महाराष्ट्र के दूध किसानों को गाय के दूध के लिए 25 से 26 रुपये लीटर की कीमत मिल रही है। यह पिछले साल 38 रुपये प्रति लीटर तक थी। इसके चलते किसानों का आंदोलन हुआ तो राजनीतिक नुकसान से बचने के लिए राज्य सरकार ने 28 जून को पेश बजट में पांच रुपये प्रति लीटर की सब्सिडी देने की घोषणा कर दी।
लेकिन ऐसी नौबत क्यों आई? करीब माह भर पहले ही देश के सबसे बड़े दूध ब्रांड अमूल, मदर डेयरी और नंदिनी ने दूध की खुदरा कीमतों में दो रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी। इसके विपरीत दक्षिण भारत के बड़े ब्रांड आरोक्या, डोडला और कुछ अन्य कंपनियों ने उपभोक्ताओं के लिए हाल में दूध की कीमतों में कमी की है क्योंकि किसानों से मिल रहे कम कीमत के फायदे को यह कंपनियां उपभोक्ताओं के साथ बांट रही हैं। पूरा मामला काफी पेचीदा है। इसमें दो बातें सच हैं। एक तो यह कि किसानों को दूध की कीमत कम मिल रही है और डेयरी कंपनियों की मुश्किलें भी बढ़ी हैं। दूसरा, पूरे मसले की जड़ में है स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) की कीमतों में भारी गिरावट जो मार्च 2023 की 350 रुपये प्रति किलो से घटकर अब 210 रुपये प्रति किलो पर आ गई हैं।
असल संकट एसएमपी का है, इसलिए इस संकट को एसएमपी के बिजनेस डायनामिक्स से ही समझने की जरूरत है। इसके साथ यह भी सच है कि अगर इस मुश्किल का कोई हल नहीं निकला तो किसानों और डेयरी उद्योग के लिए यह संकट न केवल बना रहेगा बल्कि आने वाले दिनों में इसमें इजाफा होगा। जिन कंपनियों ने दूध की कीमतें बढ़ाई हैं, उसके पीछे भी एसएमपी के घाटे को कवर करना बड़ी वजह है।
इस समय देश में करीब तीन लाख टन एसएमपी का स्टॉक है। यह स्टॉक सहकारी संस्थाओं अमूल, नंदिनी और निजी डेयरी कंपनियों के पास है। इसके उत्पादन की लागत करीब 300 से 350 रुपये प्रति किलो के बीच है। ऐसे में कंपनियों को मौजूदा कीमत पर बेचने पर करीब 700 करोड़ रुपये का घाटा झेलना पड़ेगा। देश में सालाना करीब पांच लाख टन एसएमपी का उत्पादन होता है।
एसएमपी की मुश्किल गाय के दूध की वजह से अधिक है और अब देश में दूध उत्पादन में गाय के दूध की हिस्सेदारी बढ़ रही है। गाय के दूध में 3.5 फीसदी फैट और 8.5 फीसदी एसएनएफ होता है, यानी यही एसएमपी है। भारत में एनीमल फैट की खपत लगातार बढ़ रही है। इसलिए फैट का उत्पादन भी बढ़ा है। दूध से जब फैट का उत्पादन करते हैं तो एसएमपी का भी उत्पादन होता है। इसे इस तरह समझ सकते हैं। 100 लीटर दूध का वजन 102.8 किलो होता है। इसमें से 3.5 फीसदी फैट है, तो गाय के 100 लीटर दूध से 3.598 किलो फैट मिलता है। इस दूध में 8.5 फीसदी एसएनएफ होने के चलते इससे 8.738 किलो एसएमपी भी मिलता है।
इस समय देश में एसएमपी की कीमत 210 रुपये प्रति किलो चल रही है। ऐसे में 8.738 किलो एसएमपी की बिक्री से 1835 रुपये की कमाई होती है। वहीं यलो बटर में 82 फीसदी फैट होता है जिससे 350 रुपये प्रति किलो की दर पर एक किलो फैट की कीमत 427 रुपये किलो बनती है। इसकी बिक्री से 1536 रुपये की कमाई होती है। इस तरह दोनों को जोड़ा जाए तो 100 लीटर गाय के दूध से बने फैट और एसएमपी की बिक्री से 3371 रुपये यानि 33.71 रुपये प्रति लीटर की कमाई डेयरी कंपनियों को रही है।
एसएमपी और फैट उत्पादन के लिए दूध के प्रसंस्करण, पैकेजिंग और डेयरी के दूसरे खर्च करीब 3.5 रुपये लीटर बैठते हैं। दूध के कलेक्शन, कमीशन और ट्रांसपोर्ट पर भी करीब 3.5 रुपये लीटर का खर्च आता है। इस पूरी गणना के आधार पर बिना किसी मुनाफे या घाटे पर डेयरी कंपनियां किसानों को करीब 26.71 रुपये लीटर का भुगतान कर सकती हैं और महाराष्ट्र की निजी डेयरी कंपनियां किसानों को यही कीमत दे रही हैं।
फरवरी-मार्च 2023 में जब दूध की किल्लत थी तो महाराष्ट्र की डेयरी कंपनियां येलो बटर से 430 से 435 रुपये किलो की कमाई कर रही थीं। उन्हें एसएमपी की कीमत 315 से 320 रुपये प्रति किलो मिल रही थी। यही वजह है कि पिछले साल कपनियां किसानों को 36 से 38 रुपये लीटर की दर से दूध का भुगतान कर रही थीं।
एसएमपी की वैश्विक कीमत 2766 डॉलर प्रति टन चल रही है और रूपये की मौजूदा विनिमय दर पर करीब 231 रुपये किलो बैठती है। घरेलू कीमत 210 रुपये प्रति किलो है। ऐसे में देश में जो एसएमपी स्टॉक है, उसके निर्यात की संभावना न के बराबर है। दूसरी ओर एसएमपी का उत्पादन लगातार बढ़ता ही जाएगा। सितंबर में दूध उत्पादन का फ्लश सीजन शुरू होगा तो यह उत्पादन और बढ़ेगा।
हालांकि भैंस के दूध के मामले में यह समस्या कम है क्योंकि भैंस के दूध में सात फीसदी फैट और 9 फीसदी एसएनएफ होता है। इसलिए गाय के दूध से उतनी मात्रा में फैट का उत्पादन करने पर करीब दोगुना एसएमपी उत्पादन होता है। एसएमपी की खपत के विकल्प भी सीमित हैं। बिस्किट, कंफैक्शनरी, आइसक्रीम और कुछ दूसरे उत्पादों में ही इसकी खपत होती है। देश में उपभोक्ताओं में इसकी सीधी खपत बहुत अधिक नहीं होती है। वहीं, भारत के बाहर एनीमल फैट की बहुत ज्यादा खपत नहीं है। ऐसे में वहां की डेयरी कंपनियों की स्थिति भारत की कंपनियों से अलग है।
डेयरी उद्योग के एक्सपर्ट का कहना है कि भारत को इसका हल खुद ही निकालना होगा। बेहतर होगा कि सरकार एसएमपी का बफर स्टॉक बनाये, या पड़ोसी देशों को सस्ते में या मुफ्त में निर्यात कर दे। कुछ कंपनियों ने टेक्नोलॉजी विकसित कर एसएमपी से प्रोटीन अलग कर उत्पाद बनाने शुरू किये हैं, लेकिन यह काम बड़े पैमाने पर सरकार को ही करना होगा। उस प्रोटीन को फोर्टिफिकेशन या दूसरे विकल्पों में उपयोग किया जा सकता है।
फिर भी, यह सच है कि एसएमपी का संकट बढ़ता जाएगा और इसका खामियाजा दूध किसानों को कम कीमत के रूप में भुगतान पड़ सकता है, क्योंकि देश में दूध उत्पादन बढ़ रहा है और इसमें गाय के दूध की हिस्सेदारी भी बढ़ रही है। दिलचस्प बात यह है कि तरल दूध बेचने वाले बिजनेस में यह संकट नहीं है। यही वजह है कि किसानों से सस्ता दूध खरीदने वाली दक्षिण की कंपनियों ने उपभोक्ताओं के लिए दूध के दाम घटा दिये हैं। वहीं एसएमपी का घाटा पूरा करने के लिए उत्तर भारत में कंपनियों ने दूध के दाम बढ़ाए हैं।