आशा-किसान स्वराज ने एग्री मार्केटिंग पॉलिसी के ड्राफ्ट पर जताई आपत्ति, बैक डोर से कृषि कानूनों की वापसी बताया

ड्राफ्ट में कृषि कानूनों में सुधार की पहल को आशा-किसान स्वराज ने कृषि कानूनों के प्रमुख प्रावधानों को फिर से लागू करने का प्रयास बताया, जिन्हें किसानों के विरोध के कारण निरस्त करना पड़ा था।

केंद्र सरकार की ओर से लाए जा रहे एग्रीकल्चर मार्केटिंग के नेशनल पॉलिसी फ्रेमवर्क को लेकर किसान संगठन एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा-किसान स्वराज) ने अपनी आपत्तियां दर्ज कराई हैं। संगठन ने केंद्र सरकार को लिखे पत्र में ड्राफ्ट को बैक डोर से निरस्त कृषि कानूनों की वापसी की कोशिश करार दिया है। 

कृषि मंत्रालय ने 25 नवंबर को एग्रीकल्चर मार्केटिंग के लिए नेशनल पॉलिसी फ्रेमवर्क का ड्राफ्ट सार्वजनिक करते हुए 15 दिन के अंदर पब्लिक के सुझाव मांगे थे। देश के करोड़ किसानों की आजीविका से जुड़े इस महत्वपूर्ण मुद्दे के लिए सिर्फ 15 दिन का कम समय दिया गया, जिसे किसान संगठन ने नाकाफी बताया है। आशा-किसान स्वराज का कहना है कि ड्राफ्ट को एक नजर देखने से ही पता चलता है कि यह केंद्र सरकार द्वारा कृषि बाजारों को डि-रेगुलेट करने तथा किसानों को कॉरपोरेट के रहमोकरम पर छोड़ने के एजेंडे को फिर से लागू करने का प्रयास है।  

आशा-किसान स्वराज के डॉ. राजिंदर चौधरी और कविता कुरुगंटी की ओर से लिखे गये पत्र में कहा गया है कि नेशनल पॉलिसी फ्रेमवर्क को राज्य सरकारों के साथ व्यापक विचार-विमर्श कर तैयार करना चाहिए था। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी किसानों की प्रमुख लंबित मांग है लेकिन ड्राफ्ट में इसे पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है। एक बड़ी खामी यह है कि इसमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियों और प्रतिबद्धताओं का कोई जिक्र नहीं है।

आशा-किसान स्वराज का कहना है कि बिना सरकारी निगरानी के मार्केटिंग के कई चैनल खोलने से शोषण और धोखाधड़ी का खतरा बढ़ सकता है। ड्राफ्ट पॉलिसी फ्रेमवर्क में कृषि बाजारों के रेगुलेशन का कोई जिक्र नहीं है। न ही अनरेगुलेटेड थोक बाजार और प्राइवेट थोक बाजारों से जुड़ी समस्याओं को हल करने का प्रस्ताव है। लेकिन निजी बाजारों या अनियमित बाजारों को अतार्किक ढंग से बढ़ावा दिया गया है।

ड्राफ्ट में कृषि कानूनों में सुधार की पहल को आशा-किसान स्वराज ने कृषि कानूनों के प्रमुख प्रावधानों को फिर से लागू करने का प्रयास बताया, जिन्हें किसानों के विरोध के कारण निरस्त करना पड़ा था। संगठन का कहना है कि "कृषि-व्यापार में आसानी" किसानों के हितों की कीमत पर नहीं की जा सकती है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने से निरस्त हुए कृषि कानून की बू आ रही है। संगठन ने सवाल उठाया कि ड्राफ्ट में उन्हीं तथाकथित सुधारों पर जोर क्यों दिया जा रहा है जो किसानों की बाजार संबंधी दिक्कतों को हल कर पाने नाकाम रहे हैं।

आशा-किसान स्वराज ने सुझाव दिया है कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को इस ड्राफ्ट पॉलिसी फ्रेमवर्क को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। क्योंकि यह खारिज हो चुके कृषि-बाजार सुधारों को फिर से लागू करने का एक प्रयास है, जो तीन कुख्यात कृषि कानूनों में निहित थे।