सहकारी चीनी मिलों के संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) ने सरकार से चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) को बढ़ाकर 37.20-39.70 रुपये तक करने की मांग की है। इस समय चीनी का एमएसपी 31 रुपये प्रति किलो है। फेडरेशन का कहना है कि चीनी के एमएसपी का 31 रुपये पर बने रहना तर्कसंगत नहीं है। यह किसानों को गन्ना मूल्य भुगतान में मुश्किलें खड़ी कर रहा है।
एनएफसीएसएफ का कहना है कि इस समय 31 रुपये प्रति किलो के एमएसपी और गन्ना के मौजूदा फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) के आधार पर चीनी से होने वाली आय का 96 फीसदी गन्ना भुगतान पर खर्च हो रहा है। जबकि गन्ना मूल्य की हिस्सेदारी अधिकतम 75 से 80 फीसदी के बीच होनी चाहिए। फेडरेशन के अध्यक्ष जयप्रकाश दांडेगांवकर ने 28 अप्रैल, 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक पत्र में यह बातें कही हैं।
केंद्र सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत शुगर प्राइस (कंट्रोल) ऑर्डर, 2018 के जरिये चीनी का एमएसपी निर्धारित करना शुरू किया था। 7 जून, 2018 को जारी आदेश के जरिये चीनी का एमएसपी 29.50 रुपये किलो तय किया गया था। उसके बाद 14 फरवरी, 2019 को जारी आदेश के जरिये इसे बढ़ाकर 31 रुपये प्रति किलो कर दिया गया था। फेडरेशन ने अपने पत्र में कहा है कि जब पहली बार चीनी का एमएसपी निर्धारित किया गया तो उस समय साल 2017-18 के लिए गन्ने का एफआरपी 255 रुपये प्रति क्विंटल था। पिछले छह साल में गन्ने का एफआरपी बढ़कर साल 2022-23 के लिए 305 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। इस दौरान चीनी के एमएसपी में केवल एक बार 2019 में बढ़ोतरी की गई है।
फेडरेशन ने तर्क दिया है कि 305 रुपये के एफआरपी और 10.25 फीसदी की चीनी रिकवरी के आधार पर 3100 रुपये प्रति क्विटंल के चीनी के एमएसपी की 96 फीसदी हिस्सेदारी कच्चे माल की लागत (गन्ने के भुगतान) पर आती है। चीनी के प्रसंस्करण और दूसरे खर्चों के लिए केवल चार फीसदी राशि ही बचती है। जबकि उद्योग का अनुभव रहा है कि अगर गन्ना मूल्य की लागत चीनी मूल्य के 75 से 80 फीसदी के बीच रहती है तो यह उसके अस्तिव के लिए ठीक है। गन्ना मूल्य का चीनी की कीमत के 80 फीसदी से अधिक होने की स्थिति में सरकार द्वारा उद्योग की आर्थिक मदद देने की स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसे में बेहतर होगा कि चीनी के मूल्य के 75 से 80 फीसदी के बीच ही गन्ने की कीमत रहे। वहीं गन्ने के एफआरपी के अलावा चीनी उद्योग की दूसरी लागतों में भी इजाफा हुआ है।
पत्र में कहा गया है कि इन स्थितियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार को तुरंत चीनी के एमएसपी में बढ़ोतरी करनी चाहिए। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने भी अपनी सिफारिशों में गन्ने के एफआरपी और चीनी के एमएसपी के बीच लिंकेज की बात कही है। इसके अनुसार गन्ने के एफआरपी में बढ़ोतरी के साथ ही चीनी का एमएसपी भी बढ़ना चाहिए। फेडरेशन ने 2023-24 के लिए एफआरपी के संबंध में खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) द्वारा लिखे गये 2 जनवरी, 2023 के पत्र के जवाब में 17 जनवरी, 2023 को पत्र लिखकर चीनी के एमएसपी में बढ़ोतरी के मुद्दे को उठाया था। ऐसे में चीनी उद्योग को मुश्किल परिस्थिति से निकालने के लिए एमएसपी को बढ़ाकर एस ग्रेड चीनी के लिए 37.20 रुपये प्रति किलो, एम ग्रेड चीनी के लिए 38.20 रुपये प्रति किलो और एल ग्रेड चीनी के लिए 39.70 रुपये प्रति किलो किया जाना चाहिए।
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हालांकि, इस समय चीनी की एक्स मिल कीमत 35 रुपये से 37 रुपये प्रति किलो चल रही है। ऐसे में 31 रुपये के एमएसपी की क्या अहमियत है? इस बारे में फेडरेशन के एक पदाधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि बैंकों द्वारा चीनी के स्टॉक पर जो क्रेडिट लिमिट तय की जाती है वह तीन माह के औसत दाम की बजाय 31 रुपये प्रति किलो के एमएसपी के आधार पर तय की जाती है। ऐसे में एमएसपी से अधिक दाम होने के बावजूद चीनी मिलों को स्टॉक पर कम कर्ज मिलता है जो लिक्विडिटी की समस्या पैदा करता है। इसका असर किसानों को होने वाले गन्ना मूल्य भुगतान पर पड़ता है। उनका कहना है कि चीनी का उत्पादन करीब छह माह में ही होता है और बिक्री पूरे साल में होती है। ऐसे में समय से गन्ना मूल्य भुगतान के लिए स्टॉक पर कर्ज काफी महत्वपूर्ण होता है।
सहकारी चीनी मिलों के नेशनल फेडरेशन से पहले महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज फेडरेशन लिमिटेड ने भी जनवरी, 2023 में केंद्रीय खाद्य मंत्रालय को पत्र लिखकर चीनी के एमएसपी में बढ़ोतरी मांग की थी। वहीं पंजाब और हरियाणा की सहकारी चीनी मिलों के फेडरेशन ने नेशनल फेडरेशन और अपनी राज्य सरकारों को इस संबंध में पत्र लिखे हैं।