जंतर-मंतर पर लगी किसान संसद में किसानों ने तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को रद्द करने की वजह बताई

तीन नये केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले करीब आठ माह से आंदोलन चला रहे किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा और दिल्ली पुलिस के बीच सहमति बनने के बाद दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसानों को प्रदर्शन की अनुमति दी गई है। इसके तहत संयुक्त मोर्चा ने 22 जुलाई से 9 अगस्त तक किसान संसद लगाकर विरोध करने का तरीका अपनाया है। जिसमें तय शर्तों के तहत 200 किसानों को सुबह 11 बजे से शाम पांच बजे तक प्रदर्शन की अनुमति है। इस विरोध प्रदर्शन के पहले दिन 22 जुलाई को किसान संसद में अधिकांश बड़े किसान नेताओं ने हिस्सा लिया और अपनी बात रखी। हर दिन किसान संसद में 200 प्रतिनिधि बदलते रहेंगे

जंतर-मंतर पर लगी किसान संसद में बोलते हुए बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत

तीन नये केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले करीब आठ माह से आंदोलन चला रहे किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा की दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस के बीच सहमति बनने के बाद दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसानों को प्रदर्शन की अनुमति दी गई है। इसके तहत संयुक्त मोर्चा ने 22 जुलाई से 9 अगस्त तक किसान संसद लगाकर विरोध करने का तरीका अपनाया है। जिसमें तय शर्तों के तहत 200 किसानों को सुबह 11 बजे से शाम पांच बजे तक प्रदर्शन की अनुमति है। इस विरोध प्रदर्शन के पहले दिन 22 जुलाई को किसान संसद में अधिकांश बड़े किसान नेताओं ने हिस्सा लिया और अपनी बात रखी। हर दिन किसान संसद में 200 प्रतिनिधि बदलते रहेंगे। किसानों का कहना है कि संसद के मौजूदा मानसून सत्र के दौरान अपनी मांगों को उठाने के लिए वह आंदोलन की रणनीति के तहत समानांतर किसान संसद लगा रहे हैं। 

किसान संसद के पहले दिन किसान सिंघु बार्डर के धरना स्थल से बसों के जरिये जंतर मंतर पहुंचे। सभी सदस्यों को पहचान पत्र दिये गये थे और दिल्ली पुलिस की सुरक्षा में यह किसान यहां पहुंचे एतिहात के तौर पर पुलिस ने सुरक्षा के कड़े प्रबंधन संसद से आसपास और जंतर-मंतर के आसपास किये हैं। शाम को किसान इसी व्यवस्था के तहत वापस सिंघु बार्डर चले गये। यह प्रदर्शन पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने रूरल वॉयस को बताया कि यह प्रक्रिया इस पूरी अवधि के दौरान अपनाई जाएगी और हम अपनी मांग को उठाते रहेंगे। किसान संसद के लिए बाकयता एक अध्यक्ष बनाया गया और सदस्यों ने बारी-बारी से अपनी बात रखी। दो बजे दोपहर के भोजन के आधे घंटे का ब्रेक लिया गया और उस दौरान वहां किसान लंगर लगाया गया। 

इस मौके पर बोलते हुए राकेश टिकैत ने कहा कि यह दुनिया की पहली किसान संसद है। यह किसान संसद उन तीन कृषि कानूनों को रद्द करती है जिनको देश की संसद में पारित किया गया है। सरकार की नीयत देश में मंडियों को समाप्त करने की है। मंडियां कृषि उत्पादों के लिए रेलवे प्लेटफार्म की तरह है। अगर यह मंडिया खत्म हो जाती हैं तो किसानों के लिए वैसे ही हालात हो जाएंगे जो बिना प्लेटफार्म के ट्रेन चलने से हो सकते हैं। अगर हम बिना प्लेटफार्म ट्रेन रूकते हैं तो वह चेन पुलिंग होती है और उसके दूसरे नतीजे होते हैं। कृषि उत्पादों के मामले में ऐसी स्थिति अव्यवस्था पैदा करेगी।

किसान संसद में अभिनेत्री और मॉडल सोनिया मान ने अपनी बात रखते हुए कहा कि वह कांट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े कानून से होने वाले नुकसान के प्रति लोगों को आगाह करना चाहती हैं। यह कानून किसानों के लिए मुश्किलें खड़ी कर देगा और उनसे उनके हक छीन लेगा। 

स्वराज अभियान के प्रमुख योगेंद्र यादव ने इस मौके पर कहा कि यह संसद किसानों के उन मुद्दों पर चर्चा करेगी जिन पर इंग्लैंड, न्यूजीलैंड औ कनाडा जैसे देशों की संसद में बात हो रही है। लेकिन भारत में नहीं हो रही है। सरकार कह रही है कि वह किसानों की आपत्तियां क्या है उसे नहीं जानती है। हम लोग किसान संसद में उन्हें बतायेंगे कि सरकार द्वारा बनाये गये तीन नये कृषि कानूनों पर किसानों की आपत्तियां क्या हैं। 

हालांकि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक बार फिर कहा कि किसान आंदोलन का रास्ता छोड़ कर सरकार के साथ बातचीत करें। उनका कहना है कि देश के अधिकांश किसान तीन नये कृषि कानूनों के पक्ष में हैं।

वहीं इस बारे में रूरल वॉयस से बात करते हुए भारतीय किसान यूनियन के महासचिव युद्धवीर सिंह ने कहा कि सरकार कहती है कि हम बात करने के लिए तो तैयार हैं लेकिन कानूनों को रद्द नहीं करेंगे। वहीं हम आठ माह से यही कह रहे हैं कि हमारी मांग इन कानूनों को रद्द करने के लिए है। ऐसी स्थिति में बातचीत का कोई अर्थ नहीं बनता है। वहीं इन कानूनो के अलावा सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी देने की मांग पर भी चुप है। जबकि प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री बार-बार कह रहे हैं कि एमएसपी मिल रहा है और मिलता रहेगा। ऐसे में इसे कानूनी रूप से लागू करने में सरकार क्यों कदम नहीं उठा रही है, यह हमें समझ नहीं आ रहा है।