लगातार दो सामान्य मानसून के चलते कोरोना महामारी के बावजूद पिछले वित्त वर्ष (2020-21) में रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन के साथ कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर तीन फीसदी से अधिक रही जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.7 फीसदी तक की अभी तक की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। लेकिन चालू मानसून सीजन में देश के बड़े हिस्से में बारिश का सामान्य से 20 फीसदी से 59 फीसदी तक कम रहना किसानों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। इस स्थिति के चलते चालू खरीफ सीजन में कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका पैदा हो गई है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा 16 जुलाई को जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक खरीफ फसलों का क्षेत्रफल पिछले साल के मुकाबले 80 लाख हेक्टेयर कम चल रहा है। क्षेत्रफल के मामले में चावल, दालें, तिलहन और मोटे अनाज के साथ की कपास की फसल भी पिछले साल के मुकाबले पिछड़ रही है। देश के पश्चिम, मध्य और उत्तर पश्चिम हिस्से में जहां किसानों को फसल की बुआई के लिए बारिश का इंतजार है, वहीं जहां किसानों ने फसलें बो दी हैं उनको बचाने के लिए उन्हें डीजल के दामों में रिकार्ड बढ़ोतरी के चलते भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। साथ ही कई जगह बिजली की किल्लत से जूझना पड़ रहा है। ऐसे में पहले से ही महंगाई की ऊंची दर से जूझ रही सरकार के लिए दालों और खाद्य तेलों के मोर्चे पर स्थिति मुश्किल भरी रहने की आशंका पैदा हो गई है।
कृषि मंत्रालय द्वारा जारी फसल बुआई क्षेत्रफल के आंकड़ों के मुताबिक चालू खरीफ सीजन में फसलों का क्षेत्रफल अभी तक 611.89 लाख हेक्टेयर तक पहुंचा है जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 691.33 लाख हेक्टेयर था जो चालू साल के मुकाबले 80.04 लाख हेक्टेयर अधिक था।
रूरल वॉयस के साथ इस मुद्दे पर बात करते हुए देश के प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि मध्य जून से मध्य जुलाई का एक महीना खरीफ फसलों के लिए सबसे अहम होता है। लेकिन चालू मानसून सीजन में इस अवधि में देश के बड़े हिस्से में कम बारिश के चलते काफी बड़े क्षेत्र में किसानों ने फसलों की बुआई भी नहीं की है। जिसमें देरी का मतलब है उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ना।
इस खबर के साथ आईएमडी द्वारा 1 जून से 17 जुलाई तक बारिश का मैप लगाया गया है जो बताता है कि देश अधिकांश सब-डिविजन ऐसी हैं जहां बारिश में सामान्य से 10 फीसदी तक कमी से लेकर 60 फीसदी तक कम रही है। बारिश में कमी वाले हिस्सों में गुजरात, पश्चिमी और पूर्वी मध्य मध्य प्रदेश, बुंदेलखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान का बड़ा हिस्सा, जम्मू एवं कश्मीर, उड़ीसा और पूर्वोत्तर के राज्य शामिल हैं। जबकि अपेक्षाकृत सूखे की मार झेलने वाले कर्नाटक और महाराष्ट्र के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक बारिश हो रही है। बारिश के इस ट्रेंड को फसलों के क्षेत्रफल की स्थिति से सीधे जोड़ा जा सकता है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले चावल का क्षेत्रफल 12.47 लाख हेक्टेयर कम चल रहा है। इस समय तक चावल का क्षेत्रफल 161.97 लाख हेक्टेयर पर पहंचा है जबकि पिछले साल इस समय तक 174.74 लाख हेक्टेयर रहा था। सबसे अधिक असर मोटे अनाजों पर पड़ा है क्योंकि इनकी अधिकांश खेती गैर सिंचित क्षेत्रों में होती है, जिसमें राजस्थान का बड़ा हिस्सा शामिल है। मोटे अनाजों का कुल क्षेत्रफल 91.34 लाख हेक्टेयर तक ही पहुंचा है जो पिछले साल के इसी समय के 115.07 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 23.73 लाख हेक्टेयर कम है। इसमें बाजरे का क्षेत्रफल पिछले साल के मुकाबले 14.59 लाख हेक्टेयर कम है। जबकि मक्का का क्षेत्रफल पिछले साल से 4.8 लाख हेक्टेयर कम चल रहा है।
दालों के मामले में महंगाई के जूझ रही सरकार ने कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए पिछले दिनों इनके स्टॉक पर सीमा तय कर दी थी और उसके लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम का उपयोग किया गया। चालू खरीफ सीजन में दालों का उत्पादन घटने की आशंका बन गई है इनका उत्पादन क्षेत्रफल 9.71 लाख हेक्टेयर घट गया है। जो पिछले साल के 80.36 लाख हेक्टेयर के मुकाबले अभी तक 70.64 लाख हेक्टेयर पर ही पहुंचा है। दालों में अधिक गिरावट उड़द और मूंग दाल के क्षेत्रफल में आई है।
वहीं खाद्य तेलों की तेजी से बढ़ी कीमतों से परेशान सरकार के लिए खरीफ सीजन राहत की बजाय मुश्किलें खड़ी कर सकता है। तिलहन उत्पादन क्षेत्रफल पिछले साल के मुकाबले 20.44 लाख हेक्टेयर कम चल रहा है। पिछले साल इस समय तक तिलहन क्षेत्रफल 149.35 लाख हेक्टेयर रहा था जो चालू साल में अभी 128.91 लाख हेक्टेयर पर ही पहुंचा है। इनमें मूंगफली का क्षेत्रफल 6.94 लाख हेक्टेयर और सोयाबीन का क्षेत्रफल 12.62 लाख हेक्टेयर कम चल रहा है।
खरीफ सीजन की मुख्य नकदी फसल कपास का क्षेत्रफल पिछले साल के 14.62 लाख हेक्टेयर कम चल रहा है। पिछले साल के अभी तक के 113.01 लाख हेक्टेयर के मुकाबले अभी तक कपास का क्षेत्रफल 98.38 लाख हेक्टेयर पर ही पहुंचा है। गन्ने का क्षेत्रफल जरूर मामूली रूप से अधिक है। यह पिछले साल के 52.82 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 53.70 लाख हेक्टेयर पर पहुंचा है। महाराष्ट्र के गन्ना क्षेत्र में बेहतर बारिश और सिंचाई सुविधाओं के चलते वहां क्षेत्रफल बढ़ने से यह स्थिति बनी है।
जाहिर सी बात है कि मानसून की बारिश में देरी और कमी के चलते खरीफ का उत्पादन प्रभावित होने की स्थिति बन गई है क्योंकि बुआई पिछड़ गई है। मानसून के पूर्वानुमान में भारत मौसम विज्ञान विभाग ने दक्षिम पश्चिम मानसून के सामान्य रहने की संभावना जताई थी। मानसून लगभग समय पर आ भी गया था। लेकिन 19 जून से इसकी नार्दन लाइन अटक गई और इसकी गतिविधि कमजोर पड़ गई। मानसून के कमजोर होने की एक बड़ी वजह हिंद महासागर डायपोल (आईओडी) के निगेटिव होने को बताया जा रहा है। मानसून के पूर्वानुमान के समय आईएमडी ने आईओडी को न्यूट्रल बताया था लेकिन उसी समय आस्ट्रेलियन ब्यूरो ऑफ मेटिरियलॉजी ने इसके निगेटिव होने की बात कही थी। इस संबंध में रूरल वॉयस ने दो जुलाई को एक विस्तृत खबर की थी जिसका लिंक यहां दिया गया है। https://www.ruralvoice.in/Halted-Monsoon-is-becoming-costly-for-farmers-negative-IOD-could-be-the-reason
वहीं दूसरी ओर इस देरी पर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) अभी भी तसवीर साफ नहीं कर रहा है। आईएमडी ने प्रेस इंफोर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) के जरिये 12 जुलाई को एक प्रेस रिलीज जारी की। लेकिन यह रिलीज एक लंबी सफाई की तरह ही है। वहीं दिलचस्प बात यह रही है कि यह सफाई दिल्ली में मानसून की देरी पर अधिक केंद्रित थी। हालांकि मानसून की स्थिति में सुधार की बात कही जा रही है और कुछ हिस्सों में पिछले कुछ दिनों में बारिश हुई भी है। लेकिन अभी तक बारिश में जो कमी हुई है उसका खरीफ फसलों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका बन गई है।
पिछले दो सामान्य मानसून के चलते बेहतर कृषि उत्पादन का किसानों को फायदा मिला था लेकिन बारिश की कमी के चलते चालू खरीफ सीजन उनके लिए बहुत बेहतर संभावना लेकर नहीं आया है। जिन क्षेत्रों में सिंचाई की व्यवस्था है वहां किसानों को महंगे डीजल और बिजली की किल्लत से जूझना पड़ रहा है। जो फसलों की उत्पादन लागत में बढ़ोतरी का बड़ा कारण बन रहा है ।