भारत दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश है। वायु प्रदूषण में मौजूद सूक्ष्म कणों (पीएम2.5) के कारण भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा कम हो गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 5 μg/m3 के दिशानिर्देश को पूरा करने से जो जीवन प्रत्याशा बनती, उससे यह 5.3 वर्ष कम है। भारत के कुछ क्षेत्रों की स्थिति औसत से भी अधिक खराब है। वायु प्रदूषण के कारण दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में जीवन प्रत्याशा 11.9 वर्ष कम हो गई है।
एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देश को पूरा करने के लिए वैश्विक पीएम2.5 वायु प्रदषूण को स्थायी रूप से कम करने पर औसत मानव जीवन प्रत्याशा में 2.3 वर्ष की वृद्धि होती, या संयुक्त रूप से जीवन के 17.8 अरब वर्ष बचाए जा सकते थे। वैश्विक जीवन प्रत्याशा पर पीएम2.5 का दुष्प्रभाव धूम्रपान से होने वाले नुकसान के बराबर है। साथ ही यह नुकसान शराब और असुरक्षित पानी के उपयोग से होने वाले नुकसान से 3 गुना से अधिक, सड़क दुर्घटनाओं से होने वाले नुकसान से 5 गुना से अधिक और एचआईवी/एड्स से 7 गुना से अधिक नुकसानदेह है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया के चार देश दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में शामिल हैं और यहां दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी रहती है। बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के एक्यूएलआई आंकड़ों से पता चलता है यदि प्रदषूण का यह स्तर बना रहा, तो यहां के निवासियों की जीवन प्रत्याशा में लगभग 5 वर्ष की कमी की आशंका है। 2013 के बाद से, दुनिया के प्रदूषण में लगभग 59 प्रतिशत वृद्धि अकेले भारत से हुई है।
रिपोर्ट में भारत से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य दिए गए हैं। इसमें कहा गया है कि भारत के सभी 1.3 अरब लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां सूक्ष्म कणों (पीएम2.5) से होने वाले वार्षिक औसत प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ दिशानिर्देशों से अधिक है। 67.4 प्रतिशत आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जहां प्रदूषण का स्तर देश के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक 40 μg/m3 से अधिक है।
जीवन प्रत्याशा के संदर्भ में देखा जाए तो कणीय प्रदूषण भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है, जिससे औसत भारतीय नागरिक की जीवन प्रत्याशा 5.3 वर्ष घट जाती है। इसके विपरीत, हृदय संबंधी बीमारियों से औसत भारतीय की जीवन प्रत्याशा लगभग 4.5 वर्ष कम हो जाती है। बाल और मातृ कुपोषण से जीवन प्रत्याशा 1.8 वर्ष घटती है।
समय के साथ कणीय प्रदूषण में वृद्धि हुई है। 1998 से 2021 तक औसत वार्षिक कणीय प्रदूषण में 67.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिससे औसत भारतीय नागरिक की जीवन प्रत्याशा 2.3 वर्ष कम हो गई। पूरी दुनिया में 2013 से 2021 तक जितना प्रदूषण बढ़ा है उसमें से भारत का 59.1 प्रतिशत योगदान है।
देश के सबसे प्रदूषित क्षेत्र भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों में 52.12 करोड़ लोग रहते हैं जो देश की आबादी का लगभग 38.9 प्रतिशत है। अगर प्रदूषण का वर्तमान स्तर बरकरार रहता है तो जीवन प्रत्याशा में डब्ल्यूएचओ दिशानिर्देश के सापेक्ष औसतन 8 साल और राष्ट्रीय मानक के सापेक्ष औसतन 4.5 साल कम होने का खतरा है।
यदि भारत डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देश के अनुरूप कणीय प्रदूषण कम कर लेता है, तो भारत की राजधानी और सबसे अधिक आबादी वाले शहर दिल्ली के निवासियों की जीवन प्रत्याशा 11.9 वर्ष बढ़ जाएगी। इसी तरह, देश के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले जिले उत्तर 24 परगना के निवासियों की जीवन प्रत्याशा में 5.6 वर्ष की वृद्धि होगी।
अब तक उठाई गये कदम
भारत ने 2019 में प्रदूषण के खिलाफ युद्ध की घोषणा की और नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीए/एनकैप) की शुरूआत कर कणीय प्रदूषण कम करने की अपनी इच्छा प्रदर्शित की। एनकैप का मूल लक्ष्य 2024 तक राष्ट्रीय स्तर पर कणीय प्रदूषण में 2017 के स्तर के मुकाबले 20-30 प्रतिशत तक की कमी लाना था। इसमें शुरुआत में 102 शहरों पर ध्यान केंद्रित किया गया था , जो भारत के राष्ट्रीय वार्षिक पीएम2.5 मानक को पूरा नहीं कर रहे थे। ऐसे शहरों को "नोन-अटेंमेंट सिटीज" (गैर-प्राप्ति शहर) कहा गया।
2022 में भारत सरकार ने एनकैप के लिए अपने कणीय प्रदूषण कटौती संबंधी नए लक्ष्य की घोषणा की। इसमें कोई राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया लेकिन शहर स्तर पर और बड़े लक्ष्य तय किए गए। नए लक्ष्य के मुताबिक 2025-26 तक, शहरों की विस्तारित संख्या (131) के साथ नोन-अटेंमेंट सिटीज़ में 2017 के स्तर के मुकाबले 40 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। यदि इस संशोधित लक्ष्य को प्राप्त कर लिया जाता है, तो इन शहरों का कुल वार्षिक औसत पीएम2.5 वर्ष 2017 के स्तर से 21.9 μg/m3 कम हो जाएगा। इससे इन चुने हुए 131 शहरों में रहने वाले औसत भारतीय की जीवन प्रत्याशा में 2.1 वर्ष और देश के स्तर पर हरेक औसत भारतीय के जीवन प्रत्याशा में 7.9 महीने की वृद्धि होगी।