कृषि में शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए एक तरफ केंद्र सरकार पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल को लागू करने की योजना बना रही है, दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ा किसान संगठन भारतीय किसान संघ (बीकेएस) इसका विरोध कर रहा है। भारतीय कृषि एवं अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने हाल ही में एग्रीकल्चर रिसर्च में निजी क्षेत्र का सहयोग लेने का प्रावधान किया है जिसके विरोध में बीकेएस ने मांग की है कि इसे निरस्त किया जाए और जीडीपी का 3 फीसदी हिस्सा कृषि शोध को बढ़ावा देने के लिए दिया जाए।
कर्नाटक के हुबली में आयोजित भारतीय किसान संघ की दो दिवसीय प्रबंध समिति की बैठक में आईसीएआर द्वारा रिसर्च में पीपीपी मॉडल अपनाने के विरोध में प्रस्ताव पास किया गया। बीकेएस के डॉ. सोमदेव शर्मा ने आईसीएआर के इस प्रावधान को निरस्त करने संबधी प्रस्ताव बैठक में रखा था। एक बयान में बीकेएस के अखिल भारतीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र ने कहा कि अभी हाल ही में आईसीएआर ने रिसर्च में प्राइवेट कंपनियों के साथ भागीदारी करने की घोषणा की है। आईसीएआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक वर्षों से कृषि शोध में लगे हुए हैं। इस प्रस्ताव के आने के बाद वह खुद को कमजोर व असहाय महसूस कर रहे हैं।
उन्होंने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि आईसीएआर के रिसर्च में निजी कंपनियों की भागीदारी के प्रावधान के कारण सभी रिसर्च बड़े-बड़े कॉरपोरेट हाउस के पास चला जाएगा और आईसीएआर के नाम का गलत उपयोग होगा। इसलिए भारतीय किसान संघ की मांग है कि आईसीएआर को रिसर्च के लिए सरकार पर्याप्त राशि दे ताकि वैज्ञानिक रिसर्च के काम को सफलतापूर्वक संपन्न कर अपेक्षाकृत परिणाम दें सके।
बीकेएस की मांग है कि किसानों के हित में जीडीपी का 3 फीसदी हिस्सा कृषि क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए दिया जाए। मोहिनी मोहन मिश्र ने बताया कि भारतीय किसान संघ ने अगले वर्ष एक लाख गांवों में सक्रिय ग्राम समिति बनाकर एक करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। प्रबंध कार्यकारिणी की बैठक में विस्तृत योजना बनाकर पूरे देश में सदस्यता अभियान शुरू किया जा रहा है। उन्होंने सरकार से मांग की कि विभिन्न राज्यों में बाढ़ व सूखा से प्रभावित किसानों को प्राकृतिक राहत आपदा कोष से राहत राशि का भुगतान कर उनकी मदद करें।