गेहूं और चावल के बढ़ते दाम केंद्र सरकार के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं। कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार कई तरह के कदम उठा चुकी है, फिर भी दोनों प्रमुख अनाजों की महंगाई पूरी तरह से काबू में नहीं आ रही है। ताजा कदम के तहत सरकार ने केंद्रीय पूल से 50 लाख टन गेहूं और 25 लाख टन चावल की खुले बाजार में बिक्री करने की घोषणा की है। साथ ही चावल का रिजर्व प्राइस 200 रुपये घटाकर 2900 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। मगर बड़ा सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या इस बार इसका फायदा पूरी तरह से उपभोक्ताओं को मिलेगा या पिछली बार (जनवरी-मार्च 2023 की ई-नीलामी) की तरह ही व्यापारी सस्ते सरकारी अनाज का सारा फायदा उठा ले जाएंगे।
केंद्रीय उभपोक्ता, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने बुधवार को एक बयान में कहा है कि खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत ई-नीलामी के जरिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) 50 लाख टन गेहूं और 25 लाख टन चावल की बिक्री करेगी। बयान में कहा गया है कि पिछली 5 नीलामी के अनुभवों को देखते हुए चावल के रिजर्व प्राइस को 3100 रुपये से घटाकर 2900 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। चावल की कीमतों में कटौती की पूर्ति उपभोक्ता मामले विभाग के प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड से की जाएगी।
गौरतलब है कि, ओएमएसएस के तहत निजी व्यापारियों के लिए इस साल दूसरी बार गेहूं की ई-नीलामी 28 जून से की जा रही है जो 31 मार्च, 2024 तक चलेगी। जबकि पहले दौर में जनवरी-मार्च 2023 तक 35 लाख टन गेहूं की बिक्री ई-नीलामी के जरिये की गई थी। चावल की ई-नीलामी निजी व्यापारियों के लिए इस साल पहली बार जुलाई के पहले हफ्ते से शुरू की गई है लेकिन खरीदार नहीं मिलने की वजह से एफसीआई के चावल का बहुत कम उठान हो रहा है। उस समय इसका रिजर्व प्राइस 3100 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था। खरीदारों के कम रुझान को देखते हुए ही कीमतों में 200 रुपये प्रति क्विंटल की कटौती करने का फैसला किया गया है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले एक साल (7 अगस्त, 2023 तक) में गेहूं की खुदरा कीमतें 6.77 फीसदी और थोक कीमतें 7.37 फीसदी बढ़ी है। इसी तरह, खुदरा बाजार में चावल के दाम 10.63 फीसदी और थोक में 11.12 फीसदी बढ़े हैं। खाद्य महंगाई में इन दोनों प्रमुख अनाजों का अहम योगदान होता है इसलिए सरकार इनकी कीमतों को नियंत्रण में रखना चाहती है ताकि खुदरा महंगाई फिर से न भड़क जाए, खासकर ऐसे समय में जब इस साल के अंत में कई राज्यों में विधानसभा के और अगले साल अप्रैल-मई में लोकसभा के चुनाव होने हैं।
गेहूं और चावल की महंगाई को नियंत्रित करने के लिए इस साल सरकार ने सबसे पहले जनवरी-मार्च में केंद्रीय पूल से 35 लाख टन गेहूं की बिक्री खुले बाजार में की। उसके बाद जून में स्टॉक लिमिट लगा दिया गया। गेहूं निर्यात पर तो पिछले साल से ही पाबंदी लगी हुई है। जून के अंत में दोबारा ई-नीलामी शुरू करने का फैसला किया गया। इन कदमों के बावजूद बाजार में गेहूं के दाम में नरमी नहीं आई है। जहां तक चावल की बात है तो इस साल सरकार ने सबसे पहले टूटे चावल के निर्यात पर पाबंदी लगाई और गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 20 फीसदी का शुल्क लगाया। इससे कीमतों में कमी नहीं आई तो जुलाई में गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया गया। इन सबके बावजूद दाम नहीं घट रहे हैं।
जनवरी-मार्च 2023 में भी जब निजी व्यापारियों, आटा मिलों और गेहूं उत्पाद निर्माताओं जैसे बड़े खरीदारों को ई-नीलामी के जरिये गेहूं की बिक्री की गई थी, तो उपभोक्ताओं को कीमतों में बहुत ज्यादा राहत नहीं मिली थी। आटा, ब्रेड और बिस्किट जैसे उत्पादों के खुदरा दाम में कंपनियों ने मामूली राहत ही दी थी, जबकि ई-नीलामी की वजह से गेहूं के थोक दाम में 1000 रुपये प्रति क्विंटल तक की कमी आई थी। इसकी तुलना में खुदरा कीमतों में ज्यादा कमी नहीं हुई। आटे की कीमतों में जहां सिर्फ 2-5 रुपये प्रति किलो की कमी आई थी, वहीं ज्यादातर ब्रेड और बिस्किट कंपनियों ने दाम नहीं घटाए थे। सरकार उपभोक्ताओं को महंगाई से राहत देने के कदम उठाती है मगर उसका फायदा निजी व्यापारी और कंपनियां उठा ले जाती हैं।