दूध और दूध उत्पादों की कीमें लगातार इजाफे से सरकार चिंतित दिख रही है। आने वाले गरमी के सीजन में दूध की आपूर्ति घटने की संभावना को देखते हुए कीमतों के मोर्चे पर मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि उद्योग के ऊपर कीमतों में बढ़ोतरी का दबाव होगा। करीब साल भर में दूध की कीमतों में दस रुपये प्रति लीटर तक का इजाफा हो चुका है। वहीं हाल के दिनों में ही डेयरी कंपनियों ने घी की कीमतों में 20 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी की है। उसके बावजूद बड़ी रिटेल चेन के स्टोर्स पर कई नामी घी ब्रांड उपलब्ध नहीं हैं। इस परिस्थिति के बीच पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने डेयरी सहकारी संघों और डेयरी क्षेत्र की निजी कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ आज एक बैठक की।
सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि यह बैठक पशुपालन और डेयरी सचिव ने आज बुलाई थी। बैठक में सामने आये तथ्यों के मुताबिक अक्तूबर से दिसंबर की तिमाही में कुल दूध खरीद में तीन फीसदी की गिरावट आई है जबकि मांग में 10 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसके पहले की तिमाही में दूध खरीद में गिरावट अधिक रही थी। इस बैठक में दूध की कीमतों को नियंत्रित रखने और आपूर्ति को बेहतर करने के लिए कई उपायों पर चर्चा की गई।
खाद्यान्नों की कीमतों में दो अंकों की महंगाई से परेशान सरकार के लिए दूध और दूध उत्पादों की महंगाई भी चिंता का सबब बनी हुई है। ऐसे में अगर आने वाले दिनों में दूध की कीमतों में और अधिक इजाफा होता है तो महंगाई के मोर्चे पर सरकार की मुश्किलें बढ़ेंगी। असल में साल फ्लश सीजन (सर्दियों में जब दूध की आपूर्ति सबसे अधिक होती है) में डेयरी सहकारी संघोंं और निजी कंपनियों की दूध की खऱीद में कमी दर्ज की गई है। कुछ राज्यों में पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी तक गिरावट दर्ज की गई है। यह स्थिति तब है जब डेयरी कंपनियों ने 6.5 फीसदी फैट वाले भैंस के दूध के लिए दाम बढ़ाकर 55 रुपये रुपये तक कर दिये। इसी तरह गाय के दूध के दाम में भी बढ़ोतरी की गई है। असल में कोविड के दौरान दूध की कीमतों में भारी गिरावट होने के कारण किसानों द्वारा दुधारू पशुओं पर खर्च में कमी गई थी। इसके साथ ही मानसून सीजन के दौरान राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र में लंपी रोग के चलते बड़े पैमाने पर गाौवंश की मौत हुई और बीमारी से प्रभावित पशुओं के दूध उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की गई है। उद्योग सूत्रों के मुताबिक बीमारी से ठीक हुए पशुओं में अभी दूध उत्पादन की रिकवरी नहीं हुई है। इसके चलते दूध की आपूर्ति प्रभावित हुई है और किसानों को अधिक कीमत मिलने के बावजूद डेयरी सहकारी संघों और कंपनियों को दूध की खरीद मे गिरावट से जूझना पड़ा है।
दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों के बेहतर होने के चलते चालू वित्त वर्ष में करीब 20 हजार टन मिल्क फैट का निर्यात हुआ है। इसने देश में फैट की कीमतों में बढ़ोतरी काम किया है और उपलब्धता में भी कमी आई है। उक्त सूत्र का कहना है कि सर्दी के दिनों में फ्लश सीजन के दौरान डेयरी संघ और कंपनियों अतिरिक्त दूध से फैट और स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) का उत्पादन करती रही हैं। इसका उपयोग गरमी के दिनों में लीन सीजन के दौरान दूध की कमी को पूरा करने के लिए किया जाता रहा है। लेकिन इस साल बहुत सी कंपनियों के पास अतिरिक्त फैट और एसएमपी का स्टॉक नहीं होगा क्योंकि उन्होंने फैट का निर्यात किया है। यही वजह है कि घी की कीमतों में इजाफा अधिक हुआ है। वहीं गरमी के सीजन में दही, लस्सी और आइसक्रीम की खपत बढ़ने से अधिक दूध और फैट की जरूरत होती है। ऐसे में आने वाले दिन उपभोक्ताओं के लिए बहुत बेहतर नहीं रहने वाले हैं।
उक्त सूत्र का कहना है कि इस परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए ही मंत्रालय ने यह बैठक बुलाई थी। जिसमें आने वाले दिनों में दूध और दूध उत्पादों की आपूर्ति और कीमतों को लेकर कई कदमों पर चर्चा की गई। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में एसएमपी और बटर ऑयल की कीमतें कम हैं लेकिन अधिक आयात शुल्क के चलते इनका आयात आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है। मंत्रालय द्वारा डेयरी उद्योग के साथ बैठकों का सिलसिला चलता रहता है लेकिन इस बार की बैठक अलग परिस्थितियों में हुई। अगर सरकार बटर ऑयल या एसएमपी के आयात का फैसला भी लेती है तो उसकी आलोचना हो सकती है क्योंकि आयात को डेयरी किसानों और डेयरी उद्योग के हितों के प्रतिकूल माना जाता है। इसलिए यह देखना काफी अहम होगा कि इस मोर्चे पर सरकार का अगला कदम क्या होगा।