कोविड-19 महामारी के बीच वित्त वर्ष 2021-22 के ऐतिहासिक बजट में सरकार के समक्ष अर्थव्यवस्था को तात्कालिक प्रोत्साहन देने के साथ ही लंबे भविष्य के लिए मजबूती प्रदान करने की चुनौती होगी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इन दोनों की बीच कितना संतुलन बना पाती हैं या नहीं यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
सरकार का कहना है कि महामारी का सबसे बुरा दौर समाप्त हो चुका है और अर्थव्यवस्था अब पटरी पर आ रही है। संसद में पिछले सप्ताह पेश आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि मौजूदा वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.7 प्रतिशत की गिरावट रहेगी जबकि अगले वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था तेजी से वापसी करेगी और जीडीपी में 11 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। यदि ऐसा होता है तब भी दो साल में जीडीपी में मात्र 2.4 प्रतिशत की वृद्धि होगी।
मोदी सरकार निर्भीक फैसलों के लिए जानी जाती है। पिछले तीन महीने में अप्रत्यक्ष कर संग्रह बढ़ने के बावजूद मौजूदा वित्त वर्ष राजस्व संग्रह में गिरावट तय है। सरकार अपना विनिवेश लक्ष्य पूरा करने के कहीं आसपास भी नहीं है। वर्ष 2020-21 के बजट में 2.14 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य रखा गया था जबकि 19,499 करोड़ रुपये का ही विनिवेश हो पाया है।
ऐसे में सरकार के पास राजस्व बढ़ाने के लिए करों और शुल्कों में बढ़ोतरी का एक मात्र विकल्प है। दूसरी ओर कारोबार और माँग को बढ़ावा देने की भी उससे अपेक्षा की जा रही है। सोमवार को पेश होने वाले बजट में आम लोगों और छोटे करदाताओं पर कर का बोझ बढ़ने की संभावना नहीं है, लेकिन अमीरों पर कर बढ़ाया जा सकता है। साथ ही नये शुल्क लगाकर और मौजूदा शुल्कों में बढ़ोतरी कर राजस्व संग्रह बढ़ाने के उपाय किये जा सकते हैं। बजट से इतर भी सरकार के पास वस्तु एवं सेवा करों में बदलाव का विकल्प रहेगा।
तात्कालिक उपायों में सार्वजनिक निवेश की जरूरत है, लेकिन सरकार इसके बजाय निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहनों की घोषणा कर सकती है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज से सरकार की मंशा साफ है कि वह दीर्घावधि विकास पर पहले से कहीं अधिक ध्यान देगी। दूरगामी प्रभाव वाले और ज्यादा रिटर्न देने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने पर बजट में फोकस हो सकता है। इसमें स्वास्थ्य, निर्माण, प्रौद्योगिकी और कृषि में आधुनिकीकरण पर अधिक बल दिया जायेगा।
कोविड-19 के कारण निश्चित रूप से सरकार को स्वास्थ्य क्षेत्र का आवंटन बढ़ाना होगा। टीकाकरण के पहले चरण में जहाँ स्वास्थ्यकर्मियों और अग्रिम पंक्ति के कोरोना योद्धाओं को टीका लगाया जा रहा है, वहीं दूसरे चरण में जब आम लोगों को टीके लगाने की बारी आयेगी तो यह देखना होगा कि इसकी कीमत सरकार उठाती है या लोगों को खुद देने होंगे। सरकार के पास इसका आंशिक बोझ उठाने का विकल्प भी होगा।
कोविड-19 ने भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर की अहमियत को रेखांकित किया है। बजट में इस पर आवंटन बढ़ना स्वाभाविक है। इसमें मेडिकल शिक्षा भी शामिल है।
दीर्घावधि उपायों में सड़कों, पुलों, रेल, आदि पर भी आवंटन बढ़ाया जा सकता है। कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी और निजी क्षेत्र को शामिल करने के लिए नीतिगत उपायों की घोषणा हो सकती है। सीमा पर मौजूदा स्थिति को देखते हुये रक्षा बजट में भी वृद्धि अपेक्षित है। अनुसंधान एवं विकास पर भी निवेश बढ़ाने के लिए नीतिगत घोषणायें संभव हैं।
उद्योग जगत को बजट में छूटों की अपेक्षा कर रहा है। उसे उम्मीद है कि कम से कम स्वास्थ्य उत्पादों पर करों में राहत दी जायेगी। वह इन उत्पादों के आयात शुल्कों में भी छूट चाहता है। पिछले बजट में कॉर्पोरेट कर में कटौती की गई थी, लेकिन इस बजट में ऐसी उम्मीद कम ही दिखती है।