झारखंड का तीर्थस्थल देवघर दो कारणों से विख्यात है। एक है भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग और दूसरा दूध और चीनी/गुड़ से बनी स्वादिष्ट मिठाई पेड़ा, जिसे महाप्रसाद के रूप में जाना जाता है। देवघर को बाबा बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जानते हैं। यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। देवघर के पेड़े की ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो चुकी है। इसे यहां से विदेशों में भी भेजा जाने लगा है।
कृषि निर्यात को बढ़ावा देने वाली भारत सरकार की संस्था एपीडा की डिप्टी जनरल मैनेजर विनीता सुधांशु कहती हैं कि यह देवघर वासियों के लिए बड़े गर्व की बात है कि बैद्यनाथ धाम का पेड़ा अब दूसरे देशों में भी उपलब्ध है।
यहां के पेड़े ने क्वालिटी टेस्ट के सभी मानक पूरे किए हैं। 20 अक्टूबर को कोलकाता के रास्ते 32 किलो पेड़ा बहरीन भेजा गया। यह इसका पहला अंतरराष्ट्रीय कंसाइनमेंट है। देवघर के डिप्टी कमिश्नर मंजूनाथ भजंत्री के अनुसार उन्होंने मई में झारखंड कोऑपरेटिव मिल्क फेडरेशन के जरिए 2 किलो पेड़ा सैंपल के तौर पर बहरीन भेजा था।
इस पेड़े को खाड़ी देशों में काफी पसंद किया जा रहा है। बहरीन और कुवैत में तो लोग इसे हाथों हाथ ले रहे हैं। इस मिठाई को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने का लाइसेंस भी दिया गया है। अब इसे ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग दिलाने की कोशिश चल रही है और जल्दी ही इसे यह पहचान भी मिल जाएगी।
देवघर के पेड़े की एक खासियत यह है कि फ्रिज में रखे बिना भी यह 10 से 12 दिनों तक खराब नहीं होता है। रोचक बात यह है कि पेड़ा भगवान शिव को प्रसाद के रूप में नहीं चढ़ाया जाता। लेकिन देवघर से लौटने वाले श्रद्धालु प्रसाद के रूप में इसे अपने साथ लाते हैं। दरअसल भगवान शिव पर गंगाजल चढ़ाया जाता है और पेड़ा बनाते वक्त उसमें गंगाजल में मिलाया जाता है। इसलिए इसे महाप्रसाद कहते हैं।
भजंत्री ने कहा कि जिला प्रशासन मेड इन बैद्यनाथ धाम प्रोडक्ट को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रमोट करने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने बताया कि झारखंड कोऑपरेटिव मिल्क फेडरेशन की मेधा डेयरी को विदेशों में पेड़ा बेचने का लाइसेंस दिया गया है। उन्होंने बताया कि पेड़ा निर्यात करने में जिला उद्योग केंद्र, एपीडा और मेधा डेयरी ने मिलकर प्रयास किया। क्वालिटी, पैकेजिंग और लॉजिस्टिक्स के मानकों को पूरा करने पर विशेष फोकस किया गया।
श्रावणी मेले के बाद भी देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक वैद्यनाथ धाम आते हैं और अपने साथ महाप्रसाद लेकर जाते हैं। अभी यहां के पेड़े की सालाना बिक्री करीब 125 करोड़ रुपए की होती है। धार्मिक पर्यटन के साथ पेड़े ने देवघर को वैश्विक पहचान दिलाई है। यह आसपास के इलाकों बासुकीनाथ, जसीडीह, घोरामारा और देवघर नगर के लोगों के लिए अर्थ उपार्जन का बड़ा माध्यम बन गया है।
देवघर के पेड़ा के लिए जो दस्तावेज तैयार किए गए हैं उसके मुताबिक इसका इतिहास 130 साल पुराना है। बाबा धाम में 400 से अधिक पेड़ा दुकानें हैं। देवघर से 20-22 किलोमीटर दूर बासुकीनाथ जाने के रास्ते में घोरामारा पड़ता है जहां का पेड़ा सबसे अधिक मशहूर है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सुखाड़ी मंडल के पेड़े की दुकान करीब एक सौ साल पुरानी है। चाय और पेड़ा बेचने से इस दुकान की शुरुआत हुई थी, लेकिन जब उस दुकान का पेड़ा मशहूर हो गया तो उसी नाम से कई और दुकानें भी खोली गई हैं।
(लेखक नई दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार और पब्लिक पॉलिसी विश्लेषक हैं)