सरकार ने पॉल्ट्री उद्योग की मांग को मानते हुए जेनेटिकली मोडिफाइड (जीेएम) सोयाबीन की क्रशिंग से तैयार 15 लाख टन सोयामील के आयात का रास्ता साफ कर दिया है। केंद्रीय पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय द्वारा ऑल इंडिया पॉल्ट्री ब्रीडर्स एसोसिएशन के चेयरमैन को 11 अगस्त, 2021 को लिखे गये एक पत्र में यह जानकारी दी गई है। इस पत्र में स्वीकार किया गया है कि यह आयात जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) सोयाबीन की क्रशिंग से तैयार सोयामील का हो सकता है। लेकिन सोयामील में कोई लाइव आर्गनिज्म नहीं होता है और साथ ही यह मानव उपभोग के लिए नहीं है इसलिए इसे जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) की अनुमति की जरूरत नहीं है। सथ ही यह आयात फूड सेफ्टी एंड स्टेंडर्ड अथॉरिटी (एफएसएसएआई) के दायरे से भी बाहर है क्योंकि यह मानवीय उपभोग के लिए नहीं है। इस पत्र के बाद सोयामील के आयात की मंजूरी की औपचारिकता ही बाकी रह गई है। उसके आने के बाद इसका आयात किया जा सकता है।
जीएम सोयाबीन से तैयार सोयामील होने के चलते सरकार के इस कदम पर विवाद हो सकता है क्योंकि देश में कॉटन (कपास) को छोड़कर किसी भी जीएम फसल के उत्पादन की अनुमति नहीं है। देश में ही विकसित जीएम सरसों और जीएम बैंगन की किस्मों को व्यावसायिक ट्रायल और उत्पादन की अनुमति नहीं दी गई है। इसकी वजह जीएम फसलों का भारी विरोध होना रहा है।
पॉल्ट्री उद्योग ने पॉल्ट्री फीड के लिए सोयामील के आयात की जरूरत बताते हुए सरकार से इसके आयात की अनुमति देने के लिए कहा था। हालांकि पहले इसके शुल्क मुक्त आयात की अनुमति देने की मांग की थी लेकिन सरकार ने शुल्क मुक्त आयात की बात नहीं मानी और तय सीमा शुल्क दरों पर आयात की बात उद्योग संगठन को भेजे पत्र में कही गई है। मंत्रालय के इस पत्र में संबंधित विभागों के साथ राय करने की बात भी कही गई है।
वहीं पॉल्ट्री उद्योग के सूत्रों का कहना है कि देश में सोयामील की उपलब्धता नहीं है और यह पॉल्ट्री फीड के लिए जरूरी उत्पाद है। पहले से ही मांग में गिरावट और अब फीड के लिए जरूरी सोयामील की कमी से पॉल्ट्री उद्योग और किसान संकट में हैं। यही नहीं सोयामील की कीमतें भी दो गुना से अधिक हो गई हैं। वहीं देश में सोयाबीन के उत्पादन में कमी की आशंका के चलते सोयमील के और अधिक आयात की जरूरत पड़ सकती है। पॉल्ट्री उद्योग की जरूरत पूरी करने के लिये यह जरूरी है। फिलहाल पॉल्ट्री फीड उद्योग को कम क्षमता पर काम करना पड़ रहा है।
इसके लिए सबसे पहले पॉल्ट्री बीडर्स एसोसिएशन ने डेयरी ,पशुपालन औऱ मत्सय मंत्रालय को पोल्ट्री फीड की कमी को पूरा करने के लिए 15 लाख टन सोयाबीन केक के आय़ात की अनुमति के लिए पत्र देकर कर आवदेन किया था जिसको मंत्रालय ने इसको 31 जुलाई को केन्द्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भेजकर उचित करवाई करने के लिए कहा था। किसी भी जीएम सामग्री का आयात पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1985 द्वारा शासित होता है। जीएम आयात प्रस्तावों की जांच पर्यावरण मंत्रालय के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) द्वारा की जाती है ताकि प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करने की सिफारिश की जा सके।
किसानों के लिए सोयाबीन केक डेयरी, पॉल्ट्री और मछली के लिए एक प्रमुख फ़ीड सामग्री है पॉल्ट्री उद्योग ने दावा किया है कि चारे की उपलब्धता में कमी के कारण सोयामील की कीमतों में तेजी आई है जिससे पशुपालकों को नुकसान हो रहा है। सोयाबीन की अगली फसल सितंबर के मध्य में आएगी।
हाल के वर्षो में भारत गैर जीएम मूल के तीन लाख से लेकर पांच लाख टन लाख टन तिलहन का आयात कर रहा है। जबकि अपने देश विकसित की गई जीएम सरसों किस्म को अनुमति नहीं मिल पाई है। जीएम सरसों की डीएमएच-11 किस्म जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने तैयार किया है और जिसका नेतृत्व विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक पेंटल कर रहे थे। इसके बारे में दावा है कि जीएम किस्म से उपज में तीस फीसदी तक का इजाफा होगा और इससे खाद्य तेलों का आयात घटेगा जो इस साल एक लाख करोड़ को पार कर जाएगा। जीएम फसलों के बड़े स्तर पर कमर्शियल परीक्षण को लेकर भारी विरोध रहा है। जिसके चलते अभी तक इसकी खेती की अनुमति नही मिल गई वही देश में बीटी काटन को लेकर भी सवाल उठे हैं। अब प्रश्न उठता है कि यह सोयाबीन मील डेयरी , पोल्ट्री और मछली के फीड के लिए उपयोग किया जाएगा जिसके उत्पाद का उपयोग तो खाने में किया जाएगा। इस आयात पर जीएम किस्मों का विरोध करने वाले लोग सवाल उठा सकते हैं।