भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा विकसित और लंपी स्किन रोग से पूर्ण सुरक्षा देने वाली स्वदेशी लंपी-प्रो वैक इंड वैक्सीन का कमर्शियल स्केल उत्पादन अगले चार से पांच माह में शुरू होने की संभावना है। आईसीएआर के उपमहानिदेशक (एनीमल साइंस) डॉ. भूपेंद्र नाथ त्रिपाठी ने रूरल वॉयस के साथ एक बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस वैक्सीन के कमर्शियलाइजेशन के लिए डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च एंड एजूकेशन (डेअर) की कंपनी एग्री इन्नोवेट ने एक्सप्रेसन ऑफ इंटरेस्ट (ईओआई) के लिए डॉक्यूमेंट जारी कर दिया है। देश में पशुओं की वैक्सीन बनाने वाली कुछ कंपनियों ने इसमें रुचि दिखाई है। कंपनियों के साथ करार होने के बाद वैक्सीन के कमर्शियल उत्पादन के पहले जरूरी वैधानिक मंजूरी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद वैक्सीन का उत्पादन शुरू हो जाएगा और यह पशुओं के टीकाकरण के लिए उपलब्ध होगा।
डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि यह वैक्सीन गौवंश को लंपी स्किन बीमारी से पूर्ण सुरक्षा देता है और इसमें लाइव वायरस का इस्तेमाल किया गया है। वैक्सीन पर 2019 के अंत में काम शुरू हुआ और जुलाई, 2022 में इसका पशुओं पर ट्रायल किया गया जो पूरी तरह से खरा उतरा। वैक्सीन को आईसीएआर के हिसार स्थित नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन एक्वाइन (एआरसीई) और इंडियन वेटरीनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईवीआरआई) इज्जतनगर, बरेली ने मिलकर विकसित किया है। डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि अभी लंपी स्किन रोग से बचाव के लिए जो गोट पॉक्स और शीप पॉक्स वैक्सीन दिया जा रहा है वह बीमारी से 60 से 70 फीसदी ही बचाव करता है लेकिन लंपी प्रो वैक इंड वैक्सीन शत-प्रतिशत सुरक्षा देता है। असल में गोट पॉक्स, शीप पॉक्स और एलएसडी यह तीनों वायरस एक ही कैपरीपॉक्स वॉयरस फैमिली (जेनस) के हैं। वह कहते हैं कि लंपी प्रो वैक्सीन लंबे समय तक सुरक्षित रहता है। कोविड-19 के लिए तैयार वैक्सीन पांच से छह माह ही उपयोग के योग्य रहता है लेकिन लंपी प्रो वैक इंड वैक्सीन में ऐसा नहीं है। इसके साथ ही इस वैक्सीन को फ्रीजिंग कंडीशन में रखने की जरूरत नहीं है इसे रेफ्रीजरेटर टेंपरेचर (चार से आठ डिग्री सेल्सियस) पर रखने की ही जरूरत है। जो इसके उपयोग को आसान करेगा। यह इस वैक्सीन में लाइव वायरस होने की वजह से संभव हो पाया है।
रुरल वॉयस ने एक सितंबर की स्टोरी में जानकारी दी है कि 31 अगस्त तक 11 लाख से अधिक गौवंश बीमारी से ग्रसित हो चुका है और पचास हजार पशुओं की मौत हो चुकी है। इसे देखते हुए इस बीमारी से बचाव के लिए तैयार किया गया वैक्सीन बहुत कारगर साबित होगा। प्रभावित पशुओं की संख्या और उसके बारे में विस्तार से जानकारी इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
लंपी स्किन रोग से 12 राज्य प्रभावित, 50 हजार पशुओं की मौत, लेकिन राज्य अभी भी महामारी घोषित नहीं कर रहे
इस वैक्सीन को विकसित करने की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। कोरोना के दौर में भी आईसीएआर के वैज्ञानिक इस पर काम करते हुए इसे तैयार कर सके। 2019 में उड़ीसा में पहली बार लंपी स्किन बीमारी सामने आने के बाद वैक्सीन पर काम शुरू कर दिया था। डॉ. त्रिपाठी के मुताबिक इस वैक्सीन को एनआरसीई के वायरोलॉजिस्ट और प्रिंसिपल साइंटिस्ट नवीन कुमार के नेतृत्व में विकसित किया गया। लंपी स्किन रोग के वायरस का सैंपल लेने के बाद एनआरसीई हिसार में दिसंबर, 2019 में वैक्सीन पर काम शुरू हुआ। इस वायरस को आईसोलेट करने के साथ ही इसकी जीन सीक्वेंसिंग भी की गई। इसके बाद इसे कल्चर किया गया। लगातार कल्चर की प्रक्रिया चली और इसकी 50 जनरेशन तक कल्चरिंग की गई। इस प्रक्रिया को पसाजिंग कहते हैं। इस प्रक्रिया में डेढ़ साल लगा। तीसवें पसाज में पाया गया कि कल्चर किया गया वायरस कम नुकसान वाला है। इसकी लगातार जीन सीक्वेंसिंग की गई। वहीं पचासवें पसाज में जो वायरस मिला उसे वैक्सीन का केंडिडेट वायरस चुना गया। इसके बाद इस अटेनुएटेड लाइव वायरस का प्रयोगशाला में चूहों और खरगोशों पर परीक्षण किया गया। यह प्रक्रिया आईवीआरआई के मुक्तेश्वर केंद्र पर चली। डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि यह वायरस लाइव है और इसकी ग्रोथ बहुत तेज है। यही वजह इस वैक्सीन की लागत को कम करती है।
इस वैक्सीन केंडिडेट वायरस का आईवीआरआई में अप्रैल, 2022 में रेगुलेटेड पशुओं पर परीक्षण किया गया और जिसमें दस बछड़ों को वैक्सीन दी गई और पांच को उनके साथ बिना वैक्सीन के रखा गया। वैक्सीन लगाने के बाद पूरी इम्यूनिटी विकसित होने में करीब एक माह का समय लगता है। एक माह के बाद इन सभी पशुओं में वायरस इंजेक्ट किया गया। इसके नतीजे में वैक्सीन वाले सभी दस पशु बीमारी से पूरी तरह से सुरक्षित रहे। जबकि दूसरे पांच में लंपी स्किन रोग के लक्षण पाये गये।
इसके बाद जुलाई, 2022 में वैक्सीन का फील्ड ट्रायल किया गया। इसका राजस्थान में बांसवाड़ा, जोधपुर, उदयपुर और अलवर, उत्तर प्रदेश में मथुरा और हरियाणा में हांसी व हिसार में ट्रायल किया गया। वैक्सीन वाले सभी पशु पूरी तरह से सुरक्षित रहे जबकि इन जगहों पर अन्य पशु लंपी स्किन रोक से प्रभावित थे।
वैक्सीन के कमर्शियल उत्पादन के बारे में अधिकारियों का कहना है कि जिस स्तर पर उत्पादन की जरूरत है उसके लिए एक साथ कई कंपनियों को उत्पादन करने की जरूरत पड़ेगी। डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि देश में गौवंश की आबादी के हिसाब से करीब 20 करोड़ वैक्सीन की जरूरत है। जब तक 80 फीसदी पशुओं का टीकाकरण नहीं हो जाता तब तक बीमारी को पूरी तरह से समाप्त करना संभव नहीं होगा।
देश में छह कंपनियां पशुओं की बीमारी रोकने वाले वैक्सीन बनाती हैं। इनमें इंडियन इम्यूनोलॉजिकल लिमिटेड, हेस्टर बॉयोसाइंस, ब्रिलिएंट बॉयो फार्मा, बॉयोवेट प्राइवेट लिमिटेड, एमएसडी एनिमल हैल्थ शामिल हैं। वहीं कुछ राज्यों की सरकारी कंपनियां भी पशुओं के वैक्सीन का उत्पादन करती हैं। कई वैक्सीन उत्पादक कंपनियों ने एग्री इन्नोवेट द्वारा जारी ईओआई में रुचि दिखाई है। इसके साथ समझौते के बाद कंपनियों को वैक्सीन बनाने की तकनीक और जरूरी मैटीरियल दिया जाएगा। लेकिन इसके बाद इन कंपनियों को उसी तरह की वैधानिक मंजूरी प्रक्रिया से गुजरना होगा जिससे मानव के लिए वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां गुजरती हैं। यह प्रक्रिया कोविड वैक्सीन जारी होने की तरह होगी। पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के एक अधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि जो कंपनियां वैक्सीन के कमर्शियल उत्पादन के लिए आगे आएंगी उनको मंजूरी प्रक्रिया में सरकार मदद करेगी। उक्त अधिकारी ने उम्मीद जताई कि जिस पैमाने पर वैक्सीन की जरूरत है उसे देखते हुए कई कंपनियां वैक्सीन का उत्पादन करने के लिए आगे आएंगी।