देश में यूरिया के बाद सबसे अधिक खपत वाले उर्वरक डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की कीमतें जनवरी में बढ़ना लगभग तय है। यह कीमतें 200 रुपये प्रति बैग (50 किलो) तक बढ़ सकती हैं। कीमत बढ़ने की स्थिति में डीएपी के एक बैग की कीमत मौजूदा 1350 रुपये से बढ़कर 1550 रुपये प्रति बैग तक हो सकती है। कीमतों में बढ़ोतरी की दो मुख्य वजह हैं, पहली, सरकार द्वारा डीएपी के आयात पर दिये जा रहे स्पेशल इंसेंटिव की अवधि का 31 दिसंबर को समाप्त होना और दूसरी, डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से आयात लागत का बढ़ना।
उद्योग सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि सरकार द्वारा आयातित डीएपी पर 3500 रुपये प्रति टन का जो स्पेशल इंसेंटिव दिया जा रहा है उसकी अवधि 31 दिसंबर, 2024 को समाप्त हो जाएगी। इसका मतलब यह बोझ उद्योग को उठाना पड़ेगा। वहीं, पिछले कुछ समय में डॉलर के मुकाबले रुपया 83.50 रुपये प्रति डॉलर से गिरकर 85.50 रुपये प्रति डॉलर तक गिर गया है। वैश्विक बाजार में डीएपी की कीमत 630 डॉलर प्रति टन के आधार पर रुपये के कमजोर होने से ही आयात लागत करीब 1200 रुपये प्रति टन बढ़ गई है। इन दो कारकों का सीधा असर करीब 4700 रुपये प्रति टन की बढ़ी लागत के रूप में सामने आ रहा है। ऐसे में प्रति बैग करीब 235 रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
सूत्रों का कहना है कि इस संबंध में सरकारी को ओर से फिलहाल कोई निर्देश नहीं है क्योंकि गैर-यूरिया उर्वरक विनियंत्रित हैं और इनकी कीमत का फैसला उद्योग खुद ले सकता है क्योंकि सब्सिडी का स्तर फिक्स है। ऐसे में उद्योग के पास दाम बढ़ाने का ही विकल्प बचता है।
इसके पहले दो साल पहले डीएपी की कीमत में 150 रुपये प्रति बैग की बढ़ोतरी हुई थी जिसके चलते इसकी कीमत 1350 रुपये पहुंच गई। हालांकि सरकार विनियंत्रित उर्वरकों पर न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) स्कीम के तहत एन, पी, के और एस के आधार पर प्रति किलो के हिसाब से सब्सिडी देती है। लेकिन परोक्ष रूप से सरकार सब्सिडी का स्तर बढ़ाकर कीमतों को 1350 रूपये प्रति बैग के स्तर पर बनाये हुए है।
डीएपी का संकट
चालू रबी सीजन में डीएपी का उपलब्धता का संकट बना रहा है। वैश्विक बाजार में कीमतों में बढ़ोतरी के चलते उद्योग को मौजूदा दाम पर घाटा हो रहा था जिसके चलते आयात में गिरावट आई और देश में डीएपी का संकट पैदा हुआ। बाद में सरकार ने स्पेशल इंसेटिव दिया तो आयात में तेजी आई। डीएपी आयात में कमी के पीछे चीन से आयात घटने, भू-राजनीतिक तनाव और लाल सागर के रास्ते परिवहन में दिक्कतों जैसे कारण हैं। इसके अलावा ग्लोबल मार्केट में डीएपी उत्पादन की सीमित क्षमताओं और कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण भी आयात प्रभावित हुआ।
आयात पर निर्भरता
भारत फॉस्फेटिक उर्वरकों की करीब 90 फीसदी खपत को आयात के जरिए पूरा करता है। देश में हर साल करीब 100 लाख टन डीएपी की खपत होती है जिसमें से लगभग 60 लाख टन डीएपी का आयात होता है। देश में जो उत्पादन होता है उसका अधिकांश कच्चा माल रॉक फॉस्फेट या फॉस्फोरिक एसिड आयात किया जाता है।
दाम वृद्धि के आसार
मौजूदा समय में कोई ऐसी महत्वपूर्ण फसल नहीं है जिसके लिए डीएपी की अधिक मांग हो। मार्च में गन्ने की बुआई के समय ही अधिक मांग निकलेगी और उसके बाद खरीफ सीजन में ही इसकी मांग बढ़ेगी। ऐसे में डीएपी की कीमत में बढ़ोतरी कोई बड़ा राजनीतिक जोखिम नहीं है। क्योंकि आने वाले महीनों में दिल्ली को छोड़कर किसी बड़े राज्य में चुनाव भी नहीं है। अक्सर डीएपी की कीमत और उसकी उपलब्धता राजनीतिक मुद्दा बनता रहा है और सरकार इससे बचने की कोशिश करती रही है। देश में सालाना करीब 100 लाख टन डीएपी की खपत होती है और यह यूरिया के बाद सबसे अधिक उपयोग होने वाले उर्वरक है।
डीएपी के अधिक दाम की मांग
उर्वरकों के संतुलित इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए फर्टिलाइजर इंडस्ट्री ने उर्वरकों के दाम पोषण के आधार पर तय करने की मांग की है। इस हिसाब से गैर-यूरिया उर्वरकों में डीएपी की कीमतें सबसे ज्यादा होनी चाहिए क्योंकि इसकी न्यूट्रिशनल वैल्यू सबसे ज्यादा है। इसके बाद अन्य उर्वरकों के दाम होने चाहिए।
डीएपी के उत्पादन, आयात और बिक्री में कमी
फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएआई) के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अप्रैल से अक्टूबर के बीच देश के डीएपी उत्पादन में 7.4 फीसदी की गिरावट आई जबकि डीएपी का आयात पिछले साल के मुकाबले 29.8 फीसदी कम हुआ। इस दौरान डीएपी की बिक्री में 25.4 फीसदी की गिरावट आई जबकि एमओपी की बिक्री 24.7 फीसदी तथा एनपीके की बिक्री 23.5 फीसदी बढ़ गई है।