बजट से उम्मीदें : कृषि कंपनियों को मिले जीएसटी से राहत और टैक्स प्रोत्साहन

केंद्र सरकार को एग्री-एनबीएफसी क्षेत्र को टैक्स लाभ देने पर विचार करना चाहिए। इससे न सिर्फ इस क्षेत्र को फलने-फूलने में मदद मिलेगी, बल्कि किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।

आम बजट को लेकर सभी क्षेत्र के लोगों के मन उत्सुकता रहती है कि इस बार उनके लिए क्या खास होगा। क्या उनकी मांगें मानी जाएंगी या फिर उनकी उम्मीदों पर बजट खरा उतरेगा। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को वित्त वर्ष 2023-24 का बजट पेश करेंगी। जैसे-जैसे बजट पेश होने की तारीख नजदीक आ रही है उम्मीदों की सूची लंबी होती जा रही है। कृषि क्षेत्र की ओर से यह मांग उठी है कि केंद्र सरकार को एग्री-एनबीएफसी क्षेत्र को टैक्स लाभ देने पर विचार करना चाहिए। इससे न सिर्फ इस क्षेत्र को फलने-फूलने में मदद मिलेगी, बल्कि किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।

जीएसटी से बाहर हो वेयरहाउस

सोहन लाल कमोडिटी मैनेजमेंट प्रा. लिमिटेड (एसएलसीएम ग्रुप) के ग्रुप सीईओ संदीप सभरवाल ने भंडारण स्थान को जीएसटी से बाहर करने की मांग उठाई है। उनका कहना है,  "हम भविष्य की खपत के लिए फसलों का भंडारण करते हैं। कृषि उत्पादों को लंबी अवधि के लिए सुरक्षित रखने और उसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए हम मध्यस्थ के रूप में काम कर रहे हैं। इस प्रकार हम किसानों और कृषि व्यापारियों को वित्तीय समावेशन प्रदान करते हैं। जब हम किराये के गोदाम से अपनी सेवाएं देते हैं तो किराये पर जीएसटी लगता है, जबकि हमारी आउटपुट सेवाएं कृषि सेवाओं के अधीन आती है जिन्हें जीएसटी से छूट दी गई है। इसका मतलब है कि किराये पर जीएसटी का इनपुट हमारे लिए लागत बन जाता है जिसका बोझ अंततः उपभोक्ताओं पर डाला जाता है। जीएसटी लागू होने के समय से ही यह सुझाव दिया जा रहा है कि वेयरहाउस के लीज रेंट को जीएसटी से छूट मिलनी चाहिए। कृषि आपूर्ति श्रृंखला में वैल्यू एडिशन के रूप में हमारी भूमिका को ध्यान में रखते हुए इस तरह की कोई भी छूट बहुत जरूरी राहत होगी।"

एग्री टेक्नोलॉजी के कैपेक्स पर मिले टैक्स छूट

सभरवाल का कहना है कि कृषि में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर होने वाले पूंजीगत/परिचालन खर्च (CapEx/OPEx) को भी टैक्स के दायरे से बाहर किया जाना चाहिए। एग्रीकल्चर वैल्यू-चेन और कृषि क्षेत्र के कारोबारियों के लिए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के जरिये कारोबार बढ़ाने में टैक्स प्रोत्साहन आवश्यक है। उन्होंने उम्मीद जताई कि आगामी बजट में आईओटी, एएल और एमएल, ब्लॉकचेन और इन जैसी नई टेक्नोलॉजी में निवेश को बढ़ावा देने के लिए टैक्स प्रोत्साहन मिलेंगे। सरकार जब निर्यात को बढ़ावा दे रही थी तो उसने घोषणा की थी कि कुछ वस्तुओं के निर्यात से होने वाली आमदनी इनकम टैक्स से मुक्त होगी। इसी तरह कृषि क्षेत्र की कंपनियां जो इनपुट/आउटपुट सेवाएं दे रही हैं, जो फसलों के भंडारण जीवन को बढ़ाती हैं, जो कृषि क्षेत्र के लिए वित्तीय समावेशन करती हैं, जो आपूर्ति श्रृंखला की नियमितता सुनिश्चित करती हैं, उन्हें टैक्स में छूट स्वागत योग्य कदम होंगे। इससे उनकी उत्पादकता बढ़ेगी और इस क्षेत्र की ओर नए खिलाड़ी भी आकर्षित होंगे।

एग्री एनबीएफसी को सब्सिडी वाली पूंजी देने की मांग

एसएलसीएम ग्रुप किसानधन एग्री फाइनेंस सर्विसेज प्रा. लिमिटेड के नाम से गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) भी चलाती है। सभरवाल कहते हैं, "कृषि क्षेत्र में कर्ज को बढ़ावा देने के लिए सरकार नाबार्ड को सब्सिडी पर पूंजी दे रही है। हमारे जैसे एनबीएफसी भी छोटे किसानों को कर्ज मुहैया कराते हैं। मध्यस्थ के रूप में हमारी महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए हमें भी नाबार्ड या सरकार से इसी तरह की सब्सिडी वाली पूंजी मिलनी चाहिए। उम्मीद है कि हमारी इस मांग का समर्थन उद्योग के बाकी लोग भी करेंगे।"

कृषि मशीनीकरण को बढ़ावा देने की जरूरत

क्लास (CLAAS) इंडिया प्रा. लिमिटेड के एमडी मृत्युंजय सिंह का कहना है, "कृषि क्षेत्र को मजबूती देने और ग्रोथ के अगले चरण को हासिल करने के लिए कृषि मशीनीकरण को बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि किसानों की आमदनी दोगुनी की जा सके। केंद्र सरकार की सब्सिडी योजनाओं, दिशा-निर्देशों और बजटीय सहायता की व्याख्या और कार्यान्वयन अलग-अलग राज्य सरकारों द्वारा अलग-अलग तरीके से किया जाता है। इसलिए कृषि मशीनरी योजनाओं के लिए सब्सिडी फंड को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समय पर रिलीज किया जाता है। कुछ राज्यों में सब्सिडी योजनाओं को पूरी तरह से लागू किया जाता है और कृषि मशीनरी सप्लायर्स को तय समय के भीतर भुगतान किया जाता है। मगर कई राज्यों में सब्सिडी की सभी योजनाओं को लागू नहीं किया जाता है। इससे उन राज्यों के किसानों को कृषि दक्षता में सुधार के लाभ और इससे होने वाली आमदनी से वंचित रहना पड़ता है। अनियमित कार्यान्वयन और भुगतान प्रभावित होने के चलते मशीन सप्लायर्स के पास इनके निवारण के लिए कानून का सहारा लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता है।"

फार्म इक्विपमेंट का घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर हो फोकस

उनका सुझाव है कि केंद्र सरकार कृषि मशीनीकरण की उन योजनाओं की एक सूची जारी करे जिसे राज्यों द्वारा लागू करना अनिवार्य होगा। केंद्र और राज्य दोनों के आरक्षित बजट के तहत इनमें उनका योगदान होना चाहिए। साथ ही स्टेट ट्रेजरी द्वारा क्लेम सत्यापित होने के 7 दिन के भीतर भुगतान किया जाना चाहिए। उनका सुझाव है कि मेक इन इंडिया के तहत कम्बाइन हार्वेस्टर के घरेलू निर्माण को बढ़ावा दिया जाए। उनके मुताबिक, "मेक इन इंडिया कार्यक्रम कृषि क्षेत्र में असमान गति देख रहा है क्योंकि भारत में वैश्विक गुणवत्ता मानकों के हिसाब से बनाए जा रहे कृषि उपकरणों के बावजूद सभी तरह के कृषि उपकरणों के आयात की खुली छूट है। इससे परस्पर विरोधी स्थिति बनी हुई है। कम्बाइन हार्वेस्टर किसानों के प्रमुख कृषि कार्य को अंजाम देता है। चीन, थाईलैंड जैसे देशों से सस्ते और खराब गुणवत्ता वाले हार्वेस्टर का आयात किया जा रहा है जिसकी न तो उचित वारंटी होती है और न ही इनका आयात करने वाले एजेंट या निर्माता कंपनियां स्पेयर पार्ट्स और सर्विसिंग की सेवा देती हैं। ये अपनी शुरुआती लागत से ऐसी मशीनें खरीदने का किसानों को लालच देते हैं। इस वजह से हजारों किसान दिवालियापन की ओर बढ़ रहे हैं और एनपीए बढ़ रहा है। पिछले चार साल में इसका आयात काफी तेजी से बढ़ा है जिससे मेक इन इंडिया पर असर पड़ रहा है।"

आयातित उपकरणों को न मिले सब्सिडी

सिंह का मानना है कि घरेलू स्तर पर निर्माण को बढ़ावा देने के लिए आगामी बजट में कम्बाइन हार्वेस्टर के आयात पर 75 फीसदी कस्टम ड्यूटी लगाई जानी चाहिए। साथ ही ऐसे आयातित कृषि मशीनरी को किसी भी राज्य द्वारा अनुमोदित सब्सिडी सूची में सूचीबद्ध करने से इनकार करना चाहिए ताकि आयातित उपकरणों पर सब्सिडी न मिले। दुनिया के कई देशों में ऐसा किया जाता है। इस तरह के परिवर्तन से देश के एसएमई क्षेत्र को घरेलू उत्पादन बढ़ाने में काफी हद तक मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि भारत को वर्ल्ड फैक्ट्री बनाने के लिए बजट में कृषि उपकरणों के निर्यात प्रोत्साहन को भी बढ़ाया जाना चाहिए।

कीटनाशकों पर घटे कस्टम ड्यूटी

धानुका एग्रीटेक के एमडी एमके धानुका कहते हैं, "हम उम्मीद करते हैं कि सरकार कीटनाशकों के आयात पर सीमा शुल्क कम करने पर विचार करेगी। इससे हमारे किसान उचित कीमत पर कीटनाशक खरीद सकेंगे।  इसके अलावा एग्रोकेमिकल्स पर जीएसटी को या तो 5% तक कम किया जाना चाहिए या पूरी तरह से समाप्त कर देना चाहिए ताकि कंपनियां इसका लाभ किसानों को दे सकें।"