केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में अधिक आपूर्ति के कारण मिलों को कच्चे जूट का आयात बंद करने की सलाह दी है। साथ ही जूट आयातकों को दिसंबर तक एक निर्धारित प्रारूप में लेनदेन की रोजाना रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है।
केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय के अधीन आने वाले कोलकाता स्थित जूट आयुक्त के कार्यालय ने एक नोटिस में जूट मिलों को टीडी 4 से टीडी 8 वेरिएंट (व्यापार में इस्तेमाल किए गए पुराने वर्गीकरण के अनुसार) के जूट का आयात नहीं करने की भी सिफारिश की है क्योंकि ये देश में पर्याप्त रूप से उपलब्ध हैं।
भारतीय जूट मिल्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष संजय कजारिया ने कहा, ''कुल जूट उत्पादन और व्यापार में इन वेरिएंट की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत है।'' चालू सीजन में जूट की उपलब्धता 119 लाख गांठ रहने का अनुमान है। इसमें से 91 लाख गांठ उत्पादन, 23 लाख गांठ ओपनिंग स्टॉक और 5 लाख गांठ आयातित कच्चे जूट की हिस्सेदारी शामिल है।
2021-22 के आंकड़ों के अनुसार, जूट का आयात 62,500 टन था जिसका मूल्य 449 करोड़ रुपये था, जबकि निर्यात 32,000 टन तक पहुंच गया था जिसका मूल्य 222 करोड़ रुपये था। जूट आयुक्त ने हाल ही में किसानों के हितों की रक्षा के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) स्तर से नीचे कच्चे जूट के लेनदेन पर रोक लगा दी है। मंडियों में कच्चे जूट की कीमतें 4,100 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर गई हैं, जबकि औसत किस्म के लिए जूट का एमएसपी 5,050 रुपये प्रति क्विंटल है।
भारतीय जूट निगम को एमएसपी पर किसानों से कच्चा जूट खरीदने का काम सौंपा गया है, लेकिन हितधारकों ने नोट किया है कि उनका संचालन हर कोने को कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं है जिससे किसानों की सुरक्षा के लिए नियामक को हस्तक्षेप करना पड़ा।
पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, मेघालय, त्रिपुरा और आंध्र प्रदेश जूट के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं जहां के लाखों किसान इसकी खेती करते हैं।