अंतरराष्ट्रीय बाजार में बासमती चावल की मांग बढ़ने से बासमती धान के भाव में तेजी दर्ज की जा रही है। बासमती धान का भाव 6,000 रुपये से ऊपर पहुंच गया है। हरियाणा की सरकारी खरीद एजेंसी हैफेड (हरियाणा राज्य सहकारी आपूर्ति और विपणन संघ लिमिटेड) द्वारा बासमती धान की खरीद शुरू किए जाने से भी भाव में तेजी आई है। इससे किसानों के चेहरे खिल गए हैं।
करनाल अनाज मंडी के प्रधान रजनीश चौधरी ने रूरल वॉयस को बताया कि बासमती सीएसआर-30 का भाव गुरुवार को 6200 रुपये प्रति क्विंटल रहा। दो-तीन दिन पहले 6500 रुपये प्रति क्विंटल तक इसकी बोली लगी थी। इसी तरह, 1121 किस्म के भाव में भी तेजी आई है। इसका भाव 4700 रुपये पर पहुंच गया है, जबकि 1509 किस्म का भाव 3600 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। 1718 किस्म के धान का भाव किसानों को 4500 रुपये मिल रहा है। पिछले साल की तुलना में इस बार भाव 700-800 रुपये प्रति क्विंटल तक अधिक रहा है।
उन्होंने बताया कि भाव में तेजी के पीछे अंतरराष्ट्रीय मांग बढ़ना है। इस साल अंतरराष्ट्रीय बाजार में बासमती चावल की अच्छी मांग है जिसके चलते घरेलू बाजार में भाव बढ़ रहा है। हैफेड के भी खरीद में उतरने से मंडी में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ी है जिससे भी भाव में तेजी आई है। बाजार में जितनी प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी किसानों को फसल का उतना अच्छा दाम मिलेगा।
पिछले साल हैफेड ने 85,000 टन धान खरीदा था और 65,000 टन चावल का निर्यात किया था। बासमती धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय नहीं किया जाता है। मांग के आधार पर इसके भाव में उतार-चढ़ाव होता रहता है। बासमती धान की खरीद अधिकतर निर्यातक या स्थानीय चावल कारोबारी करते हैं।
बासमती के नाम पर गैर-बासमती सफेद चावल का निर्यात का मामला सामने आने के बाद सरकार ने बासमती चावल का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 1200 डॉलर प्रति टन कर दिया था। घरेलू बाजार में उपलब्धता बढ़ाने और कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर पाबंदी लगा रखी है। ज्यादा एमईपी के विरोध में पिछले महीने निर्यातकों ने बासमती धान की खरीद बंद कर दी थी। उनका कहना था कि इससे निर्यात प्रभावित होगा क्योंकि पाकिस्तान 800-900 डॉलर प्रति टन पर बासमती का निर्यात करता है। अंतरराष्ट्रीय बासमती बाजार में पाकिस्तान भारत का प्रमुख प्रतिद्वंद्वी है।
इसके बाद सरकार ने निर्यातकों की मांग मानते हुए एमईपी को घटाकर 950 डॉलर प्रति टन कर दिया। इससे निर्यातकों का उत्साह बढ़ा और खरीद में तेजी आई, जिसका असर भाव पर देखने को मिल रहा है।