रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद गेहूं के दाम 3200 रुपये तक पहुंचे, आ सकती है आयात की नौबत

गेहूं की कीमतों में हुई बढ़ोतरी को मंडियों में गेहूं की घटी आवक से जोड़कर देखा जा रहा है। इस महीने अब तक देश की अनाज मंडियों में कुल 2.52 लाख टन गेहूं की आवक हुई जबकि पिछले साल इसी अवधि में 3.51 लाख टन गेहूं देश भर की अनाज मंडियों में आया था।

पिछले दो साल से देश में गेहूं के रिकॉर्ड 11.33 करोड़ टन उत्पादन के दावे के बावजूद गेहूं की कीमतें बढ़ती जा रही हैं और आटे भी महंगा हुआ है। बाजार में गेहूं की कीमतें 3200 रुपये प्रति क्विटंल तक पहुंच गई हैं। कीमतों के लगातार दबाव के चलते सरकार पर गेहूं की खुले बाजार में बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत बिक्री का दबाव बढ़ रहा है। वहीं केंद्रीय पूल में स्टॉक की स्थिति के चलते सरकारी हस्तक्षेप सीमित रहने के आसार हैं, इस स्थिति में गेहूं के आयात की स्थिति बन रही है। गेहूं और आटे की बढ़ती कीमतों को देखते हुए केंद्र सरकार को रियायती दरों पर भारत आटा की बिक्री शुरू करवानी पड़ी। लेकिन महंगाई के असर से भारत आटा भी नहीं बच पाया। सरकार को भारत आटे का दाम 27.50 रुपये किलो से बढ़ाकर 30 रुपये किलो करना पड़ा।

कृषि मंत्रालय के एगमार्केट पोर्टल के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की नजफगढ़ मंडी में गेहूं का भाव 3100 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है। उत्तर प्रदेश की अनाज मंडियों में गेहूं 2800 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास बिक रहा है। जबकि मध्य प्रदेश की मंडियों में गेहूं का भाव 3000 रुपये के आसपास चल रहा है। पिछले एक महीने में ही गेहूं के दाम लगभग 80 से 100 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ गये हैं। उपभोक्ता मामले विभाग की प्राइस मॉनिटरिंग के मुताबिक, 10 नवंबर को देश में गेहूं का औसत खुदरा भाव 31.98 रुपये किलो और आटे का औसत खुदरा भाव 37.1 रुपये किलो था। पिछले एक महीने में ही आटा करीब तीन फीसदी महंगा हो गया है। 

हाल के दिनों में गेहूं की कीमतों में हुई बढ़ोतरी को मंडियों में गेहूं की घटी आवक से जोड़कर देखा जा रहा है। इस महीने अब तक देश की अनाज मंडियों में कुल 2.52 लाख टन गेहूं की आवक हुई जबकि पिछले साल इसी अवधि में 3.51 लाख टन गेहूं देश भर की अनाज मंडियों में आया था। आवक में यह कमी गेहूं और आटे की कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह बन रही है। साथ ही इससे देश में गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन के आंकड़ों पर भी संदेह पैदा होता है।

इस साल रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 में देश में कुल 266 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी जो पिछले साल हुई 262 लाख टन की खरीद से तो अधिक है लेकिन 300-320 लाख टन खरीद के अनुमानों से काफी कम थी। जबकि 2021-22 में गेहूं की सरकारी खरीद 433 टन तक पहुंच गई थी। सर्वाधिक 124 लाख टन गेहूं की खरीद पंजाब से हुई थी जबकि मध्य प्रदेश से करीब 48 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी।

मध्य प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद में कमी के पीछे वजह यह मानी जा रही है कि किसानों ने ऊंचे भाव के कारण सरकारी खरीद के बजाय प्राइवेट ट्रेडर्स को उपज बेची। कुछ असर अधिक गर्मी और गेहूं उत्पादन पर पड़ी मौसम की मार का भी है। यही वजह है कि 2020-21 में 125 लाख टन गेहूं खरीद के साथ पंजाब को पीछे छोड़ने वाले मध्य प्रदेश में गेहूं की खरीद घटकर 48 लाख टन रह गई थी। जबकि मध्य प्रदेश सरकार गेहूं के एमएसपी 2275 रुपये प्रति क्विंटल पर 125 रुपये का बोनस भी दे रही थी।  

मंडियों में गेहूं की घटती आवक और महंगाई को देखते हुए सरकार पर भंडार से खुले बाजार में गेहूं उतारने का दबाव बढ़ रहा है। साथ ही इस साल गेहूं आयात की स्थिति भी आ सकती है।  हालांकि, सरकारी खरीद में बढ़ोतरी न होने के कारण खुले बाजार में गेहूं बिक्री (ओएमएसएस) के लिए भी सरकार के पास बहुत ज्यादा गुंजाइश नहीं है। लेकिन रबी की नई फसल आने में अभी पांच महीने हैं और अभी से गेहूं की कीमतें बढ़ना महंगाई के मोर्चे पर सरकार की चिंता जरूर बढ़ाएगा।