एप्पल फार्मर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एएफएफआई) का कहना है कि देश में सेब के लिए उपभोक्ता औसतन 80 रूपये किलो खर्च करता है जबकि किसान को औसतन 24 रूपये प्रति किलो ही मिलते हैं। सालाना लगभग 18 लाख टन सेब की बिक्री होती है जिसका बाजार मूल्य करीब 14,400 करोड़ रुपये होता है लेकिन किसानों को लगभग 4,300 करोड़ रुपये ही मिलते हैं। तेजी से बढ़ती उत्पादन लागत और परिवहन लागत में बेतहाशा बढोतरी के सेब की खेती घाटे की खेती हो गई है। सेब के लिए सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू करना चाहिए ,उसकी कानूनी गारंटी ही किसानों को संकट से निकाल सकती है। फेडरेशन ने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भेजे एक मेमोरेंडम में यह बातें कही हैं। साथ ही सेब किसानों को संकट से निकलाने के लिए एक विस्तृत मांग पत्र दिया है जिसमें सरकार से एमएसपी तय करने, उत्पादकता, सहकारी समितियां गठित करने, सस्ता कर्ज देने और कर्ज माफी समेत कई कदम उठाने के लिए कहा गया है।
फेडरेशन की आर्गनाइजिंग कमेटी (ओसी) अपनी ग्यारह मागों में तमाम मुद्दों को चिन्हित किया है। इसमें कहा गया है कि कृषि श्रमिकों को सम्मान के साथ जीने के लिए पर्याप्त भुगतान नहीं मिलता है वहीं काम की साल भर काम गांरटी होने के कारण कृषि श्रमिकों में असुरक्षा की भावना रहती है। इसलिए कृषि श्रमिकों को बेहतर नौकरियों और आय की तलाश में अन्य क्षेत्रों में पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है । वहीं लघु और मध्यम किसान और खेतिहर मजदूर परिवारों को अधिक कर्ज के कारण काफी संकट और कंगाली का सामना करना पड़ता है। एएफएफआई का कहना है कि ऐसी स्थिति में भी केन्द्र सरकार को सेब किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी देनी चाहिए और एमएसपी का निर्धारण सी2+50 फीसदी मुनाफे के फार्मूले के जरिये होना चाहिए।
फेडरेशन ने अपने इस ज्ञापन में कहा है कि सेब की दुनिया में जो उत्पादकता है अगर उन मानकों को प्राप्त किया जाय तो किसान परिवारों की आय पांच गुना हो सकती है। कई देशों में सेब की औसत उत्पादकता 60 टन प्रति हेक्टेयर है जबकि भारत में यह केवल मात्र 10 टन प्रति हेक्टेयर है। सेब की खेती कर रहे किसानों के लिए सेब की खरीद, परिवहन और भंडारण के लिए कोई प्रभावी सरकारी तंत्र नहीं है। ज्ञापन में सुझाव दिया है कि सरकार द्वारा दुनिया के दूसरे देशों की तर्ज पर खरीद, परिवहन और भंडारण सुविधाओं के लिए प्रभावी अनुसंधान और विकास परियोजनाएं आज की समय की तत्काल जरूरत हैं।
एएफएफआई का कहना है कि सेब का मूल्यवर्धन हो और उसमें से लाभ को किसानों को बांटने का प्रावधान ही किसानों के लिए बेहतर आय सुनिश्चित कर सकता हैं। इसके लिए सहकारिता के प्रभावी विकल्प विकसित करने होंगे। केंद्र सरकार को अनुसंधान और विकास संस्थानों और वित्त संस्थानों को सेब की खेती के साथ-साथ खरीद, मूल्यवर्धन के लिए प्रसंस्करण, स्टॉक और वितरण और विपणन क्षेत्रों में सहकारी उत्पादन संबंध बनाने के लिए किसानों का सहयोग करना चाहिए। इसमें गुजरात में डेयरी सहकारी अमूल और केरल में ब्रह्मगिरी डेवलपमेंट सोसाइटी जैसी उत्पादक सहकारी समितियों के सफल मॉडल को आधार बनाने का सुझाव दिया है।