इस सदी की शुरुआत से कृषि वैज्ञानिक बायोफोर्टिफिकेशन पर काफी फोकस कर रहे हैं। बायोफोर्टिफिकेशन का मतलब है फसलों की ऐसी वैरायटी विकसित करना जिससे लोगों में विटामिन की कमी दूर हो सके। ज्यादा फोकस रोजाना खाए जाने वाले चावल, गेहूं के साथ करीब एक दर्जन अन्य फसलों पर रहा है। विटामिन ए युक्त शकरकंद की बायोफोर्टीफाइड वैरायटी 2004 में विकसित की गई थी। उसके बाद 12 विभिन्न फसलों की बायोफोर्टीफाइड वैरायटी 60 से अधिक देशों में रिलीज की जा चुकी है अथवा वे परीक्षण के चरण से गुजर रही हैं।
30 अगस्त को बायोफोर्टिफाइड फसलों को लेकर चल रहे अनुसंधान को उस समय एक नया मुकाम मिला जब डॉ. महालिंगम गोविंदराज को नॉर्मल बोरलॉग अवॉर्ड दिए जाने की घोषणा हुई। डॉ. गोविंदराज को दुनिया का पहला बायोफोर्टीफाइड बाजरा विकसित करने का श्रेय जाता है। उन्होंने 2014 में धनशक्ति नामक वैरायटी का विकास किया था।
बोरलॉग अवॉर्ड
रॉकफेलर फाउंडेशन की तरफ से दिए जाने वाले नॉर्मन बोरलॉग अवार्ड में 10 हजार डॉलर दिए जाते हैं। हर साल अक्टूबर महीने में अमेरिका के आयोवा में 40 साल से कम उम्र के वैज्ञानिकों को उनके कार्य के लिए यह अवार्ड दिया जाता है। गोविंदराज 2011 में शुरू हुए इस अवार्ड को पाने वाले पहले भारतीय कृषि वैज्ञानिक हैं। खास बात यह है कि उन्होंने 2011 में ही फसलों के बायोफोर्टिफिकेशन, खासकर बाजरा पर अनुसंधान का कार्य शुरू किया था।
अवार्ड की सूचना पर खुशी व्यक्त करते हुए डॉ. गोविंदराज ने कहा, “मिलेट वर्ष 2023 में मुझे दिया जाने वाला पुरस्कार सिर्फ मेरे कार्यों को स्वीकार्यता नहीं बल्कि भारत में बाजरा पर कार्य करने वाले सभी अनुसंधानकर्ताओं की स्वीकार्यता है। भारत के पूरे क्रॉप समुदाय को इस पर खुश होना चाहिए।”
डॉ. गोविंदराज हार्वेस्टप्लस और अलायंस ऑफ बायोडायवर्सिटी इंटरनेशनल तथा सीआईएटी में 2021 से वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। वे हैदराबाद में रहते हैं। उन्होंने 2007 में इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसैट) ज्वाइन किया था और बाजरे पर अधिकतर अनुसंधान कार्य वहीं रहते किया है।
कुपोषण दूर करने की चुनौती
भारत में कुपोषण की समस्या काफी गंभीर है। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार 70% से ज्यादा गर्भवती महिलाएं, 50% सामान्य महिलाएं और 3 साल से कम उम्र के 70% बच्चों में आयरन की कमी है। इन वर्गों में जिंक की कमी भी काफी पाई जाती है। यह तथ्य जगजाहिर है कि आयरन की कमी होने पर सीखने और कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। गर्भावस्था के दौरान कई तरह की समस्याएं भी आती हैं। जिंक की कमी से बच्चों में स्टंटिंग (विकास रुक जाना) की समस्या उत्पन्न होती है। उनमें डायरिया, निमोनिया जेैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है और कई बार उनकी मौत भी हो जाती है। विकासशील देशों में इस समस्या को दूर करने के लिए जो रणनीति अपनाई जाती है उनमें एक फसलों का बायोफोर्टिफिकेशन है।
धनशक्ति का विकास
इक्रीसैट और महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ ने संयुक्त रूप से अधिक आयरन और जिंक वाले बाजरा की वैरायटी विकसित की है। 2011-13 के दौरान विकसित इस वैरायटी का नाम धनशक्ति रखा गया है। भारत में जारी होने वाली किसी फसल की यह पहली खनिज युक्त बायोफोर्टीफाइड वैरायटी है। डॉ. गोविंदराज इक्रीसैट की तरफ से प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर के रूप में बाजरा बायोफोर्टिफिकेशन अनुसंधान का नेतृत्व कर रहे थे। इसे विकसित करने में 26 पार्टनर थे- 6 राष्ट्रीय रिसर्च सिस्टम के और 20 निजी बीज कंपनियों के।
एक किलो धनशक्ति बाजरा में 71 मिलीग्राम आयरन और 40 मिलीग्राम जिंक होता है। इसे 2014 में पूरे देश में उपलब्ध कराया गया था। निर्मल सीड कंपनी के अलावा महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान समेत कई प्रदेशों में स्टेट सीड कॉरपोरेशन किसानों को यह बीज उपलब्ध करा रही है। इस समय एक लाख से अधिक किसान इस वैरायटी का इस्तेमाल कर रहे हैं।
अवार्ड की घोषणा करने वाले वर्ल्ड फूड प्राइस के अनुसार धनशक्ति वैरायटी का 200 ग्राम बाजरा रोज की जरूरत का 80% खनिज उपलब्ध करा सकता है। जबकि सामान्य किस्म के बाजरे में ये तत्व 20% तक ही पाए जाते हैं। अनुमान है कि 2024 तक 90 लाख से अधिक भारतीय बाजरे की बायोफोर्टीफाइड वैरायटी का इस्तेमाल कर रहे होंगे। इससे उनमें पोषण का स्तर सुधरेगा। पश्चिमी अफ्रीका के किसानों ने भी 2019 से बायोफोर्टीफाइड वैरायटी की नई किस्म को अपनाया है। अफ्रीका में जो वैरायटी लांच की गई है उसका नाम ‘चकती’ है।
हाइब्रिड और जलवायु रोधी फसल
डॉ. गोविंदराज के नेतृत्व में अनुसंधानकर्ताओं ने 2015 में बाजरे की एक हाइब्रिड वैरायटी विकसित की जिसका नाम आईसीएचएम 1201 रखा गया। इसकी मार्केटिंग शक्तिवर्धक सीड कंपनी शक्ति 1201 नाम से कर रही है। इस वैरायटी के एक किलो बाजरे में 75 मिलीग्राम आयरन और 40 मिलीग्राम जिंक पाया जाता है। लेकिन धनशक्ति की तुलना में इसकी पैदावार 30% अधिक होती है।
डॉ. गोविंदराज का कहना है, “2017 से मैंने हाइब्रिड वैरायटी विकसित करने पर फोकस किया है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान बाजरे की 8 से 10 हाइब्रिड किस्में विकसित की गई हैं। भारत में हाइब्रिड वैरायटी ज्यादा लोकप्रिय है। ज्यादा वैरायटी की उपलब्धता से बीज उद्योग फल-फूल सकता है। लोगों के खाने में बाजरे का इस्तेमाल बढ़ने से प्रोसेसिंग इंडस्ट्री को भी फायदा होगा।”
शरीर में आयरन और जिंक की कमी दूर करने के अलावा बाजरा जलवायु परिवर्तन रोधी और स्मार्ट फूड के तौर पर भी लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा है। यह सूखा, अधिक तापमान और मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक होने पर भी उसे सह सकता है। इसमें पोषक तत्व अधिक पाए जाने के साथ यह ग्लूटेन मुक्त भी होता है।
भारत पहला देश है जिसने बाजरे के बायोफोर्टिफिकेशन के लिए न्यूनतम मानक तय किए हैं। यह मानक तैयार करने के लिए 1998 से देश में उपलब्ध 200 से अधिक वैरायटी का विश्लेषण किया गया। डॉ. गोविंदराज के अनुसार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों तथा अन्य पक्षों के वैज्ञानिकों तथा विशेषज्ञों ने यह विश्लेषण किया।
डॉ. गोविंदराज तमिलनाडु के एक किसान परिवार से आते हैं। उन्होंने तमिलनाडु एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी से प्लांट ब्रीडिंग और जेनेटिक्स में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। 2021 से हार्वेस्टप्लस में वे एशिया तथा अफ्रीका में अनुसंधान कार्यों के कोआर्डिनेशन का काम देख रहे हैं। बाजरा के अलावा हार्वेस्टप्लस दर्जनभर अन्य फसलों के बायोफोर्टिफिकेशन पर दुनिया भर में हो रहे अनुसंधान को बढ़ावा दे रही है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं , विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कृषि, बिजनेस तथा स्टार्टअप में उनकी विशेषज्ञता है, वह हैदराबाद में रहते हैं)