चालू वित्त वर्ष (2022-23) की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान उर्वरकों की बिक्री का नया ट्रेंड उभर कर आया है। पहले छह महीनों में डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की बिक्री में 23.33 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) की बिक्री में 50.80 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इसके साथ ही कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की बिक्री में 16.97 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है जबकि इस दौरान यूरिया की बिक्री में 3.91 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
उर्वरक विभाग के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल,2022 से सितंबर, 2022 के बीच डीएपी की बिक्री 51.48 लाख टन रही है जो इसके पहले साल इसी अवधि में 41.74 लाख टन रही थी। वहीं इस दौरान यूरिया की बिक्री 172.11 लाख टन रही जो पिछले साल इसी अवधि में 165.64 लाख टन रही थी। दूसरी ओर अप्रैल से सितंबर के बीच एमओपी की बिक्री 7.08 लाख टन रही जो इसके पहले साल की 14.39 लाख टन के मुकाबले 50.80 फीसदी कम है। चालू साल की पहली छमाही में कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की बिक्री 51.97 लाख टन रही जो 2021 की इसी अवधि की बिक्री 62.59 लाख टन से 16.97 फीसदी कम है।
उर्वरकों की बिक्री का यह ट्रैंड उर्वरकों की कीमतों में आये बदलाव की वजह को इनकी कीमतों और सब्सिडी के साथ जोड़कर देखा जा सकता है।
इसकी बड़ी वजह डीएपी व यूरिया पर अधिक सब्सिडी के चलते इनका एमओपी और कॉम्प्लेक्स उर्वरकों से सस्ता होना। जिसके चलते किसान डीएपी और यूरिया का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं। बिक्री का यह ट्रैंड चालू रबी सीजन में भी जारी रह सकता है हालांकि सरकार ने भी रबी सीजन के लिए न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी स्कीम (एनबीएस) की दरें घोषित नहीं की हैं। दूसरी ओर खरीफ सीजन में देश के कई राज्यों में अगस्त तक बारिश में कमी रहने के चलते खरीफ सीजन की फसलों का कवरेज क्षेत्र भी गिरा है। लेकिन सितंबर और अक्तूबर में बारिश के चलते बेहतर पानी की उपलब्धता और मिट्टी में नमी के चलते रबी सीजन की फसलों का बुवाई रकबा बढ़ने की संभावना है। ऐसे में गेहूं और सरसों का क्षेत्रफल सबसे अधिक बढ़ेगा और इन दोनों फसलों में डीएपी की खपत अधिक होती है। वहीं रबी सीजन में आलू में भी डीएपी व यूरिया अधिक खपत होती है। उद्योग सूत्रों कहना है कि देश में इस बार डीएपी और यूरिया का पर्याप्त स्टॉक है इसलिए किसानों को इनकी किल्लत नहीं होगी।
कॉम्पलेक्स उर्वरकों और एमओपी की बिक्री में गिरावट की एक बड़ी वजह इनकी कीमत और सब्सिडी है। रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध जारी रहने के चलते रूस और बेलारूस से पोटाश का निर्यात कम हो गया है जिसके चलते वैश्विक बाजार में एमओपी की कीमतों में आई तेजी अभी तक बरकरार है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में एमओपी की कीमत अभी भी 550 डॉलर प्रति टन बनी हुई है। इसकी आयात लागत 590 डॉलर प्रति टन पड़ती है। इसके उपर सीमा शुल्क, पोर्ट हैंडलिंग, जीएसटी, बैगिंग, ट्रांसपोर्ट और ट्रेड मार्जिन जोड़ने पर यह कीमत करीब 55 हजार रुपये प्रति टन पर पहुंच जाती है। सरकार एमओपी पर 15186 रुपये प्रति टन की सब्सिडी देती है। जिसके बाद कंपनियों की लागत करीब 40 हजार रुपये प्रति टन बैठती है। ऐसे में 34 हजार रुपये प्रति टन का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पर कंपनियों को करीब 6000 रुपये प्रति टन का घाटा होता है। कंपनियां अधिक आयात करने से बचती हैं क्योंकि यह आर्थिक रूप से उनके लिए नुकसान का कारण बन रहा है। आयात के आंकड़े भी इस स्थिति को साफ करते हैं। साल 2020-21 में एमओपी का आयात 50.90 लाख टन रहा था जो 2021-22 में घटकर 29.10 लाख टन रह गया। वहीं चालू साल में अप्रैल से सितंबर, 2022 के बीच एमओपी का आयत 15 लाख टन रहा।
वहीं एनपीके 10ः26ः26, 12ः32ः16 कॉम्पलेक्स उर्वरकों के विभिन्न वेरियंट का एमआरपी 29000 रुपये से 31000 रुपये प्रति टन के बीच है। ऐसे में किसानों द्वारा यूरिया और डीएपी की कीमत कम होने के कारण उनका अधिक उपयोग किया जा रहा है। डीएपी का एमएआरपी 27000 रुपये प्रति टन और यूरिया का एमआरपी 5628 रुपये प्रति टन है।
वैश्विक बाजार में डीएपी और इसके कच्चे माल फॉस्फोरिक एसिड की कीमतों में पिछले कुछ माह में कमी आई है। जून तक डीएपी की कीमत 960 से 1000 डॉलर प्रति टन तक चल रही थी वहीं अब इसकी कीमत 720 से 740 डॉलर प्रति टन के आसपास आ गई है। सरकार ने खरीफ सीजन 2022 के लिए डीएपी पर सब्सिडी बढ़ाकर 50013 रुपये प्रति टन कर दी थी जो इसके पहले खरीफ सीजन में 24,231 रुपये प्रति टन थी। डीएपी की किसानों के लिए कीमत 1350 रुपये प्रति बैग (50 किलो) है।
इसके साथ ही लंबे समय से यूरिया की किसानों के लिए कीमत में भी कोई बदलाव नहीं हुआ है और यह 5628 रुपये प्रति टन पर बनी हुई है। यूरिया की कीमत सरकार तय करती है और इसमें किसानों के लिए कीमत व लागत के बीच के अंतर की भरपाई सब्सिडी के द्वारा की जाती है। वैश्विकि बाजार में यूरिया की कीमत घटन से इसकी आयातित कीमत 650 डॉलर प्रति टन आसपास आ गई हैं जो पिछले साल 1000 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई थी।
इस स्थिति में बड़ा सवाल यह भी है कि उर्वरकों के संतुलित उपयोग के उद्देश्य को इससे झटका लगेगा। मिट्टी की उर्वर शक्ति को बेहतर रखने के लिए जरूरी उर्वरकों के उपयोग के बजाय सस्ते दाम वाले उर्वरकों अधिक उपयोग संतुलन को और खराब करेगा। जो दीर्घकालिक रूप से किसानों के भी उचित नहीं है।
वहीं रबी सीजन में उर्वरकों की अधिक खपत की संभावना पर उर्वरक उद्योग सूत्रों का कहना है कि रबी सीजन में डीएपी और यूरिया की अधिक मांग को पूरा करने के लिए स्टॉक की स्थिति काफी बेहतर है। पिछले रबी सीजन में किसानों को डीएपी की उपलब्धता के संकट से जूझना पड़ा था और सरकार को आपूर्ति में सुधार के लिए रेल रैक के मूवमेंट पर निगरानी और आयात के साथ तालमेल बैठाने के लिए वार-रूम बनाना पड़ा था।