जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) सरसों के इनवायरमेंट रिलीज को जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) की मंजूरी पर भारतीय किसान संघ ने कई सवाल उठाए हैं। संघ का कहना है कि इसके पक्ष में जो भी बातें बताई जा रही हैं, वे विदेशों में किए गए शोध पर आधारित हैं। भारत में इन पर कोई शोध नहीं हुआ है।
18 अक्टूबर को GEAC की 147वीं बैठक में जीएम सरसों के इनवायरनमेंट रिलीज की सिफारिश की गई थी। यह फैसला 26 अक्तूबर को सार्वजनिक हुई जीईएसी की सिफारिशों के जरिये सामने आया था। भारतीय किसान संघ का कहना है, पिछले कई वर्षों से जीएम सरसों चर्चा में है। कभी यह बताया गया कि यह अधिक उपजाऊ है, कभी कहा गया कि इसे पुरुष बांझपन के लिए बनाया गया है। यह भी कहा गया कि यह सरसों खरपतवार रोधी है।
संघ का कहना है कि हमारे देश में इसके बारे में अध्ययन करना बाकी है। संघ के अनुसार, “GEAC जैसे जिम्मेदार संगठन ने गैर जिम्मेदाराना, अवैधानिक, अवैज्ञानिक निर्णय कैसे लिया? इसलिए लोग बोलते हैं कि कहीं कोई सौदेबाजी तो नहीं हुई? यह विषय हमारा नहीं है, जरूरी हुआ तो इसे ED और IT विभाग देखेगा।”
संघ के अनुसार, एक बड़ा प्रश्न यह भी है कि इस सरसों को पहले से किसानों के बीच में भेजकर हंगामा खड़ा करना किसका कार्य था और इस अवैधानिक कृत्य को अभी तक क्यों दण्डित नहीं किया गया? अगर ‘‘जी.एम. सरसों का तेल नहीं खाना’’ ऐसा माहौल बन गया तो देसी सरसों की खेती व व्यापार करने वाले ज्यादा परेशानी में आएंगे।
संघ के मुताबिक इस सरसों का मधुमक्खी और दूसरे परागण पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसके बारे में भी देश में कोई शोध नहीं हुआ। यह भी GEAC के अनुमति पत्रों से पता चलता है। यह किस्म अधिक उपजाऊ नहीं है, फिर भी कई प्रशासक ऐसा क्यों कह रहे हैं कि सरसों तेल के मामले में देश को आत्मनिर्भर करने के लिए यह जरूरी है।
संघ के अनुसार अगर सरकार सरसों जैसे खाद्य तेल में भारत को आत्मनिर्भर करना चाहती है, तो उसका एक सहज उपाय है- उसके लिए अच्छा मूल्य देने की घोषणा करने के साथ उसके खरीदारी की व्यवस्था करे। ऐसा हुआ तो दलहन के समान तिलहन में भी एक-दो वर्षों में आत्मनिर्भर बन जाएंगे। इसलिए संघ की मांग है कि सरकार इस निर्णय को तुरंत वापस ले और सभी हितधारकों के साथ बात करने के बाद ही कोई निर्णय ले।