बासमती चावल की कीमतों में सीजन से पहले ही गिरावट शुरू हो गई है। एक साल पहले की तुलना में बासमती धान के दाम 28.5 फीसदी तक कम हो गए हैं। अभी सीजन शुरू भी नहीं हुआ है और कीमतें गिरकर 2500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास पहुंच गई हैं, जबकि पिछले साल इसी समय बासमती धान की कीमतें 3200 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल के बीच थीं। अक्टूबर-नवंबर में कीमतें बढ़कर 4000 से 4800 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं।
कीमतों में आई इस गिरावट का एक मुख्य कारण भारत सरकार द्वारा बासमती पर लागू किया गया 950 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) है, जिसके कारण बासमती के निर्यात पर असर पड़ा है। इस गिरावट से किसानों की चिंता बढ़ गई है, खासकर तब जब देश में बासमती का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। पिछले साल बासमती चावल का उत्पादन लगभग 25 फीसदी बढ़ा था, और इस साल भी अच्छी बुवाई के कारण उत्पादन में 15 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है। देश में बासमती किसानों की आय का मुख्य स्रोत है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मिर सहित अन्य मुख्य बासमती उत्पादक राज्यों में हर साल लगभग 15 लाख हेक्टेयर में बासमती की खेती की जाती है।
करनाल मंडी के व्यापारी संदीप ने रूरल वॉयल को बताया कि हाल ही के दिनों में बासमती की कीमतें लगातार कम हुई हैं। एक हफ्ते में ही कीमतों में 100 से 150 रुपये की गिरावट दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि फिलहाल दाम 2500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास रह गया है, जो पिछले साल 3500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास था। किसानों के लिए यह स्थिति चिंता का विषय है। बासमती धान की कीमतें अब सामान्य किस्म के धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के थोड़ा ही ऊपर रह गई हैं। केंद्र सरकार ने आगामी खरीफ मार्केटिंग सीजन के लिए सामान्य धान के लिए 2300 रुपये और ग्रेड-ए धान के लिए 2320 रुपये प्रति क्विंटल का एमएसपी निर्धारित किया है। सामान्य धान और बासमती धान की कीमत में बड़ा अंतर रहता है। बासमती चावल उत्पादन का अधिकांश हिस्सा निर्यात होता है और घरेलू बाजार में भी बासमती चावल की कीमतें सामान्य चावल से काफी अधिक रहती हैं।
बासमती निर्यातक और ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने रूरल वॉयल को बताया कि बासमती का पुराना स्टॉक अभी भी बचा हुआ है और जल्दी में बोई गई बासमती की नई फसल भी मंडियों में आना शुरू हो गई है, जिससे कीमतों में गिरावट आई है। उन्होंने 950 डॉलर प्रति टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को भी कीमतों में गिरावट की एक बड़ी वजह बताया। सेतिया ने कहा कि उच्च एमईपी बासमती के निर्यात को प्रभावित कर रहा है और इस समस्या को हल करने के लिए सरकार को इसे कम करने पर ध्यान देना चाहिए। इससे निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और किसानों को उचित दाम मिल सकेगा।
हरियाणा राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुशील जैन ने रूरल वॉयस को बताया कि एक साल पहले की तुलना में बासमती की कीमतों में 20 से 25 फीसदी की गिरावट आई है। इसका एक मुख्य कारण भारत सरकार द्वारा बासमती पर लागू किया गया 950 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) है, जिसके कारण बासमती का निर्यात प्रभावित हुआ है। दूसरी ओर, पाकिस्तान में एमईपी केवल 700 डॉलर प्रति टन है, जिसके चलते उनके बासमती की मांग बढ़ी है।
सुशील जैन ने कहा कि अगर भारत को बासमती का निर्यात बढ़ाना है तो एमईपी को घटाकर 700 डॉलर करना होगा या इसे पूरी तरह से हटाना होगा। उन्होंने कहा कि अगर सरकार यह कदम उठाती है, तभी देश से बासमती का निर्यात हो पाएगा। अन्यथा पाकिस्तान से बासमती का निर्यात बढ़ेगा और भारत के बासमती व्यापार को नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि इसका असर किसानों पर भी पड़ेगा और उन्हें उचित दाम नहीं मिलेंगे।
बासमती चावल की निर्यात नीति और कीमतों में आई गिरावट से भारतीय बासमती व्यापार को झटका लग सकता है। अगर एमईपी में बदलाव नहीं किया गया तो पाकिस्तान से बासमती का निर्यात बढ़ेगा और भारत के किसानों और व्यापारियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए, सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए उचित कदम उठाए और बासमती की कीमतों में स्थिरता लाए।