देश में रबी की अच्छी फसल को देखते हुए केंद्र सरकार ने चने पर 10 फीसदी आयात शुल्क लगाने का फैसला किया है। इसी के साथ चने पर पिछले साल मई से लागू शुल्क-मुक्त आयात व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। सरकार के इस कदम से पीली मटर का शुल्क-मुक्त आयात बंद होने की उम्मीद भी जगी है। पिछले दिनों केंद्र सरकार ने पीली मटर के शुल्क-मुक्त आयात की अवधि 31 मई 2025 तक बढ़ाई थी जबकि मसूर दाल पर 11 प्रतिशत आयात शुल्क लगाया था।
केंद्र सरकार की ओर जारी अधिसूचना के अनुसार, चने पर 10% आयात शुल्क 1 अप्रैल से प्रभावी होगा। देश में दालों की कमी को देखते शुल्क मुक्त आयात शुरू किया गया था। लेकिन इस साल दालों के उत्पादन में सुधार के संकेत हैं और कीमतों में गिरावट को रोकने के लिए चने पर 10 फीसदी आयात शुल्क लगाने का निर्णय लिया गया है। भारत मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया और तंजानिया से चने का आयात करता है।
कृषि मंत्रालय द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, रबी सीजन 2024-25 में चने का उत्पादन 115.35 लाख टन होने का अनुमान है, जो पिछले साल से करीब पांच लाख टन अधिक है। इस साल चने की बुवाई का क्षेत्र पिछले साल के मुकाबले करीब चार फीसदी बढ़कर 99.41 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। लेकिन रबी की नई फसल मंडियों में आने के साथ ही कई जगह चने की कीमतें 5650 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी से नीचे आ गई हैं।
दलहन के शुल्क-मुक्त आयात का असर घरेलू बाजार में दालों की कीमतों पर पड़ता है और किसानों को उपज का सही दाम नहीं मिल पाता है। उम्मीद है कि चने पर 10 फीसदी आयात शुल्क लगने से किसानों को सस्ते आयात की मार से बचाने में मदद मिलेगी।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक है। भारत हर साल अपनी दलहन जरूरत का करीब 15-20 फीसदी यानी करीब सालाना करीब 60-70 लाख टन दालों का आयात करता है।
दलहन में आत्मनिर्भरता के लिए केंद्र सरकार ने इस साल बजट में दलहन मिशन का ऐलान किया है। केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से किसानों से दलहन की एमएसपी पर खरीद बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं।