टेक्नोलॉजी पर एक स्पष्ट राष्ट्रीय नीति की जरूरत है। हमें इस तकनीक पर आगे बढ़ना है या नहीं इसे साफ करने की जरूरत है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अधिक उत्पादकता वाली प्रजातियां विकसित करने के लिए हाइब्रिड टेक्नोलॉजी में बड़ी संभवनाएं हैं। देश में कई फसलों में हाइब्रिड बीज का उपयोग कर अधिक उत्पादन के परिणाम हमने हासिल किये हैं यह मक्का, कपास, सब्जियों और मोटे अनाज के मामले में इसकी कामयाबी के उदाहरण मौजूद हैं। इसके साथ ही उन्होंने जोर दिया कि आईसीएआर के बजट में बढ़ोतरी करने के साथ बीज उद्योग को टैक्स छूट जैसे प्रोत्साहन देने और सार्वजनिक निजी भागीदारी को बढ़ावा देने की जरूरत है। दिल्ली में बुधवार को शुरू हुए फसल उत्पादकता को बढ़ाने के लिए हाइब्रिड टेक्नोलॉजी पर राष्ट्रीय संगोष्ठी से उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए अपने अध्यक्षीय यह बातें कहीं। प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी के मिश्रा इस सत्र में मुख्य अतिथि थे।
उन्होंने कहा कि भारत ने हाइब्रिड टेक्नोलॉजी में बड़ी सफलता हासिल की है। इनमें बाजरा, कैस्टर और कपास बड़े उदाहरण है। इसके साथ ही मक्का में भारत ने उत्पादकता बढ़ाने में सफलता हासिल की है। एक समय में हमारे देश में मक्का की उत्पादकता एक टन प्रति हैक्टेयर थी जबकि अमेरिका में यह दस टन प्रति हैक्टेयर थी। निजी क्षेत्र को आश्वासन मिलने के बाद कंपनियों ने सिंगल क्रास हाइब्रिड बीज किस्में बाजार में उतारी। अभी देश में मक्का की औसत उत्पादकता 3.5 टन हो गई है। जबकि बिहार में मक्का की विंटर क्राप की उत्पादकता सात टन से उपर पहुंच गई है। भारत चावल की हाइब्रिड किस्मों को विकसित करने में काफी आगे रहा है। चीन में चावल का 50 फीसदी क्षेत्रफल हाइब्रिड राइस के तहत आ गया है। जबकि भारत में अभी हम काफी पीछे हैं। उत्पादकता बढ़ाने के लिए हाइब्रिड अहम टेक्नोलॉजी है और यह विवादित भी नहीं है।
उन्होंने बीटी कपास का जिक्र करते हुए कहा कि जीएम कॉटन की मंजूरी के चलते उत्पादन बढ़ाने से हम दुनिया के सबसे बड़ी कपास उत्पादक बन गए थे लेकिन पिछले एक दशक से कोई भी नई इवेंट मंजूर नहीं होने से हमारा उत्पादन घट गया है और चीन हमसे आगे चला गया है। जीएम किस्मों के बारे में सरकार को एक स्पष्ट नीति लानी चाहिए ताकि यह साफ हो सके कि इस पर आगे बढ़ना है या नहीं। जीएम फसलों के इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में भी मामला चल रहा है। जबकि सरकार डॉ दीपक पेंटल द्वारा विकसित सरसों की जीएम किस्म को मंजूरी दे चुकी है। ऐसे में स्पष्ट नीति नहीं होने से भ्रम पैदा होता है।
उन्होंने कहा कि बीज उद्योग में भारतीय कंपनियों ने काफी काम किया है और अब देश में निजी क्षेत्र में कई बड़ी बीज कंपनियां हैं। सरकार उर्वरकों पर सब्सिडी देती है ऐसे में बीज क्षेत्र को भी प्रोत्साहन मिलना चाहिए। निवेश को प्रोत्साहित करने लिए टैक्स प्रोत्साहन मिलना जरूरी है। वहीं उन्होंने कहा कि आईसीएआर का बजट पिछले कई साल से लगभग स्थिर है। सरकार को इसमें बढ़ोतरी करनी चाहिए। प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेरायटी एंड फार्मर्स राइट अथारिटी बनने से बौद्धिक संपदा को संरक्षण मिला है और उससे निजी क्षेत्र द्वारा कृषि शोध में निवेश बढ़ा है। डॉ. परोदा ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र में कृषि में शोध और टेक्नोलॉजी पर काफी काम हुआ है हम कृषि उत्पादन में आगे बढ़े हैं। इसके साथ ही सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच भागीदारी को बढ़ावा देने की जरूरत है।
इस मौके पर फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एफएसआईआई) के चेयरमैन और सवाना सीड्स प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर अजय राणा ने कहा कि देश में हाइब्रिड टेक्नोलॉजी समेत जीएम टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने की जरूरत है। किसानों की आय बढ़ाने का एक बड़ा उपाय टेक्नोलॉजी का उपयोग कर फसलों की उत्पादकता को बढ़ावा देना है। देश में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम उदाहरण है जहां हाइब्रिड टेक्नोलॉजी के जरिये उत्पादकता बढ़ी है। बिहार में रबी मक्का की ऊंची उत्पादकता इसका उदाहरण है। हम गुजरात में भी इस सफलता को दोहराने के लिए काम कर रहे हैं। इसी तरह ट्रांसजनिक टेक्नोलॉजी से भी उत्पादकता बढ़ी है।
अजय राणा ने कहा कि जीएम कॉटन के जरिये भारत में कपास का उत्पादन 400 लाख गांठ तक चला गया था लेकिन अब यह करीब 300 लाख गांठ रह गया है। हमारी कपास की जरूरत करीब 450 लाख गांठ की है। हाइब्रिड सरसों भी एक कामयाबी का उदाहरण है जहां इसकी किस्मों की उत्पादकता ढाई टन प्रति हैक्टेयर तक पहुंच गई है। हाइब्रिड चावल में हम कई राज्यों में उत्पादकता का लक्ष्य हासिल कर रहे हैं। टेक्नोलॉजी का उपयोग कर देश की अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए हमें चीन का उदाहर देखना चाहिए जहां हमसे कम फसल क्षेत्रफल में कृषि की हिस्सेदारी हमसे करीब तीन गुना है। कृषि में एक रुपये का निवेश 13 रुपये का रिटर्न देता है। भारत में सीड इंडस्ट्री करीब 40 हजार करोड़ रुपये है हमें बीज उद्योग में शोध पर निवेश बढ़ाने की जरूरत है।