बजट 2021-22 किसानों की अपेक्षाओं पर कितना खरा

किसानों की उम्मीदें इसलिए भी अधिक थीं क्योंकि सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, जिसके लिए इस साल का बजट महत्वपूर्ण था

एक फरवरी को लोकसभा में पेश हुआ 2021-22 का बजट मौजूदा आर्थिक मंदी, कोविड-19 महामारी और किसान आंदोलन की परिस्थितियों में पेश किया गया। आम तौर पर उम्मीद की जा रही थी कि कृषि और ग्रामीण विकास के बजट आवंटन में उल्लेखनीय वृद्धि की जाएगी क्योंकि ग्रामीण भारत में किसानों और अन्य कामगारों की आमदनी में जरा भी सुधार मांग को बढ़ाने और अर्थव्यवस्था को उबारने में मददगार होगा। हालांकि, यह उम्मीद पूरी होती नहीं दिख रही है। फिर भी संसाधनों की कमी और कोविड-19 संकट के दौरान स्वास्थ्य व्यवस्था और खाद्य सुरक्षा में सुधार की जरूरत को देखते हुए कृषि और ग्रामीण विकास के बजट आवंटन से बहुत निराश होने की जरूरत नहीं है।   

वर्ष 2021-22 में कृषि और संबंधित गतिविधियों के लिए बजट आवंटन 2020-21 में 1,54,775 करोड़ रुपये के बजट प्रावधान से घटकर 1,48,301 करोड़ रुपये रह गया है, जबकि 2020-21 का संशोधित अनुमान 1,45,355 करोड़ रुपये था। इस प्रकार चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान के मुकाबले कृषि एवं संबंधित गतिविधियों के बजट में बढ़ोतरी हुई है।

2021-22 में ग्रामीण विकास का बजट 1,94,633 करोड़ रुपये रखा गया है जो 2020-21 में 1,44,817 करोड़ रुपये के बजट प्रावधान से तो अधिक है लेकिन 2,16,342 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से कम है। उर्वरक सब्सिडी 2020-21 में 71,309 करोड़ रुपये थी जो 2021-22 में बढ़कर 79,530 करोड़ रुपये हो गई है, लेकिन यह भी 2020-21 में 1,33,947 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से कम है। इसी तरह, खाद्य सब्सिडी  2020-21 में 1,15,570 करोड़ रुपये के बजट अनुमान से बढ़ाकर 2021-22 में 2,42,836 करोड़ रुपये कर दी है, लेकिन यह 2020-21 में 4,22,618 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से बहुत कम है।

योजनाओं का आवंटन

कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय की महत्वपूर्ण योजनाओं के बजट में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है। प्रधानमंत्री कृषि सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना का बजट 2019-20 में 48714 करोड़ रुपये था, जिसे 2020-21 के बजट में बढ़ाकर 75,000 करोड़ और संशोधित अनुमानों में 65,000 करोड़ रुपये किया गया। वर्ष 2021-22 के बजट में भी पीएम-किसान योजना के लिए 65,000 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का आवंटन 2019-20 में 12,639 करोड़ रुपये के वास्तविक खर्च से बढ़कर 2020-21 में 12,695 करोड़ (बजट अनुमान) और 15,306 (संशोधित अनुमान) करोड़ रुपये हुआ था, जिसे 2021-22 में बढ़ाकर 16,000 करोड़ रुपये किया गया है। केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का बजट 2019-20 में 2,700 करोड़ रुपये के वास्तविक खर्च से बढ़ाकर 2020-21 के बजट में 4000 करोड़ रुपये किया गया था। 2021-22 में भी यह उसी स्तर पर है। हालांकि, 2020-21 के लिए इस योजना का संशोधित अनुमान बहुत कम 2563.20 करोड़ रुपये था। 

एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के लिए आवंटन 2020-21 के संशोधित अनुमान 208 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2021-22 में 900 करोड़ करोड़ रुपये किया गया है। लेकिन किसानों को मिलने वाले लघु अवधि ऋणों की ब्याज सब्सिडी का बजट 2020-21 में 21175 करोड़ रुपये के बजट अनुमान और 19831 रुपये के संशोधित अनुमान से घटकर 2021-22 में 19468 करोड़ रुपये रह गया है।

कृषि शिक्षा और अनुसंधान के लिए अनुमानित व्यय को भी 2019-20 में 7,523 करोड़ रुपये के वास्तविक खर्च से बढ़ाकर 2020-21 में 8,363 करोड़ रुपये (बजट अनुमान) और 7762 करोड़ रुपये (संशोधित अनुमान) किया गया था, जिसे 2021-22 में बढ़ाकर 8514 करोड़ रुपये कर दिया है। राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम का आवंटन 2019-20 में 266 करोड़ रुपये के वास्तविक खर्च से बढ़कर 2020-21 में 300 करोड़ रुपये (बजट अनुमान) और 286 करोड़ (संशोधित अनुमान) हुआ था। 2021-22 में यह और भी घटकर 255 करोड़ रुपये रह गया है।  

राष्ट्रीय पशुधन मिशन का आवंटन 2020-21 में 370 करोड़ रुपये के  बजट अनुमान और 425 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से भी घटाकर 2021-22 में 350 करोड़ रुपये किया गया है। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई पीएम किसान संपदा योजना के बजट में भी अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई। इस योजना का वास्तविक बजट 2019-20 में 819 करोड़ रुपये था जो 2020-21 में 1081.41 करोड़ रुपये (बजट अनुमान) और 750 करोड़ रुपये (संशोधित अनुमान) रहा। 2021-22 में इस योजना का बजट 700 करोड़ रुपये है।

ग्रामीण विकास के प्रमुख कार्यक्रम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का बजट 2019-20 में 71686.70 करोड़ (वास्तविक) से बढ़कर 2020-21 में 1,11,500 करोड़ रुपये हो गया था लेकिन 2021-22 में मनरेगा का आवंटन घटाकर 73,000 करोड़ रुपये किया गया है। कई अर्थशास्त्रियों ने मनरेगा के बजट में कटौती की आलोचना की है क्योंकि हाल के दिनों में प्रवासी श्रमिकों के गांव लौटने के कारण मनरेगा के तहत काम की मांग बढ़ी है। इस कार्यक्रम में रोजगार पैदा करने और विकास के लिए परिसंपत्तियों के सृजन की क्षमता है। इस तरह के शोध प्रमाण हैं कि मनरेगा के तहत बने सिंचाई के तालाब, वाटरशेड डेवलपमेंट और सड़क निर्माण आदि कृषि क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने और ग्रामीण विकास में मददगार होते हैं। इससे निर्धन व्यक्तियों के हाथ में खर्च करने के लिए पैसा पहुंचता है, जिससे अर्थव्यवस्था में खपत और मांग बढ़ती है।

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का आवंटन भी 2020-21 के बजट अनुमान 19,500 करोड़ रुपये से घटाकर 2021-22 में 15,000 करोड़ रुपये कर दिया है। इस बार का आवंटन 2020-21 के संशोधित अनुमान 13,706 करोड़ रुपये से ज्यादा है। प्रधानमंत्री आवास योजना का आवंटन गत वर्ष के बराबर 19,500 करोड़ रुपये रहा है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का वास्तविक बजट आवंटन 2019-20 में 9210 करोड़ रुपये था जो 2020-21 में 9210 करोड रुपये हुआ और अब 2021-22 में बढ़कर 13,677 करोड़ रुपये हो गया है।

नई योजनाओं की घोषणा

हर बजट में, कुछ नई योजनाओं की घोषणा की जाती है, भले ही ये वास्तव में लागू हों या न हों। उदाहरण के तौर पर, केंद्रीय बजट 2018-19 में वादा किया गया था कि i) बाजार भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे गिरने की स्थिति में भावांतर का भुगतान किया जाएगा। ii) दूरदराज के इलाकों के 22,000 ग्रामीण हाटों का विकास और सुदृढ़ीकरण होगा। इन्हें e-NAM से जोड़ा जाएगा और एपीएमसी के दायरे से बाहर रखा जाएगा। iii) आलू, टमाटर और प्याज जैसी जल्दी खराब होने वाली उपजों की प्रोसेसिंग, एग्री-लॉजिस्टिक और एफपीओ के संचालन को मजबूत करने के लिए ऑपरेशन ग्रीन iv) किराये पर जमीन लेकर खेती करने वाले काश्तकारों के लिए संस्थागत ऋण मुहैया कराना। ये वादे काफी हद तक अधूरे हैं।

इस वर्ष बजट में की गई नई घोषणाओं में ऑपरेशन ग्रीन में 22 उत्पादों का शामिल करना, 1000 मंडियों को e-NAM से जोड़ना, कोच्चि, चेन्नई, विजाग, पारादीप और पेटुघाट में पांच फिशिंग हार्बर्स का आधुनिकीकरण और कई अंतर्देशीय फिशिंग हार्बर और फिश लैंडिंग सेंटर विकसित करना, तमिलनाडु में बहुउद्देशीय समुद्री शैवाल पार्क स्थापति करना, गांवों में संपत्ति के मालिकाना अधिकार का रिकॉर्ड तैयार करने वाली स्‍वामित्‍व योजना का पूरे देश में विस्तार, नाबार्ड के तहत बने माइक्रो इरीगेशन फंड को 5,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 10,000 करोड़ रुपये करना शामिल है।

वित्त मंत्री के बजट भाषण में कृषि ऋण का लक्ष्य 2022 में बढ़ाकर 16.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाने, पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन के लिए कर्ज सुनिश्चित कराने और रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड को 30,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये करने का जिक्र किया गया है। इसके अलावा, वित्त मंत्री ने अपने संबोधन में एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड को कृषि उपज मंडियों (एपीएमसी) में आधारभूत सुविधाओं के विकास के लिए उपलब्ध कराने की घोषणा भी की है। इस घोषणा से यकीन बढ़ाना चाहिए कि नए कृषि कानूनों के जरिये सरकार का एपीएमसी मंडियों को खत्म या कमजोर करने का कोई इरादा नहीं है। हालांकि, इन योजनाओं और घोषणाओं का प्रभावी कार्यान्वयन बहुत मायने रखता है।

निष्कर्ष

कुल मिलाकर देखा जाए तो केंद्रीय बजट 2021-22 संभवत: किसानों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है। वास्तव में, किसानों की उम्मीदें इसलिए भी अधिक थीं क्योंकि सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, जिसके लिए इस साल का बजट महत्वपूर्ण था। यह आर्थिक विकास हेतु प्रभावी मांग को बढ़ाने के लिए भी महत्वपूर्ण था। हालांकि, कोविड-19 संकट के बीच संसाधनों की कमी और प्राथमिकताओं में बदलाव को देखते हुए सरकार ने शायद किसानों और खेती के हित में अपनी तरफ से बेहतर करने का प्रयास किया। पिछले कुछ वर्षों में बजट में घोषित कई योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करना अधिक महत्वपूर्ण है।

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( डॉ. टी. हक भारत सरकार के कृषि लागत एवं मूल्य आयोग पूर्व अध्यक्ष हैं। वर्तमान में वे काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट, नई दिल्ली में विशिष्ट प्रोफेसर हैं )