सरकार ने दालों के मामले में 2027 तक आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य रखा है, लेकिन उत्पादन में गिरावट के चलते इस लक्ष्य को हासिल कर पाना मुश्किल दिख रहा है। उत्पादन के अनुमानों में बदलाव और मार्केट अनुमानों के बीच चना की कीमतें भी बढ़ रही हैं। इसका बफर स्टॉक भी कम रह गया है। दालों के दाम पहले ही बढ़ रहे हैं और चना का रुख देखते हुए उपभोक्ताओं को आगे इनकी और अधिक कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए।
चना की कीमतें कितनी ऊपर जाएंगी यह वैश्विक बाजार की कीमत से ही तय होगा। इस समय आस्ट्रेलिया से चना का आयात मूल्य करीब 7200 रुपये प्रति क्विंटल पड़ रह है। वहीं अप्रैल, 2024 के महंगाई के आंकड़ों के मुताबिक दालों की महंगाई दर 16.84 फीसदी रही है और उपभोक्ता मामले विभाग के अनुसार 23 मई को चना दाल की कीमत 85 रुपये प्रति किलो रही। एक साल पहले यह 70 रुपये प्रति किलो थी।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी और सरकारी खरीद जैसे उठाये गये कदमों से दालों का उत्पादन 2015-16 के 163.2 लाख टन से बढ़कर 2021-22 में 273 लाख टन तक पहुंच गया था, उसमें भी चना उत्पादन अधिक बढ़ा। वहीं दो साल की सरकारी खरीद में चना का बफर स्टॉक पिछले साल 30 लाख टन को पार कर गया। लेकिन सूत्रों के मुताबिक अभी यह पांच लाख टन से भी कम है। ऐसे में 7000 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच चुकी चना की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने इसके आयात पर शुल्क खत्म कर दिया है। चालू रबी मार्केटिंग सीजन (2024-25) के लिए चना का एमएसपी 5440 रुपये प्रति क्विंटल है। पिछले साल यह 5335 रुपये प्रति क्विंटल था।
सरकारी एजेंसियों की खरीद के चलते 2023 में सरकार के पास 30 लाख टन से अधिक चना का बफर स्टॉक था। पिछले साल सरकार ने 23.55 लाख टन की खरीद की थी और 14.37 लाख टन का उससे पहले के साल का बकाया स्टॉक था। लेकिन पिछले करीब एक साल में सरकार ने दालों की कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया। सरकार ने ऐसा बेहतर उत्पादन की उम्मीद में किया, लेकिन वास्तव में उत्पादन घट गया। पिछले साल सरकार ने 135 लाख टन चना उत्पादन का अनुमान जताया था, जिसे बाद में घटाकर 122 लाख टन कर दिया गया। इस साल भी 121.6 लाख टन के अनुमान के मुकाबले मार्केट का मानना है कि उत्पादन करीब 100 लाख टन के आसपास है। इसी का असर कीमतों पर पड़ा है।
फरवरी में सरकार ने कहा था कि वह किसानों के साथ दाल खरीदने का लान्ग टर्म कांट्रैक्ट करेगी और एमएसपी के अलावा बाजार कीमतों पर भी दालों की खरीद करेगी। लेकिन इस दावे के बीच सरकार नेफेड के जरिये इस साल केवल 45 हजार टन चना ही एमएसपी पर खरीद सकी। हालांकि ट्रेड ने चना की खरीदारी अधिक की है। इस समय मंडी स्तर पर चना का भाव करीब 6500 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि मार्केट में यह 7000 रुपये प्रति क्विंटल पर है।
चना की आपूर्ति बेहतर करने के लिए इस पर 60 फीसदी आयात शुल्क समाप्त कर दिया गया है। इस आयात शुल्क पर सरचार्ज भी लगता था जिसके चलते प्रभावी शुल्क 66 फीसदी था। भारत में महंगे आयात शुल्क के चलते आस्ट्रेलिया से अधिकांश निर्यात बांग्लादेश, पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को होता था। अब भारत ने आयात शुल्क समाप्त कर दिया है तो कुछ कारोबारियों ने ऑप्शन के सौदों को भारत में निर्यात करने का फैसला लिया है क्योंकि यहां बाजार बड़ा है।
उद्योग सूत्रों के मुताबिक आस्ट्रेलिया से अभी करीब एक लाख टन चना आयात हुआ है। वहां से भारत में चना की आयात कीमत 840-850 डॉलर प्रति टन (सीआईएफ) के आसपास है जो करीब 7200 रुपये प्रति क्विंटल बैठती है। आस्ट्रेलिया से जो आयात हो रहा है वह पिछले साल की फसल का है। चना की अगली फसल तंजानिया में अगस्त में आएगी। वहीं आस्ट्रेलिया की अगली फसल अक्तूबर में आएगी।
भारत से आयात की मांग निकलने का सीधा मतलब वैश्विक बाजार में कीमतों में इजाफा होना है। इसलिए 16.84 फीसदी को पार चुकी दालों की महंगाई को लेकर सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं और उपभोक्ताओं को इसकी अधिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। अधिकांश दालों की कीमतें पहले ही बढ़ रही हैं। साल 2027 तक दालों में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करने की नीति हकीकत से कितनी अलग है, उसका अंदाजा चना की स्थिति से आसानी से लगाया जा सकता है।