इनोवेशन और बेहतर प्रबंधन से धान की पैदावार बढ़ाएं: डॉ. आर.एस. परोदा

प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए डॉ. परोदा ने बताया कि पंजाब के किसान अब हाइब्रिड चावल की खेती छोड़ चुके हैं क्योंकि मिल मालिक इनकी कम खरीद कर रहे थे। उन्होंने ब्रीडर्स से अपील की कि वे चावल की यील्ड सुधारने पर अनुसंधान केंद्रित करें, ताकि किसानों का विश्वास पुनः स्थापित किया जा सके और उत्पादन बढ़ाया जा सके।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के पूर्व महानिदेशक और वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. आर.एस. परोदा ने भारत के कृषि क्षेत्र के लिए एक गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि चीन औसतन 6 टन प्रति हेक्टेयर धान उत्पादन करता है, जबकि भारत में यह केवल 3.5 टन है। उन्होंने इस अंतर को कम करने के लिए उन्नत किस्मों और बेहतर प्रबंधन तकनीक के विकास पर जोर दिया। वे हैदराबाद स्थित आईसीएआर-भारतीय धान अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIRR) द्वारा आयोजित अखिल भारतीय समन्वित चावल अनुसंधान परियोजना (AICRPR) के तहत शोधकर्ताओं की वार्षिक बैठक के डायमंड जुबली समारोह में बोल रहे थे। 

प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए डॉ. परोदा ने बताया कि पंजाब के किसान अब हाइब्रिड चावल की खेती छोड़ चुके हैं क्योंकि मिल मालिक इनकी कम खरीद कर रहे थे। उन्होंने ब्रीडर्स से अपील की कि वे चावल की यील्ड सुधारने पर अनुसंधान केंद्रित करें, ताकि किसानों का विश्वास पुनः स्थापित किया जा सके और उत्पादन बढ़ाया जा सके।

कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (DARE) के सचिव और ICAR के महानिदेशक डॉ. एम.एल. जाट ने कहा कि उपभोग के पैटर्न, जलवायु परिवर्तन और भूमि क्षरण को गंभीरता से लेना होगा। चावल की किस्मों का विकास, तकनीक, बाजार नीति और सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर गहन शोध की आवश्यकता है। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से भारत के कृषि-खाद्य तंत्र पर क्षेत्रीय स्तर पर काम करने का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि देश में धान का क्षेत्रफल 50 लाख हेक्टेयर कम करना होगा, लेकिन साथ ही उत्पादन एक करोड़ टन बढ़ाना भी आवश्यक है। 

एआईसीआरपीआर देश में चावल को समर्पित सबसे बड़ा अनुसंधान नेटवर्क है, जिसमें देशभर के सभी धान उत्पादक राज्यों में 500 से अधिक वैज्ञानिक जुड़े हुए हैं। डायमंड जुबली बैठक का उद्देश्य वर्ष 2024 के दौरान किए गए चावल अनुसंधान की प्रगति पर चर्चा करना, अनुसंधान में नवीनतम विकास पर विमर्श करना और वर्ष 2025 के लिए तकनीकी कार्यक्रम तैयार करना है। यह बैठक 26 से 28 अप्रैल तक आयोजित की जा रही है।

ICAR-IIRR के निदेशक डॉ. आर.एम. सुंदरम ने 2024 के लिए अनुसंधान की प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की और 2025 के लिए भविष्य की अनुसंधान योजना बताई। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि ICAR-IIRR भारत का पहला संस्थान है जिसने सांबा महसुरी पृष्ठभूमि पर आधारित जीन संपादित चावल विकसित किया है। इसमें 19% अधिक पैदावार की क्षमता है, जिससे किसानों के उत्पादन, उत्पादकता और लाभ में वृद्धि होगी।

पी.जे.टी.ए.यू. (PJTAU) के कुलपति डॉ. अलदास जनैयाह ने बताया कि तेलंगाना में संगठित चावल अनुसंधान की शुरुआत 1928 में निजाम शासन के दौरान हुई थी। हिमायतसागर बांध के निर्माण ने किसानों को धान की खेती के लिए प्रोत्साहित किया। आज तेलंगाना देश में चावल अधिशेष उत्पादन वाला राज्य बन चुका है।

आईसीएआर के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ. डी.के. यादव ने कहा कि चावल अनुसंधान में प्रोत्साहन और जीन संपादन नए आयाम हैं। 1996 में बीज कानून लागू होने के बाद से भारत ने 1500 चावल किस्में जारी की हैं। कृषि निर्यात में 20% योगदान चावल का है, जिससे भारत को 48,000 करोड़ रुपये का विदेशी मुद्रा मिलती है। उन्होंने देश में हाइब्रिड चावल का रकबा बढ़ाने की आवश्यकता पर भी बल दिया।