कृषि कर्ज माफी से किसानों की स्थिति नहीं सुधरती। कुछ वर्षों के बाद किसान के सिर पर कर्ज का बोझ फिर खड़ा हो जाता है और उसे नई कर्ज माफी की जरूरत पड़ने लगती है। कृषि कर्ज माफी पर भारत कृषक समाज और नाबार्ड की एक स्टडी रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कृषि कर्ज माफी से किसानों के विलफुल डिफॉल्टर बनने यानी जानबूझकर कर्ज ना लौटाने की संभावना बढ़ जाती है, और ईमानदार किसान भी डिफॉल्ट करने लगते हैं। कर्ज माफी के प्रति किसानों के व्यवहार को समझने के लिए पंजाब, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के करीब 3000 किसानों से बात की गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि संकटग्रस्त किसान को दीर्घकालिक तरीके से मदद करने और उसे सशक्त बनाने के तरीकों पर पुनर्विचार की जरूरत है। इसमें उन ढांचागत कारकों के गहरे विश्लेषण की जरूरत बताई गई है जिनकी वजह से किसान लगातार संकट में आते हैं।
संस्थागत स्रोतों से ज्यादा कर्ज लेते हैं किसान
रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में 89.3 फ़ीसदी, महाराष्ट्र में 79.2 फ़ीसदी और उत्तर प्रदेश में 74.8 फ़ीसदी किसान बैंक जैसे संस्थागत स्रोतों से कर्ज लेते हैं। संस्थागत और गैर संस्थागत स्रोतों से कर्ज पर ब्याज दरों में भी काफी अंतर है। बैंक या अन्य संस्थाओं से किसानों को 5.9 से 7.7 फ़ीसदी ब्याज पर कर्ज मिलता है, जबकि गैर संस्थागत स्रोतों से कर्ज पर उन्हें 9.5 फ़ीसदी से 21 फ़ीसदी तक की दर से ब्याज देना पड़ता है।
कर्ज की राशि के लिहाज से देखें तो पंजाब में 75 फ़ीसदी, महाराष्ट्र में 83 फ़ीसदी और उत्तर प्रदेश में 76 फ़ीसदी कर्ज संस्थागत स्रोतों से लिया गया। पंजाब के किसान अन्य राज्यों से औसतन ज्यादा कर्ज लेते हैं। पंजाब का एक किसान हर साल लगभग 3.4 लाख रुपए का कर्ज लेता है, जबकि उत्तर प्रदेश का किसान 84,000 और महाराष्ट्र का सिर्फ 62,000 रुपए का कर्ज हर साल लेता है।
किसान कृषि कर्ज का इस्तेमाल दूसरे कार्यों में भी करते हैं। किसान क्रेडिट कार्ड पर लिए गए कर्ज का डायवर्जन पंजाब में सबसे अधिक और उत्तर प्रदेश में सबसे कम पाया गया। स्टडी में यह बात भी सामने आई कि औसत किसान के लिए इस तरह कर्ज की राशि का अन्यत्र इस्तेमाल जरूरी हो जाता है। यह उनके अस्तित्व के लिए जरूरी है।
किसानों के संकट में आने के कारण
पंजाब, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में किसानों के संकट में आने के कई कारण हैं। इनमें खेती की लागत बढ़ने, फसल या मवेशी को नुकसान और उपज की कीमत में कमी प्रमुख हैं। मौसम से जुड़ी समस्या किसानों को बहुत परेशान करती है। लगातार संकट में रहने के कारण किसान कर्ज के संकट को भी दूसरे संकट के जैसा ही मानते हैं।
जहां तक बिजली कटौती और दूसरी इंफ्रास्ट्रक्चर की समस्याएं हैं, इनका किसानों के पास कोई समाधान नहीं है। अपनी उपज बेचने में भी उन्हें दिक्कतें आती हैं। इसमें सबसे बड़ी समस्या बाजार में होने वाले लेनदेन में अपारदर्शिता और बिचौलियों पर अत्यधिक निर्भरता है। बाजार संबंधित संकट का सामना करने के लिए किसान महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) और कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) की मदद ले रहे हैं।
श्रम लागत बढ़ने और निम्न क्वालिटी के इनपुट के कारण किसानों की खेती की लागत बढ़ गई है। इससे निपटने के लिए कुछ किसानों ने निजी खर्चे घटाए तो कुछ गैर संस्थागत स्रोतों से कर्ज लेने पर मजबूर हुए।
पंजाब, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र तीनों राज्यों में किसानों को फसल बीमा की सुविधा ना मिलना या बीमे की राशि मिलने में देरी से जूझना पड़ता है। पूंजी की बढ़ती लागत से बचने के उपाय के तौर पर किसान कृषि उपकरण और मशीनरी खरीदने के बजाय उन्हें किराए पर लेना बेहतर समझते हैं, खासकर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में।
ज्यादा संकट वाले किसानों को कर्ज माफी का लाभ नहीं
रिपोर्ट के अनुसार तीनों राज्यों में सर्वाधिक संकट वाले 40 फ़ीसदी से अधिक किसानों को कृषि कर्ज माफी का कोई लाभ नहीं मिला। वास्तव में संकटग्रस्त किसानों के एक छोटे समूह को ही कृषि कर्ज माफी का फायदा मिलता है। भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजयवीर जाखड़ ने रूरल वॉयस से कहा, “कृषि कर्ज माफी की सबसे बड़ी समस्या इसका डिजाइन है। बड़ी संख्या में ऐसे लोग जिनका कर्ज माफ होना चाहिए था, वे इसके फायदे से वंचित रह गए। बीकेएस का मानना है कि ग्राम सभा के जरिए उन किसानों की पहचान की जानी चाहिए जो वास्तव में संकट में हैं और जिन्हें कर्ज माफी की जरूरत है।”
रिपोर्ट के अनुसार, जिन्होंने कर्ज माफी का फायदा लिया उन्हें नया कर्ज लेने में कोई खास परेशानी नहीं हुई। शायद यही वजह है कि जानबूझकर कर्ज डिफॉल्ट करने यानी विलफुल डिफॉल्ट की संभावना बढ़ गई है। 68 से 80 फ़ीसदी किसानों ने इस बात से सहमति जताई। 72 से 85 फ़ीसदी किसानों ने स्वीकार किया कि कृषि कर्ज माफी के बाद ईमानदार किसान भी कृषि कर्ज लौटाने में डिफॉल्ट करने लगे हैं। गैर संस्थागत कर्ज की तुलना में संस्थागत कर्ज के डिफॉल्ट होने की संभावना अधिक रहती है।
स्टडी में कुछ और बातें सामने आई हैं। सिंचित भूमि अधिक होने पर किसान का संकट कम होता है। इसी तरह, जिनका परिवार बड़ा है और जिन्होंने अलग-अलग स्रोतों से कर्ज ले रखा है, वैसे किसान कम संकट में आते हैं। गैर संस्थागत स्रोतों से ज्यादा कर्ज लेने वाले के लिए संकट भी ज्यादा होता है। यह भी कि कृषि कर्ज माफी से किसान के संकट के स्तर में कोई खास फर्क नहीं पड़ता है।
इसलिए जाखड़ के मुताबिक, “कृषि कर्ज माफी संकट का अस्थायी हल है। सरकार को स्थायी हल तलाशना चाहिए ताकि खेती फायदे का धंधा बन सके। इस तरह कर्ज माफी से बिजली, जल संसाधन और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण जैसे विभागों का आवंटन प्रभावित होता है। ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे भूमिहीन किसान और गरीब प्रभावित होते हैं। इसलिए राज्यों को दूसरे मद का पैसा कृषि कर्ज माफी में लगाने के बजाय ज्यादा संसाधन जुटाने के उपाय करने चाहिए।”