भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के हिसार स्थित नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन एक्वाइन (एआरसीई) और इंडियन वेटरीनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईवीआरआई) इज्जतनगर, बरेली द्वारा संयुक्त रूप से विकसित लंपी स्किन रोग (एलएसडी) रोधी वैक्सीन लंपी-प्रोवैकइंड के कमर्शियल उत्पादन के लिए बॉयोवेट प्राइवेट लिमिटेड को नॉन-एक्सक्लूसिव अधिकार मिल गये हैं। इसके लिए अधिकृत सरकारी कंपनी एग्रीइन्नोवेट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने यह अधिकारी बॉयोवेट को दिये हैं। इस कदम के बाद इस बीमारी से पशुओं को सुरक्षा प्रदान करने वाले वैक्सीन के बाजार में आने की संभावना तेज हो गई है। लेकिन इसके लिए जरूरी मंजूरी प्रक्रिया को सरकार द्वारा तेज करने के बाद ही इसका कमर्शियल उत्पादन शुरू हो सकेगा।
देश के दर्जन भर राज्यों में लंपी स्किन रोग (एलएसडी) के लाखों गौवंश संक्रमित हो चुके हैं । वहीं करीब 75 हजार पशुओं की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। इस बीमारी का अभी इलाज का कोई प्रोटोकोल भी नहीं है। इसलिए स्थानीय स्तर पर चिकित्सक अपने अनुभव के आधार पर इसका इलाज कर रहे हैं। बीमारी से पशुओं के बचाव के लिए सरकार ने गोटपॉक्स वैक्सीन लगाने इजाजत दे रखी है और इसी का टीकाकरण किया जा रहा है। जो पशुओं को 60 से 70 फीसदी सुरक्षा देता है। वहीं आईसीएआर द्वारा दावा किया गया है कि उसके द्वारा विकसित लंपी-प्रोवैकइंड वैक्सीन शतप्रतिशत सुरक्षा देता है।
पिछले सप्ताह वैक्सीन की टेक्नोल़ॉजी ट्रांसफर के लिए आयोजित एक बैठक में यह अधिकार दिये गये। इस बारे में बात करने पर आईसीएआर के डिप्टी डायरेक्टर जनरल (एनीमल साइंड) डॉ. भूपेंद्र नाथ त्रिपाठी ने रूरल वॉयस को बताया कि बॉयोवेट को वैक्सीन बनाने का अधिकार दिया गया है लेकिन यह नॉन एक्सक्लूसिव है। इसके मायने है कि अगर कोई दूसरी कंपनी भी इस वैक्सीन की टेक्नोलॉजी को लेकर इसका उत्पादन करना चाहती है तो भी एग्रीइन्नोवेट के साथ करार कर इसका इस टेक्नोलॉजी को ले सकती है।
उन्होंने कहा कि इस तकनीक को हासिल करने के बाद अब बॉयोवेट प्राइवेट लिमिटेड वैक्सीन का उत्पादन तेजी से कर सकती है और यह वैक्सीन किसानों को जल्दी उपलब्ध कराने जाने में इससे मदद मिलेगी।
एग्रीइन्नोवेट द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को एग्रीइन्नोट इंडिया लिमेटेड के सीआईओ डॉ. सुधा मैसूर ने एक बड़ा कदम बताया है। वहीं बॉयोवेट प्राइवेट लिमिटेड के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. श्रीनिवासुलु किलारी ने कहा कि लंपी प्रोवैकइंड वैक्सीन के कमर्शियल उत्पादन का लाइसेंस मिलने और आईसीएआर द्वारा किये गये सहयोग से वह उत्साहित हैं। वहीं आईसीएआर के महानिदशक डॉ. हिमांशु पाठक ने भी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की सराहना करते हुए कहा कि यह वैक्सीन लंपी बीमारी को नियंत्रित करने में एक महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान करने के रूप में कामयाब होगा।
लंपी-प्रोवैकइंड वैक्सीन के विकसित करने की प्रक्रिया और उसकी खासियत को लेकर रूरल वॉयस ने तीन सितंबर को एक विस्तृत स्टोरी की थी जिसे यहां दिये लिंक पर क्लिक कर पढ़ा जा सकता है। https://www.ruralvoice.in/latest-news/commercial-production-of-indigenously-developed-lumpi-provacind-vaccine-may-start-in-four-to-five-months.html
देश में लंपी स्किन रोग 2019 में सबसे पहले उड़ीसा में आया था। दुनिया में यह बीमारी सबसे पहले 1929 में अफ्रीका में आई थी। लेकिन 2000 में यह खाड़ी के देशों, इजराइल, यूरोप के देशों, रूस, बाल्कन देशों, बाग्लादेश, नेपाल समेत अधिकांश देशों में आ गई थी। जहां तक भारत का सवाल है तो 2019 में उड़ीसा में यह बीमारी आई लेकिन जिस तरह से महामारी का रूप इसने पिछले दो माह में लिया है वह पहले नहीं दिखा। यह इंसेक्ट के जरिये पशुओं में फैलती है। बीमार पशु के रक्त को लेकर मच्छर या मक्खी दूसरे पशु पर बैठता है और उसे संक्रमित कर देता है।