पिछले दिनों सरकार ने कहा कि अगर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) भारत को अनुमति दे तो हम दुनिया की गेहूं की मांग को पूरा करने के लिए तैयार हैं। लेकिन लगता है अब इस इजाजत की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि जिस तरह से चालू रबी सीजन (2022-23) में मार्च और अप्रैल के शुरू में तापमान बढ़ने के चलते उत्पादकता प्रभावित होने की खबरें आ रही हैं, वह इस बात का संकेत है कि देश में गेहूं का कुल उत्पादन सरकार के 11.13 करोड़ टन अनुमान से काफी कम रहने वाला है। इसका संकेत चालू रबी मार्केटिंग सीजन के 20 अप्रैल, 2022 तक के गेहूं की सरकारी खरीद के आंकड़ों में दिखने लगा है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा आज जारी आंकड़ों के मुताबिक अभी तक देश में कुल 109.78 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है। सबसे अधिक सरकारी खरीद वाले राज्यों पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश में खरीद के जो आंकड़े अभी तक आए हैं वह यहां खरीद के पिछले साल से काफी कम रहने का संकेत दे रहे हैं। ऐसे में सरकार द्वारा तय 444 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद का लक्ष्य पूरा होने की कोई सूरत नहीं दिख रही है।
इसका सीधा असर केंद्रीय पूल में गेहूं के स्टॉक और यहां तक कि सरकार द्वारा मुफ्त में अनाज देने की योजना पर भी पड़ सकता है। ऐसे में निर्यात की बड़ी संभावनाओं पर पानी फिर सकता है। हालांकि ग्लोबल ट्रेड के एक्सपर्ट्स का कहना है कि निर्यात के लिए डब्ल्यूटीओ को कोई अनुमति देने का अधिकार या उसके पास ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, बल्कि भारत के बढ़ते कृषि उत्पादों के निर्यात के चलते कई देश वहां शिकायत लेकर जरूर पहुंच गये हैं।
20 अप्रैल तक गेहूं की खरीद
राज्य - खरीद की मात्रा
पंजाब - 55.25
हरियाणा - 32.39
उत्तर प्रदेश - 0.51
मध्य प्रदेश - 21.58
बिहार - 0.0
राजस्थान - 0.01
उत्तराखंड - 0.01
चंडीगढ़ - 0.03
दिल्ली - 0.0
झारखंड - 0.0
गुजरात - 0.0
महाराष्ट्र - 0.0
हिमाचल प्रदेश - 0.0
जम्मू-कश्मीर - 0.0
पश्चिम बंगाल - 0.0
(खरीद की मात्रा लाख टन में)
इस साल के गेहूं उत्पादन को लेकर कई तरह के तथ्य सामने आ रहे हैं और पंजाब व हरियाणा में किसान उत्पादन में 15 फीसदी तक की कमी की बात कर रहे हैं। इसी तरह की सूचनाएं उत्तर प्रदेश से भी आ रही हैं। हालांकि अभी तक सरकार ने इस बारे में आधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं कहा है। इस साल रबी सीजन की बुआई के समय डीएपी की उपलब्धता का संकट पैदा हुआ था, उसका सीधा असर उत्पादन पर दिखने की आशंका है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के एक कृषि वैज्ञानिक का कहना है कि डीएपी के कम उपयोग का सीधा असर गेहूं के पौधों की संख्या जिसे टिलरिंग कहते हैं, पर पड़ता है। उसके बाद मार्च से ही अचानक तापमान उस समय बढ़ा जब गेहूं की फसल में दूध से दाना बनने की प्रक्रिया चलती है। अधिक तापमान के चलते यह दाना सिकुड़ गया है और इसकी सीधा असर उत्पादन में गिरावट रूप में देखने को मिल रहा है।
इन परिस्थितियों के चलते सरकार द्वारा पिछले साल की गई गेहूं की 433.44 लाख टन की खरीद के मुकाबले खरीद 300 लाख टन से भी कम रहने के आसार बन रहे हैं। एफसीआई के आंकड़ों के मुताबिक 20 अप्रैल तक गेहूं की कुल 109.78 लाख टन की सरकारी खरीद में पंजाब में 55.25 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है। वहीं हरियाणा में 32.39 लाख टन और मध्य प्रदेश में 21.58 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई है। उत्तर प्रदेश में 51 हजार टन, चंडीगढ़ में तीन हजार टन और राजस्थान व उत्तराखंड में एक हजार टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई है। अन्य राज्यों में बहुत मामूली या न के बराबर खरीद हुई है क्योंकि एफसीआई के आंकड़ों में इनके आगे शून्य लिखा है।
पिछले साल की कुल 433.44 लाख टन की सरकारी खरीद में पंजाब में 132.22 लाख टन, हरियाणा में 84.93 लाख टन, मध्य प्रदेश में 128.16 लाख टन, उत्तर प्रदेश में 56.41 लाख टन और राजस्थान में 23.40 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। वहीं बिहार में 4.56 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी। चालू साल की खरीद के आंकड़े खुद कहानी कह रहे हैं।
भारत कृषक समाज के प्रमुख अजयवीर जाखड़ ने पिछले दिनों ट्वीट किया था कि अचानक गर्मी बढ़ने से गेहूं उत्पादन 15 फ़ीसदी कम रह सकता है। इसके अलावा पंजाब में एफसीआई की खरीद 25 फ़ीसदी कम रह सकती है। जाखड़ के अनुसार खाद्य सुरक्षा के लिए पूरे देश में सरकारी एजेंसियों की खरीद पिछले साल की तुलना में 90 लाख टन कम रहने के आसार हैं।
पंजाब के संगरूर जिले की भवानीगढ़ तहसील के बिंबर गांव के किसान गुरबख्श सिंह ने रूरल वॉयस को बताया कि पिछले साल की तुलना में उपज लगभग आधी रह गई है। एक एकड़ में सिर्फ 15 क्विंटल की पैदावार हुई है, जबकि सामान्य वर्षों में यह 20 से 22 क्विंटल हुआ करती थी। उन्होंने बताया कि कुछ किसानों को तो प्रति एकड़ सिर्फ 10 क्विंटल गेहूं की उपज हुई है। वहीं, उत्तर प्रदेश के शामली जिले के खेड़ी बैरागी गांव के किसान जितेंद्र हुड्डा ने बताया कि तापमान जल्दी बढ़ने और येलो रस्ट के चलते पैदावार में 10 से 15 फ़ीसदी का नुकसान हुआ है।
इस साल गेहूं की कटाई भी जल्दी हो रही है और सरकारी खरीद में बड़ी खरीद वाले राज्यों में बहुत तेजी से बदलाव की संभावना नहीं है। वहीं निर्यात बाजार में तेजी के चलते निर्यातक भी गेहूं की खरीद कर रहे हैं और घरेलू ट्रेडर भी बेहतर दाम की उम्मीद में लंबे समय के बाद सक्रिय हैं। इसके चलते कई राज्यों में गेहूं का दाम 2015 रुपये प्रति क्विटंल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुकाबले 2200 रुपये प्रति क्विटंल तक चला गया है। इसका सीधा असर सरकारी खरीद पर पड़ रहा है। पिछले साल भारत ने 70 लाख टन से अधिक गेहूं निर्यात किया और इस साल अभी तक करीब 40 लाख टन के निर्यात सौदों की जानकारी आ रही है।
दूसरी ओर केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक तीन साल के सबसे कम स्तर पर है। इस बारे में पिछले दिनों रूरल वॉयस ने एक विस्तृत खबर जारी की थी। 1 अप्रैल को केंद्रीय पूल में 190 लाख टन का स्टॉक था। हालांकि बफर मानकों के मुताबिक उक्त तिथि को केंद्रीय पूल में केवल 78 लाख टन गेहूं की जरूरत होती है। अगर सरकार 300 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद कर लेती है तो यह एक उपलब्धि होगी। हालांकि कुछ एक्सपर्ट्स इसके 250 लाख टन के आसपास रहने का अनुमान लगा रहे हैं। वहीं सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत पूरे साल में 260 लाख टन गेहूं की जरूरत होगी। इसके साथ सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को छह माह के लिए बढ़ा दिया है। इसके तहत हर माह प्रति लाभार्थी को पांच किलो अन्न मुफ्त में दिया जाता है। इसमें छह माह के लिए 110 लाख टन गेहूं की जरूरत होगी। अगर योजना को पूरे साल के लिए बढ़ाया जाता है तो यह जरूरत 220 लाख टन हो जाएगी। वहीं केंद्रीय पूल में 190 लाख गेहूं और करीब 300 लाख टन खरीद से उपलब्धता करीब 490 लाख टन टन रहेगी। ऐसे में अगर खऱीद 250 लाख टन पर अटक जाती है तो अप्रैल, 2023 को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 78 लाख टन के मानक से नीचे जा सकता है।
उपर दी गई परिस्थिति में सरकारी खरीद कम रहने की स्थिति में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत गेहूं के मुफ्त आवंटन की अवधि बढ़ाने और निर्यात के लिए केंद्रीय पूल से खाद्यान्न उपलब्ध कराने जैसी संभावनाओं पर गंभीरता से पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
दूसरी ओर आयातक भारत के गेहूं की गुणवत्ता पर सवाल उठाकर उसके लिए कम कीमत दे रहे हैं। इस समय भारतीय गेहूं के निर्यात सौदे 335 से 340 डॉलर प्रति टन की कीमत पर हो रहे हैं। जबकि इसी गुणवत्ता के अर्जेंटीना समेत दूसरे देशों का गेहूं 400 डॉलर प्रति टन पर बिक रहा है। इसलिए दुनिया भर के लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराने की बजाय पहले हमें अपनी जरूरत के प्रबंधन को ठीक से देखने की जरूरत है और जितना जल्दी हो गेहूं की उत्पादन स्थिति पर सरकार को विस्तृत जानकारी देनी चाहिए।