करीब दस साल बाद थोक महंगाई दर (डब्ल्यूपीआई) लगातार दो माह के लिए दो अंकों में पहुंची है। वह भी ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था दशकों के सबसे कमजोर दौर में है। सोमवार 14 मई को सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक मई माह में थोक महंगाई दर 12.94 फीसदी रही जो इसके पहले माह अप्रैल में 10.5 फीसदी रही थी। दूसरी और खुदरा महंगाई दर (सीपीआई) भी मई माह में 6.4 फीसदी पर पहुंच गई है जो भारतीय रिजर्व बैंक (आईबीआई) द्वारा मौद्रिक नीति के लिए तय उपरी सीमा से अधिक है। इस अप्रत्याशित परिस्थिति ने कई तरह की चिंताएं पैदा कर दी हैं। पहली तो यही कि आम आदमी के लिए बढ़ती कीमतों ने आर्थिक मोर्चे पर मुश्किलें पैदा कर दी हैं, वहीं अर्थव्यवस्था में यह मांग में कमी का बड़ा कारण बनती दिख रही है। जिसका खामियाजा आने वाले दिनों में कृषि क्षेत्र के उत्पादों की मांग में कमी आने से किसानों को भुगतना पड़ सकता है। दूध किसानों के लिए यह संकट पैदा होना शुरू हो गया है और देश के कई क्षेत्रों में किसानों को दूध की कीमत वही मिल रही हैं जो कोविड की पहली लहर के समय लागू किये गये लॉकडाउन के दौरान मिल रही थी। साथ ही चीनी और खाद्यान्न की कीमतों के आंकड़े इसका संकेत दे रहे हैं। रिजर्व बैंक ने सीपीआई को चार फीसदी (दो फीसदी कम या ज्यादा) पर रखने का लक्ष्य रखा है और उसके लिए सरकार और आरबीआई के बीच समझौता है। जिसके चलते रिजर्व बैंक अक्सर फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में अधिक बढ़ोतरी नहीं करने का सुझाव देता रहा है ताकि महंगाई दर के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। पिछले करीब आधे दशक से एमएसपी में कम बढ़ोतरी की सबसे अहम वजहों में से यह समझौता एक मुख्य वजह रहा है।
मई, 2021 की महंगाई दर के लिए सबसे बड़े तीन कारक प्यूएल यानी ईंधन जिसमें पेट्रोल, डीजल मुख्य हैं, बिजली और मैन्यूफैक्चरिंग उत्पाद रहे हैं। फ्यूल और पावर की महंगाई 37.61 फीसदी रही है जबकि मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की महंगाई 10.83 फीसदी रही है प्राथमिक उत्पादों की महंगाई का स्तर 9.61 फीसदी रहा है। इससे यह बात साफ होती है कि 2011-12 के आधार वर्ष के अनुसार अभी तक के सबसे ऊंचे महंगाई स्तर के लिए सरकार के फैसले मुख्य वजह है। भले ही सरकार पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों के नियंत्रण मुक्त होने की बात करे लेकिन कर दरों में इजाफे के उसके कदमों के चलते ही कीमतें इस स्तर पर पहुंची हैं। वहीं जिस तरह से कच्चे तेल की कीमतें वैश्विक बाजार में बढ़ रही हैं उसके चलते इसमें सरकार द्वारा कर दरों में कमी किये जाने के अलावा दाम घटने का कोई विकल्प अभी नहीं दिखता है। मई, 2021 में पेट्रोल की महंगाई दर 62.28 फीसदी, डीजल की 66.3 फीसदी और रसोई गैस की महंगाई दर 60.95 फीसदी रही है। वहीं औद्योगिक उत्पादों की कीमतों में इजाफे के लिए आयरन 49.7 फीसदी, कॉपर 24.1 फीसदी, लैड 35.6 फीसदी और जिंक 38.5 फीसदी महंगा हुआ है।
जहां तक खाद्य उत्पादों की बात है उनमें दालों को छोड़कर बाकी खाद्यान्नों में डिफ्लेशन की स्थिति है। मई में दालें 12.6 फीसदी महंगी हुई हैं। ऊंचे आधार के बावजूद पिछले चार माह से दालों की महंगाई दर दो अंकों में बढ़ी है। वहीं फलों की कीमतें 20.17 फीसदी और खाद्य तेलों की कीमतें 51.71 फीसदी बढ़ी हैं।
जहां तक खुदरा महंगाई दर की बात है तो यह अप्रैल के 4.2 फीसदी से बढ़कर मई में 6.3 फीसदी हो गई है। साथ ही यह ऊंचे आधार के बावजूद इस स्तर पर पहुंची है। जो 83 माह का सबसे ऊपर का स्तर है। इसकी वजहों में फ्यूएल, ट्रांसपोर्ट के साथ ही खाद्य तेलों की 30.8 फीसदी की महंगाई और दालों की 9.3 फीसदी की महंगाई दर एक बड़ी वजह है।
महंगाई के अधिक बढ़ने का असर मांग पर पड़ना तय है। कृषि क्षेत्र के एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे कृषि उत्पादों की मांग कमजोर हो सकती है। अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर आर.एस. सोढ़ी ने रुरल वॉयस के साथ एक बातचीत में कहा कि मांग के मोर्चे पर हम कोविड की पहली लहर से अधिक दूसरी लहर में असर देख रहे हैं। पहली लहर में लॉकडाउन के बाद मांग सामान्य होने लगी थी साथ ही दूध और दही जैसे उत्पादों की मांग पर लॉकडाउन में कोई असर नहीं पड़ा था। लेकिन दूसरी लहर के बाद मांग में तेजी नहीं आ रही है। इसकी एक वजह लोगों का स्वास्थ्य सेवाओं पर किया गया भारी खर्च है और साथ ही वह खर्च करने में संकोच कर रहे हैं।
मांग घटने की वजह से महाराष्ट्र के दूध किसानों को गाय के दूध की कीमत 18 रुपये से 21 रुपये प्रति लीटर के बीच ही मिलने की बात डेयरी क्षेत्र के विशेषज्ञ बता रहे हैं। जबकि दूसरी लहर से पहले यह कीमतें 28 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई थी। वहीं पिछले दिनों केरल के कुछ इलाकों में वहां की दुग्ध सहकारी संस्था मिल्मा ने दूध की खरीद कम कर दी थी। जिसका किसानों द्वारा विरोध होने पर सरकार ने उसे फिर से बढ़ाने के लिए कहा। दूसरी और खाद्यान्नों के रिकार्ड उत्पादन और रिकॉर्ड सरकारी खरीद के साथ ही सरकार ने कोविड राहत योजना के तहत दिया जा रहे खाद्यान्न की सुविधा को नवंबर, 2021 तक बढ़ाने का फैसला लिया है। इसलिए इन उत्पादों की मांग कमजोर रहने से कीमतें सुधरने की कोई संभावना नहीं है। जहां तक खाद्य तेलों की बात है तो इनकी कीमतों में बढ़ोतरी का कुछ फायदा सरसों किसानों को बेहतर दाम के रूप में जरूर मिला। लेकिन दाम बढ़ने की बड़ी वजह खाद्य तेलों का महंगा आयात है। इन परिस्थितियों के बीच आने वाले दिनों में सरकार और रिजर्व बैंक महंगाई पर अंकुश के लिए क्या कदम उठाते हैं, यह देखना महत्वपूर्ण होगा क्योंकि अगर कुछ कृषि उत्पादों के मामले में डिफ्लेशन की स्थिति बनी रहती है तो किसानों को नुकसान उठाना पड़ेगा।