कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने पिक्सल स्पेस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया है। इसका मकसद पिक्सल के हाइपरस्पेक्ट्रल डेटा सेट का उपयोग करके भारतीय कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नि:शुल्क आधार पर विभिन्न भू-स्थानिक समाधान विकसित करना है। यह परियोजना फसल मानचित्रण, फसलों के विभिन्न चरणों के मध्य अंतर करने, फसल स्वास्थ्य निगरानी और मिट्टी में कार्बनिक कार्बन के आकलन पर केंद्रित विश्लेषणात्मक मॉडल विकसित करने के लिए पिक्सल के खोजी उपग्रहों से प्राप्त हाइपर स्पेक्ट्रल डेटा के नमूनों का लाभ उठाने पर केंद्रित है।
कृषि मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में बताया गया है कि केंद्र सरकार की ओर से एमएनसीएफसी (महालानोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र) के निदेशक सीएस मूर्ति और पिक्सल स्पेस इंडिया की ओर से चीफ ऑफ स्टाफ अभिषेक कृष्णन ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए। पिक्सल द्वारा उपलब्ध कराए गए हाइपरस्पेक्ट्रल डेटा सरकार को उपयोग के तरीके विकसित करने में सक्षम करेंगे। एमएनसीएफसी उपयुक्त कार्यप्रणाली विकसित करने और लागू करने के लिए पिक्सल टीम के साथ सहयोग करेगा।
हाइपरस्पेक्ट्रल रिमोट सेंसिंग तकनीक में उपग्रहों द्वारा फसलों और मिट्टी के स्वास्थ्य की निगरानी की जाती है। यह कृषि की निगरानी के लिए एक उभरती हुई तकनीक है। हाइपरस्पेक्ट्रल डेटा का उपयोग करके क्लोरोफिल और फसलों की नमी की स्थिति में परिवर्तन का पता लगाकर, फसल स्वास्थ्य की निगरानी करना और किसानों के लिए फसल-जोखिम प्रबंधन का समाधान खोजने में फायदेमंद होगा।
मिट्टी के कार्बनिक मूल्यांकन सहित मृदा-पोषक तत्व, मानचित्रण हाइपरस्पेक्ट्रल प्रौद्योगिकी के महत्वपूर्ण प्रयोगों में से एक है। सेंसर द्वारा मापे गए मृदा परावर्तन अवलोकन, मिट्टी में कार्बनिक कार्बन का अनुमान लगाने के लिए अधिक प्रत्यक्ष और प्रभावी आंकड़े प्रदान करते हैं। इससे हाइपरस्पेक्ट्रल का उपयोग करके फसल तनाव का जल्दी पता लगाने, कीट/बिमारी या पानी के कारण फसल तनाव का सटीक निदान विकसित करने में भी मदद मिलेगी। हाइपरस्पेक्ट्रल डेटा लाखों किसानों को लाभान्वित करने की सरकार की वर्तमान सलाहकार प्रणाली को मजबूत करेगा।
कृषि सचिव मनोज आहूजा ने कहा कि युवा स्टार्टअप कंपनी के साथ इस प्रकार के तालमेल से उन्नत उपग्रह इमेजिंग तकनीक का उपयोग करके नवीन भू-स्थानिक समाधान विकसित करने में काफी मदद मिलेगी। नई तकनीक, देरी और गलतियों की संभावना वाली परंपरागत सर्वेक्षण और मापों पर निर्भरता को कम करेगी।