अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरक कीमतों में भारी बढ़ोतरी का दौर चल रहा है। चीन द्वारा यूरिया और डीएपी के निर्यात पर प्रतिबंध के फैसले के साथ ही बेलारूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाये गये आर्थिक प्रतिबंध इसकी बड़ी वजह बन रहे हैं। हालांकि चालू खरीफ सीजन में उर्वरकों की उपलब्धता का कोई कोई संकट नहीं है लेकिन तेजी से बढ़ती कीमतों के बीच उर्वरक कंपनियां आयात को टाल रही हैं, इस स्थिति में अगर सरकार समय रहते उर्वरक सब्सिडी में बढ़ोतरी का फैसला नहीं लेती है तो रबी सीजन में उर्वरकों की उपलब्धता का संकट पैदा हो सकता है। इस साल रबी सीजन के करीब उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड समेत पांच राज्यों की विधान सभा के चुनाव होंगे। अगर उस दौरान उर्वरकों की कोई किल्लत होती है तो सत्ताधारी एनडीए को किसानों की नाराजगी महंगी पड़ सकती है। कुछ इसी तरह स्थिति करीब 13 साल पहले और 2009 के लोक सभा चुनाव के ऐन पहले 2008 में भी पैदा हुई थी। उस समय भी उर्वरकों की कीमतों में वैश्विक बाजार में भारी बढ़ोतरी हुई थी। उस समय घरेलू बाजार में कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए सरकार को उर्वरक सब्सिडी में भारी बढ़ोतरी करनी पड़ी थी क्योंकि सरकार चुनावों में किसानों की नाराजगी से बचना चाहती थी क्योंकि 2009 के लोक सभा चुनाव सर पर थे।
उद्योग सूत्रों के मुताबिक अप्रैल से जुलाई, 2021 के दौरान उर्वरकों के आयात में इसके पहले साल की इसी अवधि के मुकाबले गिरावट दर्ज की गई है। इस दौरान यूरिया का आयात 23.43 लाख टन के मुकाबले घटकर 22.05 लाख टन रह गया है। वहीं डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) का आयात 24.06 लाख टन से घटकर 22.03 लाख टन रहा है। म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) 16.06 लाख टन से घटकर 10.33 लाख टन रह गया है। जबकि कॉम्प्लेक्स उर्वरकों का आयात अप्रैल से जुलाई, 2021 के दौरान 5.45 लाख टन रहा है जबकि इसके पहले साल इसी अवधि में इनका आयात 6.43 लाख टन रहा था।
आयात के अलावा घरेलू उत्पादन में भी पिछले साल के मुकाबले कमी दर्ज की गई है। अप्रैल से जुलाई, 2021 के दौरान यूरिया का उत्पादन 78.82 लाख टन रहा है जबकि इसके पहले साल इसी अवधि में यूरिया उत्पादन 82.18 लाख टन रहा था। डीएपी का उत्पादन इस अवधि में इस साल 11.11 लाख टन रहा है जबकि पिछले साल समान अवधि में यह 12.66 लाख टन रहा था। हालांकि कॉम्प्लेक्स उर्वरकों का उत्पादन बढ़ा है जो इस साल 30.91 लाख टन रहा है जबकि पिछले साल इन उर्वरकों का उत्पादन 27.89 लाख टन रहा था। इसी तरह सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) का उत्पादन भी पिछले साल के 17.01 लाख टन से बढ़कर इस साल अप्रैल से जुलाई की अवधि में 17.06 लाख टन रहा है।
उद्योग सूत्रों का कहना है कि खरीफ सीजन में उर्वरकों की उपलब्धता में कोई कमी नहीं है लेकिन अक्तूबर के बाद यह समस्या पैदा हो सकती है। इसकी वजह बढ़ती हुई अंतरराष्ट्रीय कीमतें हैं। पिछले साल इस समय देश के लिए यूरिया के आयात सौदे 290 डॉलर प्रति टन की कीमत (कॉस्ट और भाड़ा मिलाकर) हो रहे थे। लेकिन अभी यह कीमत बढ़कर 510 से 515 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है। डीएपी की आयातित कीमत पिछले साल के 330 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 630 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। वहीं फॉस्फोरस एसिड की कीमत 625 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 998 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। अमोनिया की कीमत 205 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 670 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। सल्फर की कीमत 75 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 210 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। मोरक्को की सरकारी कंपनी ओसीपी ने जुलाई-सितंबर के लिए फॉस्फोरिक एसिड की कीमत बढ़ाकर 1160 डॉलर प्रति टन (सीएफआर) कर दी है। घरेलू डीएपी उत्पादकों का कहना है कि इस कीमत पर आयात आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है। एमओपी के मामले में भी स्थिति इसी तरह की मुश्किल भरी है। साल भर पहले एमओपी का आयात 230 डॉलर प्रति टन पर हो रहा था जबकि भारतीय आयातकों ने दिसंबर, 2021 की सप्लाई के लिए वैश्विक उत्पादकों के साथ 280 डॉलर प्रति टन की कीमत पर सौदे किये हैं। लेकिन अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा बेलारूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाने के चलते कीमतें 280 डॉलर प्रति टन की कीमत 400 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई हैं। पूर्वी यूरोपीय देश बेलारूस कनाडा के बाद भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा एमओपी सप्लायर है। नये सौदों की कीमतों के 400 डॉलर तक पहुंचने के साथ ही पहले हुए 280 डॉलर की कीमत के सौदों को भी दोबारा समझौते का दबाव बन रहा है।
वहीं बेलारूस के अलावा चीन ने भी उर्वरक निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है जिसके चलते वैश्विक बाजार में निर्यात की स्थिति में अनिश्चितता पैदा हो रही है। चीन भारत को यूरिया और डीएपी निर्यात करने वाला दूसरा बड़ा देश है। चीन के नेशनल डेवलपमेंट एंड रिफार्म कमीशन ने घरेलू आपूर्ति बेहतर बनाये रखने के लिए पिछले सप्ताह निर्यात पर प्रतिबंध का फैसला लिया है। भारत चीन से करीब 30 लाख टन यूरिया और 15 से 20 लाख टन डीएपी का आयात करता है।
उर्वरक उद्योग सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार को उर्वरकों की सब्सिडी में बढ़ोतरी को लेकर जल्द ही फैसला लेना पड़ सकता है क्योंकि इसमें देरी का असर आयात पर पड़ेगा और उसके चलते रबी सीजन में इन उर्वरकों की किल्लत पैदा हो सकती है। इसके लिए सरकार को सितंबर के पहले ही फैसला लेना होगा।
सरकार ने अप्रैल से उर्वरक कंपनियों द्वारा डीएपी की कीमतों में 50 फीसदी से अधिक तक की बढ़ोतरी के फैसले के चलते डीएपी पर सब्सिडी में भारी बढ़ोतरी की थी। यह फैसला 20 मई, 2021 को लिया गया था। जिसके तहत फॉस्फोरस पर सब्सिडी को 14.888 रुपये किलो से बढ़ाकर 45.322 रुपये प्रति किलो किया गया था। इस कदम के चलते डीएपी और कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की कीमतों को पुराने स्तर पर बरकार रखने में मदद मिली थी। हालांकि इस सब्सिडी बढ़ोतरी को अक्तूबर, 2021 तक की अवधि के लिए बढ़ाने की ही अधिसूचना जारी की गई थी। लेकिन मौजूदा परिस्थिति में जहां सरकार को डीएपी पर सब्सिडी में और अधिक बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है वहीं दूसरे उर्वरक न्यूट्रिएंट पर भी सब्सिडी में बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों और उनके कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते यूपीए सरकार को भी उर्वरक सब्सिडी में भारी बढ़ोतरी करनी पड़ी थी क्योंकि राजनीतिक रूप से संवेदनशील उर्वरक कीमतों में बढ़ोतरी का विकल्प अपनाना आसान नहीं था। उस दौरान 2007-08 की 32,490 करोड़ रुपये की सब्सिडी को 2008-09 में 76,603 करोड़ रुपये करना पड़ा था साथ ही उर्वरक सब्सिडी के बदले में 20 हजार करोड़ रुपये के बांड उर्वरक कंपनियों को जारी किये गये थे। अगस्त से अक्तूबर, 2008 के दौरान यूरिया की कीमत 865 डॉलर प्रति टन, डीएपी की कीमत 1230 डॉलर प्रति टन और एमओपी की कीमत 1060 डॉलर प्रति टन तक की रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी।
हालांकि ताजा आंकड़ों के मुताबिक चालू साल में उर्वरकों की बिक्री पिछले साल के मुकाबले कम चल रही है। इसकी एक वजह मानसून में देरी हो सकती है। हालांकि वित्त वर्ष के शुरू में डीएपी की कीमत को लेकर पैदा अनिश्चितता के चलते भी बिक्री में गिरावट की बात उद्योग सूत्रों ने उस समय की थी। लेकिन जहां तक उपलब्धता की बात है तो चालू खरीफ सीजन में उसका कोई संकट नहीं है। ऐसे में सब्सिडी के मोर्चे पर सरकार को समय रहते फैसला लेना होगा ताकि उर्वरकों की उपलब्धता बेहतर बनी रहे।