भारतीय सेब उत्पादक किसानों ने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान को कहा है कि सेब का न्यनतम आयात मूल्य (एमआईपी) कम से कम 90 रुपये प्रति किलोग्राम होना चाहिए क्योंकि घरेलू किसानों की लागत इसके आसपास ही आती है। सरकार द्वारा सेब की मौजूदा एमआईपी 50 रुपये प्रति किलोग्राम तय की गई है जिसके चलते देश में सस्ती कीमतों पर ईरान और तुर्की का सेब बड़े पैमाने पर आयात हो रहा है। इसके साथ ही चीन का सेब संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) होकर भारत आ रहा है जबकि यूएई में सेब पैदा नहीं होता। फिर भी वहां से आयात का सीधा मतलब चीनी सेब का भारत आना है। इसी तरह साउथ एशियन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (साफटा) की आड़ में बड़ी मात्रा में ईरान का सेब अफगानिस्तान के रूट से भारत आ रहा है।
एमआईपी कम होने और आयात शुल्क होने के चलते घरेलू सेब उत्पादकों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। इस स्थिति में घरेलू बाजार में हिमाचल की हिस्सेदारी घट गई है जो चिंताजनक है। शिवराज सिंह को लिखे एक पत्र में प्रोग्रेसिव ग्रोवर्स एसोसिएशन ने यह बातें कहीं। एसोसिएशन द्वारा 5 सितंबर, 2024 को भेजे इस पत्र की प्रति रूरल वॉयस के पास है।
एसोसिएशन की ओर से लिखे गए पत्र में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 2023 में विदेशी सेबों के लिए 50 रुपये प्रति किलोग्राम का एमआईपी निर्धारित किया था। इस निर्णय के बाद ईरान, यूएई, अफगानिस्तान और तुर्की जैसे देशों से सस्ते सेब भारत में बड़ी मात्रा में आयात किए जा रहे हैं। यह सेब भारतीय सेबों की तुलना में काफी कम कीमत पर बेचे जा रहे हैं, जिससे बागवानों को अपनी लागत निकालने में दिक्कत हो रही है।
एसोसिएशन ने कहा है कि भारत में सेब उत्पादन में भी गिरावट देखी जा रही है। 2010-11 में देश में 2,891 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता था, जो 2021-22 में घटकर 2,437 हजार मीट्रिक टन रह गया। हिमाचल प्रदेश का हिस्सा भी 31 फीसदी से घटकर 26.42 फीसदी हो गया। इस बीच चीन और ईरान जैसे देश भारतीय बाजार में अपने सस्ते सेब बेच रहे हैं, जिससे भारतीय सेब उत्पादकों के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं।
एसोसिएशन के अनुसार, ईरान, यूएई, अफगानिस्तान और तुर्की से आयात किए जाने वाले सेब अब भारत के कुल सेब आयात का लगभग 65 फीसदी हैं। 2023-24 में इन देशों से कुल 1,901 करोड़ रुपये का सेब भारत पहुंचा, जो देश की कुल मांग का करीब 11 फीसदी है। इससे भारतीय किसानों को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। पहले चीन भारत में सेब का सबसे बड़ा निर्यातक था, लेकिन अब ईरान, यूएई और अफगानिस्तान के सस्ते सेब भारतीय बाजार में हावी हो रहे हैं।
एसोसिएशन के अध्यक्ष लोकिंदर बिष्ट ने रूरल वॉयस को बताया कि कम आयात शुल्क के कारण आज बाजार में ईरान जैसे देशों का सेब 60 से 70 रुपये प्रति किलो के दाम पर मिल रहा है। उन्होंने कहा कि स्थानीय सेब उत्पादक ईरान से आने वाले सस्ते सेब का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हमारे यहां उत्पादन, कटाई, पैकेजिंग और माल ढुलाई की लागत ही 55 से 60 रुपये प्रति किलो है।
बिष्ट ने कहा कि यदि सेब आयात किया जा रहा है, तो नियमों के अनुसार इसे इतने कम दाम पर बेचना संभव नहीं है। एमआईपी लागू होने के बाद 50 रुपये प्रति किलो से कम पर सेब भारत नहीं पहुंच सकता और उस पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क जुड़ने के बाद इसकी कीमत 75 रुपये प्रति किलो हो जाती है। इसके बाद व्यापारियों का मुनाफा जुड़ने से यह 100 रुपये प्रति किलो से कम पर नहीं बिक सकता। इसके बावजूद, ईरानी सेब सस्ते दामों पर बिक रहे हैं, जो किसी गड़बड़ी का संकेत है। उन्होंने कहा कि या तो इन देशों से आने वाले फलों की कीमत कम दिखाई जा रही है ताकि आयात शुल्क से बचा जा सके, या फिर इन्हें साउथ एशियन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (साफटा) के तहत आयात किया जा रहा है, जहां आयात शुल्क लागू नहीं है।
बिष्ट ने कहा कि सेब उत्पादकों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि यदि तुरंत कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो बढ़ती इनपुट लागत और ईरान से हो रहे सस्ते आयात से सेब की पूरी अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेकर उचित कदम उठाएगी।