गन्ना किसानों के लिए राज्य सरकारें, चीनी मिलों का मालिकाना हक और किसानों के लिए जमीन पर लड़ने वाले किसान नेताओं का फर्क देखना है तो हमें चालू पेराई सीजन 2020-21 के गन्ना मूल्य भुगतान के लिए उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बीच तुलना करनी होगी। रुरल वॉयस ने 15 मई की दोपहर को उत्तर प्रदेश के गन्ना मूल्य बकाया पर उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर आकलन कर स्टोरी की थी। जो गन्ना मूल्य की इस सीरिज की पहली स्टोरी थी। अब रुरल वॉयस के पास उत्तर प्रदेश सरकार के ताजा आंकड़े उपलब्ध हैं और साथ ही महाराष्ट्र की चीनी मिलों द्वारा 30 अप्रैल, 2021 तक गन्ना किसानों को किये गये भुगतान के आंकड़े हैं। उसके आधार पर बकाया की स्थिति पर सीरिज की यह दूसरी स्टोरी है। सरकारी दस्तावेजों में उपलब्ध इन आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 12 मई, 2021 तक चीनी मिलों ने किसानों को कुल गन्ना मूल्य भुगतान का 62.29 फीसदी भुगतान किया था जबकि महाराष्ट्र की चीनी मिलों किसानों के गन्ना मूल्य का 92.4 फीसदी भुगतान 30 अप्रैल तक कर दिया था। यही नहीं महाराष्ट्र की कुल भुगतान की राशि भी उत्तर प्रदेश से एक हजार करोड़ रुपये अधिक है। महाराष्ट्र में गन्ना किसानों को 30 अप्रैल तक 20,617.05 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया जबकि उत्तर प्रदेश में 12 मई तक 19,615.05 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया।
चालू पेराई सीजन के लिए महाराष्ट्र में 30 अप्रैल तक फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) के आधार पर 22,293.34 करोड़ रुपये का भुगतान बनता था। उसमें से उक्त तिथि तक 20,617.05 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया था जो कुल भुगतान का 92.4 फीसदी है। वहीं केवल 1693.61 करोड़ रुपये का बकाया था जो कुल भुगतान का केवल 7.6 फीसदी हिस्सा है।
वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार के रुरल वॉयस के पास उपलब्ध ताजा दस्तावेजों के मुताबिक 12 मई तक राज्य की चीनी मिलों पर गन्ना मूल्य का भुगतान 32,348.66 करोड़ रुपये बनता था। 14 दिन के बाद के बकाया की गणना में यह राशि 31,487.75 करोड़ रुपये थी। चीनी मिलों ने किसानों को उक्त तिथि तक 19,615.05 करोड़ रुपये का भुगतान किया। इसके चलते बकाया की राशि 11,872.70 करोड़ रुपये बनती है। राज्य सरकार के मुताबिक 12 मई तक कुल गन्ना मूल्य का 62.29 फीसदी भुगतान किया गया और 37.71 फीसदी भुगतान बकाया है।
यहां दो बातें अहम हैं कि महाराष्ट्र का कुल भुगतान 30 अप्रैल को ही उत्तर प्रदेश से ज्यादा है। वहीं बकाया का स्तर वहां 7.6 फीसदी है। देश में चीनी का मार्केट एक ही तरह से काम करता है। बल्कि महाराष्ट्र के मुकाबले उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को औसतन 500 रुपये प्रति टन की अधिक कीमत मिलती है। दूसरे इस साल निर्यात से भी दोनों राज्यों की चीनी मिलों को कमाई हो रही है। वहीं पिछले साल महाराष्ट्र का उत्पादन इस साल का लगभग आधा था यानी वहां की मिलों का रेवेन्यू कम था। जबकि उत्तर प्रदेश का उत्पादन चालू साल से भी अधिक था।
महाराष्ट्र में गन्ना किसानों को एफआरपी के आधार पर दाम मिलता है और उपर दिये गये आंकड़े एफआरपी पर आधारित हैं। राज्य की चीनी मिलों ने चालू पेराई सीजन में 30 अप्रैल, 2021 तक 997.17 लाख टन गन्ने की खरीद की थी। वहीं पिछले साल इसी अवधि में 545.83 लाख टन गन्ने की खरीद की थी क्योंकि पिछले साल वहां गन्ने के उत्पादन में भारी गिरावट आई थी। राज्य की चीनी मिलों ने 30 अप्रैल तक जो भुगतान किया है उसके आधार पर एफआरपी का औसत 223.58 रुपये प्रति क्विटंल आता है। लेकिन यह कीमत गन्ने की कटाई और ढुलाई से अलग है जो 60 रुपये प्रति क्विटंल बैठती है। इस आधार पर राज्य के गन्ना किसानों को 283.58 रुपये प्रति क्विटंल की कीमत बनती है। वहीं उत्तर प्रदेश में गन्ने का भुगतान राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) के आधार पर होता है। जो गन्ने की किस्म के आधार पर 310 रुपये, 315 रुपये और 325 रुपये प्रति क्विटंल है। इसका औसत करीब 320 रुपये प्रति क्विंटल आता है। लेकिन इस कीमत में गन्ने का कटाई और ढुलाई शामिल है। अगर इसे महाराष्ट्र के आधार पर ही कम किया जाए तो किसान को इस खर्च के बाद उसके पास बचने वाली राशि करीब 260 रुपये प्रति क्विंटल की बैठती है। उत्तर प्रदेश में गन्ने की कटाई की मजदूरी 40 से 45 रुपये प्रति क्विटंल है।
दूसरी ओर महाराष्ट्र में गन्ने में चीनी की रिकवरी का स्तर उत्तर प्रदेश के मुकाबले अधिक है। ऐसे में वहां की कई चीनी मिलों के किसानों के लिए एफआरपी 300 रुपये प्रति क्विटंल को पार कर जाता है।
महाराष्ट्र के किसान नेता और स्वाभिमानी शेतकारी संघटना के अध्यक्ष राजू शेट्टी ने रुरल वॉयस को बताया कि राज्य के गन्ना किसानों को तेजी से भुगतान के पीछे हमारा लगातार बनाया गया दबाव और राज्य सरकार की प्राथमिकता है। हमने लगातार भुगतान में देरी करने वाली चीनी मिलों के खिलाफ रिकवरी सर्टिफिकेट जारी कराये और जिलाधिकारी के साथ मिलकर चीनी की नीलामी भी कराई। यह दबाव लगातार बनाये रखने का किसानों को फायदा हुआ और उनको भुगतान हो गया। राजू शेट्टी कहते हैं कि 30 अप्रैल की बाद भी भुगतान हुआ है और अधिकांश भुगतान हो गया है। केवल उन चीनी मिलों पर बकाया है जो वित्तीय रूप से बुरी स्थिति में हैं। वहीं कई चीनी मिलों ने 270 से 300 रुपये प्रति क्विंटल का एफआरपी भुगतान कर दिया है। इसके साथ ही साल के अंत में सहकारी चीनी मिलें किसानों को बोनस भी देती हैं जिसके चलते किसान को मिलने वाली अंतिम कीमत बढ़ जाती है। निजी चीनी मिलों और किसानों के मालिकाना हक वाली सहकारी चीनी मिलों का यह अंतर साफ है। यह उत्तर प्रदेश सरकार की नाकामी है कि किसानों को समय पर भुगतान नहीं मिल रहा है। चीनी के बाजार की स्थिति पूरे देश की चीनी मिलों के लिए समान है और सभी के लिए वही कीमतें हैं जो बाजार में चल रही हैं।
दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार के मालिकाना वाली राज्य चीनी निगम की चीनी मिलों ने भी 12 मई तक केवल 45.92 फीसदी ही भुगतान किया है जबकि राज्य सरकार के प्रबंधन में ही चलने वाली सहकारी चीनी मिलों का भुगतान भी 37.71 फीसदी है। निजी चीनी मिलों का भुगतान 64.75 फीसदी है। राज्य सरकार के खुद के यह आंकड़े साफ करते हैं कि जब सरकार खुद ही किसानों का भुगतान समय से नहीं कर रही है तो वह निजी क्षेत्र को भुगतान में तेजी के लिए कैसे नसीहत देगी।